॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)**
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= विन्दु ९३ =**
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तीसरे दिन नारायणा नरेश नारायणसिंह दादूजी महाराज के दर्शन करने जाने लगे तब उनके भाई अमरसिंह सालीवाले, केशवदास आकोदा वाले, गैंदीदास आदरवा वाले और त्रिलोकदास ममाणावाले भी साथ हो गये थे । सबने जाकर दादूजी महाराज को प्रणाम किया तथा सब सामने बैठ गये फिर अवकाश देखकर अमरसिंह ने दादूजी महाराज से पूछा - भगवन् ! राम से विमुख और संमुख मानवों की क्या गति होती है ? कृपा करके बताइये । तब दादूजी महाराज ने कहा -
**= अमरसिंह के प्रश्न का उत्तर =**
"राम विमुख जग मर मर जाय,
जीयें संत रहैं ल्यो जाय ॥ टेक ॥
लीन भये जे आतम रामा,
सदा सजीवन कीये नामा ॥ १ ॥
अमृत राम रसायान पीया,
तातैं अमर कबीरा कीया ॥ २ ॥
राम राम कह राम समाना,
जन रैदास मिले भगवाना ॥ ३ ॥
आदि अंत केते कलि जागे,
अमर भये अविनाशी लागे ॥ ४ ॥
राम रसायान दादू माते,
अविचल भये राम रंग राते ॥ ५ ॥
राम से विमुख मानव मर मर कर चौरासी लक्ष योनियों में जा रहे हैं । जो संत अपनी वृत्ति राम में लगाये रहते हैं, वे राम रूप होकर सदा जीवित रहते हैं । जो भी आत्म स्वरूप राम के भजन में लीन हुये हैं, वे सभी सजीवन भाव को प्राप्त हुये हैं । राम - भजन ने नामदेव को सदा के लिये सजीवन कर दिया । राम - भक्ति रूप अमृत रसायन पान किया, इसी से कबीर अमर हो गये । राम राम करके राम के समान निर्विकार होकर भक्त रैदास भगवान् में मिल गये । सृष्टि के आदि से इस कलियुग के समय तक कितने ही संत अविनाशी परब्रह्म के चिन्तन में लगकर अज्ञान निद्रा से जागे हैं, वे सभी परब्रह्म को प्राप्त होकर अमर हो गये हैं । अपने प्रश्न का उचित उत्तर सुनकर अमरसिंह अति प्रसन्न हुये और दादूजी महाराज को हृदय से प्रणाम किया ।
(क्रमशः)

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