मंगलवार, 21 मार्च 2017

= विन्दु (२)९५ =


#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९५ =*
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*= गरीबदासजी के प्रश्न और उनके उत्तर =* 
गरीबदासजी को दादूजी महाराज के उक्त वचन से ज्ञात हो गया कि - स्वामीजी महाराज अब अधिक इस धरातल पर नहीं विराजेंगे । इस लिये गरीबदासजी ने प्रश्न किया - स्वामिन् ! आपने निर्गुण ब्रह्म की उपासना रूप अद्भुत पद्धित चलाई है जो हिन्दू और मुसलमानों की प्रचलित सीमित उपासाना पद्धितयों से बहुत आगे बढ़ी हुई है । प्रायः हिन्दू तो काशी को ही मुक्ति क्षेत्र मानते हैं तथा अन्य तीर्थों के स्नान आदि से अपना कल्याण चाहते हुये पंच देवों की ही उपासाना में लगे हुये हैं और मुसलमान प्रायः काबा को ही परम तीर्थ मानकर पैगम्बरों की ही सेवा में लगे हुये हैं किन्तु आपने तो दोनों की ही प्रचलित उपासाना पद्धतियों को छोड़कर विलक्षण पद्धति अपनाई है । 
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अतः आपके पश्चात् इस आपकी चलाई हुई पद्धति का निर्वाह किस प्रकार हो सकेगा ? यद्यपि आपने तो अपनी साधन पद्धति से निर्गुण ब्रह्म का भजन करके परम लाभ प्राप्त कर लिया है किन्तु सर्व साधारण साँसारिक प्राणीयों ने तो आप की चलाई हुई साधन - पद्धति में अपना मन विशेष रूप से नहीं लगाया है । सर्व साधारण प्राणी तो रजोगुण प्रधान साधन पद्धतियों में ही अपना मन लगाते हुये दिखाई देते हैं । अतः मुझे संशय होता है कि आपकी यह अद्भुत साधनकार चल सकेगी ? 
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गरीबदासजी के उक्त प्रश्न को सुनकर अन्तर्यामी स्वामी दादूदयालुजी गरीबदासजी आदि सब शिष्यों के मन की भावना जान गये और बोले - हे भाई ! तुम ऐसा विचार मत करो, जो हमारे ज्ञान को धारण करके व्यवहार करेंगे और अपने धर्म में स्थिर रहेंगे, उनकी रक्षा रामजी अवश्य करेंगे और यदि तुम आकार का ही आश्रय चाहते हो तो हमारे इस शरीर को रखलो, इसकी पूजा करते रहना । इससे तुम जो भी चाहोगे वही मिल जायगा और जो भी प्रश्न करोगे उसका उत्तर मिल जाया करेगा और यदि तुमको यह संशय हो कि यह तो दो दिन में महान् दुर्गंध देने लगेगा, सो संशय उचित नहीं है । 
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कारण ? यह मेरा शरीर पंच तत्त्व का नहीं है किन्तु योग माया मय है, इससे दुर्गंध नहीं आयेगी और यह शरीर का आकार भी प्रतीति मात्र ही है वास्तव में नहीं । जैसे दर्पण में मुख तो दिखाई देता है किन्तु वास्तव में दर्पण में मुख नहीं होता है, वैसे ही यह हमारा शरीर प्रतीति मात्र ही है, वास्तव में नहीं है और यदि तुम्हारे मन में किसी प्रकार का संशय हो तो तुम अपना हाथ मेरे शरीर पर फेरकर परीक्षा करके देख सकते हो । 
(क्रमशः)

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