गुरुवार, 8 अगस्त 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १४५/१४७*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १४५/१४८*
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लोचन बेद बिलाइ गये, भगति बिलाणी१२ तास ।
रांमा बाणी उचरै, सु कहि जगजीवनदास ॥१४५॥
(१२. बिलाणी=नष्ट हुई)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वेदों के शब्दभंडार से नैत्र तो विस्मित होते हैं और भक्ति नष्ट होती है यदि जीव अल्पज्ञ है तो । संत कहते हैं कि सीधी सीधी राम नाम का उच्चारण करो यह वाणी ही लाभकारी है ।
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दस१ अर दस अर तीस तजि१, उभै सबद२ मंहि बास ।
बेद भेद जाणै सकल, सु कहि जगजीवनदास ॥१४६॥
(१-१. दस अर दस....तजि-१०+१०+३०=५० अक्षर छोड़कर ।)
{२.उभै सबद=दो अक्षर, रा एवं म(विस्तार हेतु द्र०-पीछे पृ ४५ की टिप्पणी)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सभी वर्णों को छोड़कर दो ही वर्ण र व म में प्रभु निवसते हैं । इन्हीं में सब वेदों का भेद है ।
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पंचा३ पंचा पंच दोइ, पंच पंच पच्चीस३ ।
कहि जगजीवन बरग बिसरजन४, रांम रिदै हरि ईस ॥१४७॥
(३-३. पंचा पंच...पच्चीस-५+५+१०x२=२०;५x५=२५अक्षर)
{४. वरग विसरजन=वर्ग विसर्जन=वर्ग(पांच अक्षरों के समूह) का त्याग}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पांच वर्णों का समूह वर्ग होता है यथा क वर्ग क, ख, ग, घ, ड़, आदि । इन सभी वर्गों को छोड़कर रा म दो वर्ण ह्रदय में रखें वे ही परमात्मा से मिलवाते हैं ।
(क्रमशः)

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