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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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६ आचार्य कृष्णदेव जी
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आचार्य कृष्णदेव जी के भजन में विध्न ~
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गलता के महन्त को राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने पास बुलाया और एकान्त में उनके आगे प्रस्ताव रक्खा - आपको विवाह कर लेना चाहिये । महन्त जी ने कहा - गलता गादी के महन्त तो विरक्त ही होते आये हैं, विवाह कैसे किया जा सकता है ? राजा ने कहा - पर स्त्रियों के साथ सुख भोगने से तो विवाह करना अच्छा है ।
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आपके व्यवहार से तो हम को भी लज्जा से नीचे देखना पडता है । अत: आपको विवाह करना ही होगा । फिर महन्त जी ने कहा - आपके राज्य में दो प्रधान गादी हैं - गलता और नारायणा । आप पहले नारायणा के आचार्य का विवाह करा दीजिये फिर मैं भी विवाह कर लूंगा । राजा के मन में संकल्प हुआ, हो सकता है नारायणाका आचार्य भी ऐसा ही होगा । इससे उसका भी विवाह करना उचित ही होगा ।
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यह सोचकर नारायणा के आचार्य के व्यवहार को बिना देखे ही राजा ने कह दिया कि नारायणा के आचार्य का भी विवाह करा दिया जायेगा । महन्तजी ने कहा - फिर मैं भी विवाह कर लूंगा । राजा ने कहा - ठीक है । किन्तु नारायणा के आचार्य उस समय कृष्णदेव जी महाराज परम विरक्त परमयोगी रात दिन ब्रह्म चिन्तन में रहने वाले महान् संत थे ।
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उनका परिचय लिये बिना राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने आज्ञा दे दी कि - नारायणा दादूधाम के आचार्य का विवाह करा दिया जाय । उक्त राजाज्ञा नारायणा दादूधाम में आचार्य कृष्णदेवजी को सुनाई गई तब कृष्णदेव जी ने नहीं माना । वे मानते भी कैसे, वे तो रात दिन दादू वाणी के विचार में और ब्रह्म भजन में मन रखने वाले महान् संत थे ।
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तब राजा को सूचना दी गई कि नारायणा के आचार्य कृष्णदेवजी विवाह कराना स्वीकार नहीं करते है । जब उक्त सूचना राजा सवाई जयसिंह द्वितीय को मिली तब कृष्णदेव जी पर रुष्ट होकर बोला - मेरी आज्ञा नहीं मानते हैं तो उनको पकड कर मेरे पास ले आओ । फिर पकडने के लिये एक घु़डसवार सेना की टुकडी नारायणा दादूधाम पर भेज दी गई ।
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घु़डसवार सेना की नियुक्ति का पता कृष्णदेव जी महाराज को अपनी योगशक्ति से लग गया किन्तु वे उच्च कोटि के महात्मा थे, अपनी करामात दिखाना उचित नहीं समझते थे । इससे वे अपने भजन में आने वाले विध्न से बचने के लिये जयपुर राज्य से बाहर जाना श्रेष्ठ समझ के रथ में बैठ कर कुछ संतों के साथ मारवाड की ओर चल दिये ।
(क्रमशः)

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