रविवार, 9 अप्रैल 2017

= मन का अंग =(१०/२८-३०)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०* 
क्या मुंह ले हंस बोलिये, दादू दीजे रोइ ।
जन्म अमोक आपना, चले अकारथ खोइ ॥२८॥
हमें अपने मनोनिग्रह रूप साधन में सफलता तो मिली नहीं, अत: हम किस मुख से हंसकर भगवत् प्राप्ति सम्बन्धी वार्त्ता करें । हमें तो असफलता के कारण रोना ही आता है । खेद है - हम अपने अमूल्य मनुष्य जन्म को व्यर्थ ही खोकर पुन: जन्म मरण रूप सँसार में ही चले जा रहे हैं ।
जा कारण जग जीजिये, सो पद हिरदै नाँहि ।
दादू हरि की भक्ति बिन, धिक् जीवन कलि माँहि ॥२९॥
जगत में जिसके लिए जीना चाहिए, वह भगवत् पद और भगवद् भक्ति तो हमारे हृदय में है नहीं और हरि की भक्ति बिना इस कलियुग में धिक्कार के योग्य ही हैं । कारण, योग - यज्ञादि साधन तो कलियुग में सम्यक् होते नहीं और भक्ति हो नहीं सकी, अत: धिक्कार ही है ।
कीया मन का भावता, मेटी आज्ञाकार ।
क्या ले मुख दिखलाइये, दादू उस भरतार ॥३०॥
हम भगवान् की आज्ञा और ऋषियों की बांधी हुई मर्यादा को तोड़कर मन को प्रिय लगने वाले ही काम करते रहे । अत: उस विश्व का भरण - पोषण करने वाले हमारे स्वामी को कौनसी सफलता का आश्रय लेकर मुख दिखावें ? हम उनके आगे जाने योग्य ही नहीं हैँ । 
(क्रमशः)

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