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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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६ आचार्य कृष्णदेव जी
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घु़डसवार सैनिक मारोठ से लौटकर जयपुर आये और राजा जयसिंह को घु़डसवारों के मुखिया ने कहा - नारायणा दादूधाम के आचार्य कृष्णदेव उच्चकोटि के करामाती हैं, उनके रथ के पास हमारे घोडे बहुत प्रयत्न करने पर भी नहीं जा सके । पचास पैंड दूर ही रहे । अत: हम लोग उनको नहीं पकड सके ।
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फिर उन्होंने जोधपुर राज्य के मारोठ ग्राम में प्रवेश किया । उन का मारोठ में आगमन सुनकर वहां के राजपूत शीघ्र ही उनकी सेवा में आ गये और उन लोगों ने कहा - तुम लोग हमारे प्राणों के रहते हुये गुरुदेव कृष्णदेव जी को मारोठ से नहीं ले जा सकोगे और तुम्हारे शरीर भी मारोठ से नहीं लौट सकेंगे, प्राण ही जायेंगे । अत: पर राज्य की सीमा में हम आप की आज्ञा बिना युद्ध तो कर नहीं सकते थे, इससे लौट आये ।
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राजा ने कहा - ठीक है, एक संत के लिये युद्ध उचित नहीं था । आप लोगों ने अच्छा ही किया है । किन्तु राजा को गलते के महन्तजी का विवाह तो करना ही था । अत: दूसरी आज्ञा दी कि अब जो नारायणा दादूधाम पर आचार्य के प्रतिनिधि होकर कार्य कर रहे हैं, उनका विवाह करा दिया जाय ।
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उस समय कृष्णदेव जी के शिष्य कृपाराम जी मुख्य भंडारी थे । नारायणा दादूधाम की मर्यादा यही है कि - आचार्य नहीं हो तो पीछे से आचार्य का कार्य मुख्य भंडारी ही करे । अत: कृपारामजी को बुलाकर राजा ने कहा - तुमको विवाह करना होगा । कृपारामजी ने कहा - नारायणा दादूधाम की गद्दी पर सदा से विरक्त ही बैठते आये हैं ।
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मेरे गृहस्थ हो जाने मुझे समाज कैसे मानेगा और समाज नहीं मानेगा तब मेरा योग - क्षेम कैसे चलेगा ? राजा को तो गलता के महन्त जी का विवाह कराना था । अत: राजा ने कहा दिया - आप का योग - क्षेम सरकार करेगी । ऐसी कहकर उनको योग - क्षेम के चलने योग्य जागीर दे दी और उनका विवाह करा दिया ।
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कहा भी है -
कृपाराम भंडारि को, गो़ड सुता परनाय ।
जमी दिई जयसिंह ने, राखा उनपर भाव ॥
(दादू चरित्र चन्द्रिका)
फिर गलता के महन्त को कहा - अब तुम भी विवाह करो । वह तो चाहता ही था, केवल ऊपर से ही नट रहा था, विवाह करके गृहस्थ हो गया ।
(क्रमशः)

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