मंगलवार, 21 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/९४-५)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
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दादू कहै - 
सांई को संभालताँ, कोटि विघ्न टल जाहिं । 
राई मान बैसँदरा१, केते काठ जलाहिं ॥९४॥ 
जैसे राई जितनी अग्नि१ से कितने ही काष्ठ - खँड भस्म हो जाते हैं, वैसे ही निष्काम पतिव्रत पूर्वक भगवन्नाम स्मरण से कोटि विघ्न भी टल जाते हैं । 
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*करतूति कर्म* 
कर्में कर्म काटे नहीं, कर्में कर्म न जाइ । 
कर्में कर्म छूटे नहीं, कर्में कर्म बंधाइ ॥९५॥ 
इति निहकर्मी पतिव्रता का अँग समाप्त ॥८॥सा - ९९६॥ 
९५ में कहते हैं कर्म से कर्म नहीं कटते - उद्योग रूप कर्मों द्वारा कोई भी प्रारब्ध कर्म को नहीं काट सकता । न कर्मों से आगामी कर्मों का अभाव होता है और न कर्मों से वर्तमान कर्म ही छूटते हैं । प्रत्युत कर्मों द्वारा कर्म - बन्धन बढ़ता ही जाता है । अत: कर्म बन्धन से मुक्त होने के लिए निष्काम पतिव्रत रूप अनन्य भक्ति द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए । 
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका निष्कामी पतिव्रता का अँग समाप्त: ॥८॥
(क्रमशः)

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