बुधवार, 15 मार्च 2017

= स्वप्नप्रबोध(ग्रन्थ ५/२३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ५) स्वप्नप्रबोध*
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*स्वप्ने दुष्कर तप कियौ, स्वप्ने संजम जाप ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, नाहिं आसिका न श्राप ॥२३॥*
स्वप्न में कोई कठोर तप करे या दूसरी तरह-तरह के संयम तथा जपादि करे या कोई किसी को आशीर्वाद या शाप दे, जागने पर ये तप, ये जप, ये आशीर्वचन या शाप - सब मिथ्या ही ज्ञात होते हैं ॥२३॥
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*स्वप्ने में निन्दा भई, स्वप्ने मांहिं प्रशंस ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, नहीं कृष्ण नहिं कंस ॥२४॥*
स्वप्न में कोई कृष्ण बनकर अपनी निन्दा सुने दूसरा कंस बनकर अपनी खुशामद भरी प्रशंसा । जागने पर पता लगा कि न किसी की निन्दा हुई न प्रशंसा, न कोई कृष्ण था न कंस ॥२४॥
(क्रमशः)

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