परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

गुरुवार, 2 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/४३-५)

卐 सत्यराम सा 卐 
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
**= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =** 
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*अन्य लग्न व्यभिचार* 
साहिब देवे राखणा, सेवक दिल चोरे । 
दादू सब धन साह का, भूला मन थोरे ॥४३॥ 
४३ में प्रभु से भिन्न में मन लगाना व्यभिचार है, यह कह रहे हैं - प्रभु अपना निष्काम पतिव्रत रखने के लिए ही नर - शरीर देते हैं किन्तु अज्ञानी प्राणी रूप सेवक भगवान् से मन को हटाकर सिद्धि आदि में लगाता है और अपना मानव - जीवन खो देता है । हे मन ! तू सावधान रह, इस अल्प मायिक सुख के लिए भगवान् को क्यों भूलता है ? यदि तू मायिक सुखों की आशा छोड़कर निरँतर निष्काम पतिव्रत रूप अनन्यता से भगवद् भजन करेगा तो सच्चिदानन्द ब्रह्म रूप साह का ब्रह्मानन्द रूप सम्पूर्ण धन तेरे को मिलेगा । 
*पतिव्रत* 
दादू मनसा वाचा कर्मना, अन्तर आये एक । 
ताको प्रत्यक्ष रामजी, बातें और अनेक ॥४४॥ 
४४ - ४८ में पतिव्रत की विशेषता बता रहे हैं - जिसकी मन, वचन और शरीर से वृत्ति अन्तर्मुख होकर एक राम से ही लगी है, उसी को रामजी का प्रत्यक्ष दर्शन होता है और अनेक प्रकार की दार्शनिक, पौराणिक आदि बातें तो कला मात्र ही हैं । 
दादू मनसा वाचा कर्मना, हिरदै हरि का भाव । 
अलख पुरुष आगे खड़ा, ताके त्रिभुवन राव ॥४५॥ 
जिसके हृदय में मन, वचन और देह द्वारा सात्विक श्रद्धापूर्वक निरन्तर ही हरि - चिन्तन का प्रेम रहता है, मन इन्द्रियों के अविषय, त्रिभुवन - पति, अलख पुरुष उसके आगे खड़े रहते हैं अर्थात् उसे निरन्तर साक्षात्कार होता रहता है ।
(क्रमशः)

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