*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~
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उन बालानन्द जी के मन में विचार उठा कि इस समय दादू पंथ में अच्छे - २ विरक्त और भजनानन्दी संत देखे जाते हैं किन्तु सब निर्गुण पुकारते रहते हैं । वह समाज हमारे में आ जाय तो हमारे समाज की अच्छी उन्नति हो सकती है । यह सोचकर बालानन्द जी ने अपने साथी कुछ अन्य साधुओं को अपना विचार सुनाया ।
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तब बहुतों ने तो बालानन्द जी की हां में हां मिला दी किन्तु कुछ वृद्ध संतों ने कहा - आपका यह विचार ठीक नहीं है । कारण - यह उपाय गलता वालों ने दादूजी के समय में भी बहुत किया था । तब तो दादूजी और उनके कुछ शिष्य ही थे । तब भी वे सफल नहीं हो सके थे । अब तो दादूपंथ बहुत बडा समाज है, उस पर आप कैसे विजयी हो सकेंगे ।
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उक्त वचन सुनकर बालानन्दजी ने कहा - उस समय एक तो दादू जी ही समर्थ संत थे और दूसरे आमेर नरेश भगवतदास उनका परमभक्त था । इससे उनपर बल प्रयोग नहीं हो सकता था । इसी कारण गलता वालों को सफलता नहीं मिली थी । किन्तु अब वह बात नहीं है ।
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अब जयपुर नरेश जैसे नारायणा दादूधाम पर श्रद्धा रखता है वैसे हमारे पर भी श्रद्धा रखता है । इससे वह तो साधओं के बीच में पडेगा नहीं । फिर भी वृद्ध संतों ने कहा - दादूपंथी नागों की जमातें घूमती हैं, वे भी तो शस्त्रकला को जानती हैं और उनमें बडे - २ वीर भी सुने जाते हैं । उनमें लोहा लेना पडेगा । वे आपकी आशा कैसे पूर्ण होने देंगे ।
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बालानन्द जी ने कहा यह तो ठीक है किन्तु वे जमातें दूर दूर तक घूमने जाती हैं और बहुत समय के पश्चात् नारायणा के मेले पर इधर आती हैं । अत: हम ऐसा अवसर देखेंगे कि नागों की जमातें बहुत दूर होंगी, उसी समय हम जाकर नारायणा धाम के आचार्य को माला तिलक कंठी आदि वैष्णवों के चिन्ह देकर वैरागी बना लेंगे ।
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फिर भी वृद्ध संतों ने कहा - हमारे ध्यान में तो नहीं आता है कि आप इस कार्य में सफल हो जायें । किन्तु बालानन्द जी ने वृद्ध संतों के वचनों पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया और निश्चय कर लिया कि नारायणा दादूधाम के आचार्य चैनरामजी को माला, तिलक, कंठी अवश्य दे देनी है ।
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चैनरामजी वैसे भी सरल स्वभाव के हैं, वे हमारे बहुत बडे समाज को देखकर ही डर जायेंगे और हम कहेंगे वैसा ही उनको करना पडेगा । और एक बार माला तिलक कंठी धारण करने के पश्चात् उतार देंगे तो हम उनको निगुरा कह - कह कर अपमानित करेंगे । उक्त प्रकार बालानन्दजी ने अपना निश्चय दृढ कर लिया ।
(क्रमशः)
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