सोमवार, 27 अप्रैल 2015

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
हरि नाम देहु निरंजन तेरा, हरि हर्ष जपै जिय मेरा॥टेक॥
भाव भक्ति हेत हरि दीजे, प्रेम उमंग मन आवै ।
कोमल बचन दीनता दीजे, राम रसायन भावै ॥१॥
विरह वैराग्य प्रीति मोहि दीजे, हृदय साच सत भाखूँ ।
चित चरणों चिंतामणि दीजे, अंतर दृढ़ कर राखूँ ॥२॥
सहज सँतोष शील सब दीजे, मन निश्चल तुम लागै ।
चेतन चिन्तन सदा निवासी, संग तुम्हारे जागै ॥३॥
ज्ञान ध्यान मोहन मोहि दीजे, सुरति सदा संग तेरे ।
दीन दयाल दादू को दीजे, परम ज्योति घट मेरे ॥४॥

परिचय पूर्वक विनय कर रहे हैं - हे निरंजन ! आपका हरि नाम मुझे दें, मेरा मन हरि नाम को हर्षित होकर जपेगा ।
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हे हरे ! भाव और प्रेमाभक्ति दीजिये, मेरे मन में प्रेम की लहर उठने लगे ऐसी कृपा कीजिये । कोमल वचन, दीनता, राम - रसायन प्रिय लगने की योग्यता,
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विरह, वैराग्य, प्रीति, हृदय में सत्य धारण और सत्य बोल ने की क्षमता, चित्त में आपके चरण तथा हृदय में नाम चिन्तामणि को दृढ़ता से रख सकूं,
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ऐसा बल और स्वाभाविक शील, सँतोषादि दिव्य गुण प्रदान करने की कृपा करिये । मेरा मन निश्चल होकर आप में ही लगे, सदा आपके चेतन स्वरूप का चिन्तन करते हुये तथा आपके संग जागते हुये निवास करे ।
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हे विश्व - विमोहन ! अपना ध्यान और ज्ञान प्रदान करें । मेरी वृत्ति सदा आपके संग रहे और दीन दयालो ! मेरे अन्त:करण में आपके स्वरूप रूपा परम - ज्योति जगती रहे, ऐसी योग्यता प्रदान करें ।
(क्रमशः)

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