🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#बखनांवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
.
*सांई मेरा सत्य है, निरंजन निराकार ।*
*दादू विनशै देखतां, झूठा सब आकार ॥*
=============
*पीव पिछाणन कौ अंग ॥*
काँयौ काँस कौ आसिरौ, पतंगा स्यूँ जलि जाइ ।
बषनां गिर कै आसिरै अनत लाइ टलि जाइ ॥३॥
काँस नामक घास से बने घर का आश्रय किस काम का जो छोटे से अग्निकण के लगते ही भस्मीभूत हो जाता है । बषनांजी कहते हैं, इसके विपरीत पर्वत के आश्रय में रहने पर भयंकर से भयंकर अग्नि लगकर स्वयं अग्नि ही समाप्त हो जाती है किन्तु वह पर्वत का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाती ।
ऐसे ही मायोपहित चेतन जिसे ईश्वर, अवतार, दासरथिराम, वासुदेवकृष्ण आदि कहते हैं की उपासना करने का क्या लाभ जो स्वयं उपजते-खपते हैं । वस्तुतः उपासना योग्य तो पर्वत रूपी अनादि-अजन्मा परब्रह्म-परमात्मा है जो न कभी जन्मता-मरता है और न जिसको गुण (त्रिगुण) ही अपनी गिरफ्त में ले पाते हैं और जिसकी भक्ति करने से अनत लाइ-भयंकर अग्नि=जन्म-मरण का चक्र छूट जाता है ॥३॥
.
ब्रह्मा विष्न महेस लौं, सब देख्या तेतीस ।
बषनां एकहि राम बिन, ऐ माया का कीस ॥४॥
बषनांजी अपना अनुभव और गुरुमहाराज का उपदेश बताते हुए कहते हैं, हमने ब्रह्मा, विष्णु और महेशादि सभी तेतीस करोड़ देवताओं को देख-परख लिया है । निरंजन-निराकार-राम के अतिरिक्त ये सभी देवता माया रूपी बाजीगर के परतंत्र बंदर के समान हैं ।
यह तथ्य भलीप्रकार स्थापित है कि माया तथा मायाजन्य संसार, पदार्थ, शरीर सभी नाशवान हैं, एक न एक दिन इनका अंत होता ही है । मात्र माया से अस्पृष्ट निरंजन-निराकार-राम ही हैं और वही हमारा प्रियतम = उपास्य है तथा उसी को हमने गुरु कृपा से जाना है ॥४॥
इति पीव पिछाणन कौ अंग संपूर्ण ॥अंग ५६॥साषी ९३॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें