बुधवार, 24 सितंबर 2025

पचास पैंड भूमि का अन्तर

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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६ आचार्य कृष्णदेव जी
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घु़डसवार सेना ने भी उनका पीछा किया और कृष्णदेवजी को संतों के साथ जोधपुर राज्य की ओर जाते देखा । फिर यह सोच कर कि जोधपुर राज्य की सीमा में प्रवेश करने पर पकडने में कठिनता पडेगी । अत: उन्होंने अपने घोडों को शीघ्रता से चलाकर पकडने का पूरा प्रयत्न किया किन्तु पकड नहीं सके ।
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घोडों के और रथ के पचास पैंड भूमि का अन्तर भगवत् कृपा से बना ही रहा । वे अति यत्न करके भी कृष्णदेव जी को नहीं पकड सके । पकड भी कैसे सकते थे । कृष्णदेवजी तो द्द़ढ निश्‍चयी सिद्ध महात्मा थे ।
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कहा भी है -
“राज शक्ति से संत की, होती शक्ति महान् ।
कृष्णदेव को गह न सकी, नृप सेना हैरान ॥द्द.त.११॥
इस प्रकार नारायणा दादूधाम से उत्तर की ओर १४कोस पर जोधपुर राज्य के मारोठ ग्राम में कृष्णदेव जी ने प्रवेश किया । वहां दादूजी महाराज के शिष्य मोहन जी दफतरी के स्थान में पहुँच गये ।
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स्थानीय साधु को जब स्थिति का पता लगा तब वे मारोठ के पांचों पानों के सरदारों को सूचना देने गये । सूचना देते ही गुरु भक्त क्षत्रिय वीर शस्त्रों से सु सज्जित होकर अतिशीघ्र ही आचार्य कृष्णदेव जी महाराज की सेवा में उपस्थित हो गये । घु़डसवार भी आ पहुँचे थे किन्तु मार्ग में उन्होंने प्रत्यक्ष करामात देखी थी, घोडे रथ के पास नहीं पहुँच सके थे पचास पैंड दूर ही रहे थे ।
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अत: कृष्णदेव जी को महान् शक्ति संपन्न जानकर उन्होंने बल का प्रयोग अब नहीं किया । किन्तु उनको राजा की आज्ञा को भी मानना था । जब तक उसका उचित उत्तर उनको नहीं मिलता तब तक वे पीछे तो कैसे लौट सकते थे ? घु़डसवार सेना के मुखिया ने कहा - हम कृष्णदेवजी को जयपुर नरेश जयसिंह की आज्ञा से पकडने आये हैं ।
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यह सुनकर - मेडतिये सरदार क्षत्रिय वीरों ने कहा वीरों ! सचेत ! कृष्णदेव जी मारोठ से न जाकर आप लोगों के प्राण ही जा सकते हैं । जब तक हम लोगों के शरीर में प्राण हैं तब तक महाराज कृष्णदेव जी मारोठ से नहीं जायेंगे । 
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यह सुनकर घु़डसवार सेना का मुखिया समझ गया कि हमें तो अपने राज्य से पकड कर लाने की आज्ञा थी । पर राज्य की सीमा में जाकर युद्ध करने की तो आज्ञा नहीं थी । अत: यहां युद्ध करके प्राण गमाना योग्य नहीं हैं । फिर घु़डसवार सेना लौटने लगी ।
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पर राज्य की सीमा में जाकर युद्ध करने की तो आज्ञा नहीं थी । अत: यहां युद्ध करके प्राण गमाना योग्य नहीं हैं । फिर घु़डसवार सेना लौटने लगी । मेडतिये क्षत्रिय वीरों ने कहा - पर राज्य की सीमा में बिना आज्ञा आप लोग घुस आये हैं, उसका दंड तो आप लोगों को अवश्य ही मिलना चाहिये । हम तुम लोगों को ऐसे ही कैसे जाने देंगे ।
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तब कृष्णदेव जी महाराज ने कहा - पर पी़डन रुप हिंसा करना उचित नहीं है क्योंकि इनका तो दोष है नहीं । अत: इनको कष्टप्रद दंड न देकर इनके घोडों की पूंछों के केशो को काटकर इनको छोड दो । महाराज कृष्णदेव जी की आज्ञा तो मान्य होती ही । सब ने मान ली । घोडों के पूंछों के केश काट कर उनको छोड दिया ।
(क्रमशः)

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