श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ~ १ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ~ १ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

= २०० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*मन मनसा माया रती, पंच तत्व प्रकाश ।* 
*चौदह तीनों लोक सब, दादू होहु उदास ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *समता*
#################### 
व्यासजी के आज्ञा से शुकदेवजी आत्मज्ञान प्राप्ति के लिये विदेहराज जनक की मिथिलापुरी में गये, तब सब प्रकार की भोग-सामग्री में, स्त्री-पुरुषों में, धूप -छाया में आदर-अनादर आदि में सम ही रहे ।
इसी कारण राजा जनक ने उनको यह कहते हुये कि - आप सुख-दुख, लोभ-क्षोभ, नाच-गान, भय-भेद आदि सबसे मुक्त परम ज्ञानी हैं । आप अपने ज्ञान में कमी मानते हैं, इतनी ही कमी है और आप में कोई कमी नहीं, महान सम्मान किया था ।
इससे सूचित होता है कि समता से ही महान सम्मान होता है ।
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १९९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*अन्तरगत औरै कछु, मुख रसना कुछ और ।* 
*दादू करणी और कुछ, तिनको नांही ठौर ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *वैराग्य*
#################### 
मुगल शासन-काल में दक्षिण के रंजनम् गांव में शान्तोबा नामक एक धनी था । वह विषय सुख में ही निमग्न था । संत तुकाराम के संग से उनका जीवन बदला । वह सब कुछ त्याग कर वन में जाकर के हरि भजन करने लगा । 
एक ब्राह्मण अपनी पत्नी को बार बार यह कहकर कि - मैं शान्तोबा के पास जाकर भजन करूंगा दुखी किया करता था । 
एक दिन शान्तोबा भिक्षा के निमित उसी के घर पर आ निकले । ब्राह्मणी ने अपने पति की उपयुक्त बात उन्हें सुना कर कहा - भगवन मुझे पति-वियोग की बात सुनकर बड़ा क्लेश होता है। शान्तोबा - अब कहे तब कह देना कि - कहते क्या हो जाते क्यो नहीं ? 
ब्राह्मणी ने वैसा ही किया । ब्राह्मण कुपित होकर शान्तोबा के पास चला गया । भोजन के समय शान्तोबा ने ब्राह्मण को जल लाने के लिये भेज कर पीछे से उसका कम्बल फाड़कर फेंक दिया और लोटा छुपा दिया, शान्तोबा और उनकी पत्नी भोजन करने बैठ गये, उसे भोजन का न पुछा । 
इस व्यवहार से ब्राह्मण बड़ा दुखी हुआ । मांगने पर दो-चार छोटे छोटे फल दिये, उनसे सन्तोष न हुआ, कारण मार्ग चलकर आया था, भूख बहुत लगी थी । इस लिये लम्बा सांस छोड़ता हुआ बोला - घर होता तो ४ बार खाता शान्तोबा - भाई ! वैराग्य कहने से नहीं होता । चलो मैं तुम्हे घर पहुचा देता हूँ और ब्राह्मणी को भी समझा दूंगा । 
ब्रह्मण शान्तोबा के साथ घर चला गया फिर कभी भी ब्रह्मणी को उपर्युक्त बात नहीं सुनाई । इससे सुचित होता है कि वाणी मात्र का वैराग्य - वैराग्य नहीं होता ।
"कथन मात्र की विरति से, सरे न कुछ भी काम ।
शान्तोबा की बात सुन, विप्र गया फिर धाम ॥१९४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १९८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*खरी कसौटी पीव की, कोई बिरला पहुँचनहार ।* 
*जे पहुँचे ते ऊबरे, ताइ किये तत सार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पारिख का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
#################### 
एक संत कुछ संतों के साथ एक नगर की गली में जा रहे थे । किसी ने अटारी के ऊपर से उनके सिर पर राख का ठीकरा डाल दिया ।संत ने अपने वस्त्र झाड़ करके कहा - भगवन ! आपने बड़ी कृपा की ।
एक साथी ने कहा-राख का ठीकरा सिर पर पड़ना भी कोई भगवत् कृपा है ? संत हां, यह मेरा सिर अग्नि का ठीकरा पड़ करके जलने योग्य था, किन्तु भगवान ने कृपा करके राख के ठीकरे से ही बचा दिया । इससे सूचित होता है कि ईश्वर की कृपा का अनुभव सच्चे संत ही करते हैं ।
ईश कृपा अनुभव करे, सच्चे संत सुजान ।
भस्म ठीकरा सिर परे, की हरि कृपा महान॥७३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १९७ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू कथनी और कुछ, करणी करैं कछु और ।* 
*तिन थैं मेरा जीव डरै, जिनके ठीक न ठौर ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *क्षमा*
#################### 
युधिष्ठर आदि राजकुमारों को एक दिन पाठ दिया कि - मनुष्य को क्रोध त्याग देना चाहिये । कारण कि यह जिस हृदय में प्रकट होता है उसे भी जलाया है । तब दुसरों को जलावे इसमे तो कहना ही क्या ?
फिर परीक्षक ने परीक्षा ली तब अन्य सबने तो उपरोक्त पाठ सुना दिया किन्तु युधिष्ठर ने कहा - अभी पूरा पूरा याद नहीं हुआ है । तब परीक्षक उन्हें पीटने लगा, तो भी युधिष्ठर के मुख पर क्रोध के चिन्ह नहीं दिखाई दिये तब द्रोणाचार्य समझ गये कि युधिष्ठर ने अक्रोध का पाठ याद किया, अपने जीवन में भी उतार लिया है । तभी तो इतना पीटने पर भी इन्हें क्रोध नहीं आया ।
फिर द्रोणाचार्य ने युधिष्ठर को छाती से लगाकर कहा - "वत्स ! तुमने ही यथार्थ में पाठ याद किया है ।"
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

= १९६ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू गैब मांहिं गुरुदेव मिल्या, पाया हम परसाद ।* 
*मस्तक मेरे कर धर्या, दिक्ष्या अगम अगाध ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *वैराग्य*
#################### 
संतवर दादूजी अहमदाबाद के नागर ब्राह्मण लोदीराम को सम्वत् १६०० की फाल्गुन सुदी ८ को प्रात:काल शिशु अवस्था में नदी -प्रवाह में प्राप्त हुये थे । उन्हें लोदीरामजी ने अपना पुत्र मान लिया था, कारण उन्हें इसी प्रकार पुत्र मिलने का एक संत का वर था । बड़े प्रेम से बालक का पालन पोषण किया था । माता-पिता का उन पर भारी प्रेम था ।
११ वर्ष की अवस्था में कांकरिया तालाब पर बालकों के साथ खेलते हुये दादूजी को भगवान् ने वृद्ध ब्राह्मण के वेष में दर्शन तथा उपदेश दिया, उससे दादूजी के हृदय में वैराग्य प्रकट हुआ । वे अपने परम स्नेही माता-पिता धन-धाम आदि को तृण के समान जानकर तथा त्याग करके राजस्थान में आकर साधना करने लगे, इससे ज्ञात होता है कि वैराग्य प्रकट होने पर मोह नहीं रहता ।
प्रकट होत वैराग्य के, मोह रहे नहिं लेश ।
स्वजन धाम धन त्यागकर, दादू गये विदेश॥१८४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १९५ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*समता के घर सहज में, दादू दुविध्या नांहि ।* 
*सांई समर्थ सब किया, समझि देख मन मांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
#################### 
नियमानन्द(निम्बार्काचार्य) के यहां एक दिन एक दण्डी संत आ गये । दोनों में अध्यात्म विचार चलने लगा । समय का कुछ ज्ञान रहा, शाम हो गई । सूर्यास्त होने पर आचार्य ने संत को भोजन के लिये कहा । संत - सूर्यास्त होने पर मैं भोजन नहीं करता । अतिथि भूखे रहेंगे, यह आचार्य को सहन नहीं हुआ और उनकी वेदना बहुत बढ गई । 
भगवान् भी उनके दु:ख को सह न सके । तत्काल ही समीप के निम्ब वृक्ष में नियमानन्दजी को सूर्य दिखाई दिया । उन्होंने अन्य सब के सहित दण्डी को सूर्य के दर्शन कराकर उन्हें भोजन कराया । उसी दिन से उनका नाम निम्बादित्य वा निम्बार्क पड़ गया ।
ईश्वर अपने भक्त की, रखते आये टेक ।
नियमानन्द के नीम में, रवि को लखा अनेक ॥१२१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

= १९४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*गूंगा गहिला बावरा, सांई कारण होइ ।* 
*दादू दीवाना ह्वै रहै, ताको लखै न कोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ जीवित मृतक का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *क्षमा*
#################### 
संत उसमान हैरी को किसी पुरुष ने भोजन का निमन्त्रण दिया । वे गये तब परीक्षा के लिये उसने उन्हें घर में नहीं घुसने दिया । लौट चले । तब पुन: बुलवाया । फिर आये तब पुन: धक्के देकर निकाल दिया । इसी प्रकार उसने कई बार निरादर किया । 
अन्त में उसने कहा - 'महाराज ! मैं आपकी परीक्षा कर रहा था । आप नि:संदेह उत्तम संत हैं ।' वे बोले - "भाई ! तुमने जो मेरा स्वभाव देखा है वह तो कुत्ते में भी होता है । उसे बुलाओ तब आ जाता है और हटाओ तब चल देता है । अत: उससे मुझ में क्या उत्तमता है ।" क्षमाशील उसमान हैरी ने धक्के तथा सम्मान को सम ही समझा है ।
क्षमाशील को होत सम, मान और अपमान ।
धक्केखाकर भी नहीं, मन उसमान मलान ॥२७४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १९३ =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*सतगुरु की समझै नहीं, अपणै उपजै नांहि ।* 
*तो दादू क्या कीजिए, बुरी बिथा मन मांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
#################### 
एक गुरु अपने शिष्य को सदा कहा कहते थे कि ईश्वर को सर्व रूप जानना । एक दिन शिष्य कहीं जा रहा था और उसके सामने से हाथी आ रहा था । महावत ने आवाज दी - हाथी मस्ती में है, दूर हट जाओ । शिष्य के मन में विचार हुआ जब भगवान् सर्वरूप है तब मैं क्यों हटूं ? हाथी भी भगवान् मैं भी भगवान् । भगवान् को भगवान से क्या हानि हो सकती है ? नहीं हटा । समीप में आते ही हाथी ने जोर से सूँड मारी । वह दूर जा गिरा, बहुत चोट आई । 
इससे गुरुजी के उपदेश में उसे परम निर्वेद(महान् ग्लानि) हुआ । गुरुजी से कहा - ईश्वर को सर्वरूप मानने से मुझे यह फल मिला । गुरुजी ने कहा - तूने ईश्वर को सर्वरूप नहीं माना, यदि मानता तो यह खेद नहीं करता । जैसे हाथी और तू ईश्वर स्वरूप था, वैसे ही महावत भी तो ईश्वर स्वरुप था । उसकी बात क्यों नहीं मानी ? यदि मान कर दूर हट जाता तो तुझे यह खेद नहीं होता । ईश्वर की सर्वरूपता के मानने में कमी का ही यह फल होता है । इससे सूचित होता है कि ईश्वर की सर्वरूपता के मानने की कमी से क्लेश ही होता है ।
सर्वरूप हरि लखन में, कमी रहे से खेद ।
करिकर की खा चोट को, हुआ परम निर्वेद ॥६४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

= १९२ =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।* 
*परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *क्षमा*
#################### 
(१) बद्रिकाश्रम में नर-नारायण भगवान् के तप को भंग करने के लिये कामदेव की सेना ने अति प्रयत्न किया था, तब भी नारायण भगवान् ने उनका सबका सत्कार करते हुये अभयदान देते हुये उन्हे उर्वशी नामक अप्सरा दी थी ।
(२) त्रिदेव परीक्षा के समय भृगु ऋषि ने भगवान् हरि(विष्णु) जी की छाती में लात मारी थी तब भगवान् ने यह कह कर कि - मेरी छाती अति कठोर है आपके चरण में चोट आई होगी, सतकार ही किया था ।
(३) यादव विनाश के समय भगवान् श्री कृष्ण के चरण में जरा नामक व्याध ने वाण मारा था, जब भगवान् ने उसे अभयदान देते हुये स्वर्ग में भेजा था । उपरोक्त तीनों कथायें प्रसिद्ध हैं ।
अपकारक का भी करें, क्षमाशील सत्कार ।
नारायण हरिकृपा ने, किया भली विधि प्यार ॥२७१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १९१ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।* 
*सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर भरोसा*
#################### 
महात्मा गांधी अफ्रीका से लौटकर बम्बई में रहने लगे थे । उन दिनों उनका दस वर्ष का दूसरा लड़का मणिलाल बिमार हो गया । उनका ज्वर उतरता ही नहीं था । धबराहट होती थी, रात को सन्निपात के लक्षण भी दिखाई देने लगे । डाक्टर ने कहा - इसे दवा कम काम देगी, अण्डा और मुरगी का शोरवा देने की आवश्यकता है । गांधीजी - हम अन्न अहारी हैं, मेरा विचार इनमें से एक भी वस्तु देने का नहीं है । डाक्टर के अति आग्रह करने पर भी गांधीजी ने उपरोक्त वस्तुएँ नहीं दी । केवल राम -भरोसा रखकर प्रार्थना करने में ही मणिलाल ठीक हो गया, इससे सूचित होता है कि रामभरोसे से रक्षा होती है ।
रामभरोसा जो रखें, सुधरे उनका हाल ।
रामभरोसे बच गया, गांधीसुत मणिलाल ॥२६९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

रविवार, 8 दिसंबर 2019

= १९० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।* 
*परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *दया*
#################### 
द्रौपदी के पांचों पुत्रों को सोते समय अश्वत्थामा ने मार दिया, तब उसे पकड़कर अर्जुन द्रौपदी के पास लाये । द्रौपदी ने दया आ गई । वे अर्जुन से बोली - हे आर्य, हे वीर, इन गुरु पुत्र को छोड़ दो । इनका वध करने से गुरु पत्नि को भी मेरे समान ही शोक में डूबना होगा । मैं ऐसा नहीं चाहती, यह कह करके अश्वत्थामा को छुड़वा दिया ।
पुत्रघाति पर भी दया, करत दयालु धीर ।
कहा द्रौपदी ने पार्थ से, गुरु सुत छोड़ो वीर ॥१३८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १८९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*सेवक की रक्षा करै, सेवक की प्रतिपाल ।* 
*सेवग की वाहर चढै, दादू दीन दयाल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विनती का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *वैराग्य*
###############
सुरसुरीजी अपने पति सुरसुरानन्दजी के साथ वृन्दावन में आकर विशेष विरक्त होने से एकान्त में भजन करने में लगी थी । एक समय उनकी कुटी के पास एक मुसलमानी यूथ ने अपना पड़ाव डाला । यूथ का सरदार सुरसरी को देख काम के वशीभूत हो उसे पकड़ने की आज्ञा दी । उसी समय भगवान सिंह के रूप में प्रकट हुए और मुसलमानों को मारकर भगा दिया और सुरसुरी की रक्षा की ।
करते रक्षा विरत की, सत्वर श्रीभगवान ।
रक्षा की सुरसरी की, होकर सिंह महान ॥२१३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

= १८८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*है तो रती, नहीं तो नांहीं, सब कुछ उत्पति होइ ।* 
*हुक्मैं हाजिर सब किया, बूझे बिरला कोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *ईश्वर*
###############
इस कल्प के प्रथम मन्वन्तर में, देवता अनाहार से क्षीण हो रहे थे । देवताओं के दुर्बल होने से व्यक्त जगत नष्ट होता जा रहा था । वर्षा, अन्न, अग्नि, वायु और पृथ्वी सब नि:सत्त्व प्राय: हो चले थे तब महर्षि रूचि की पत्नि आकूती से भगवान से यज्ञ रूप में प्रगट होकर अग्निहोत्र द्वारा सब को शक्ति प्रदान की थी । उन्ही के नाम से अग्निहोत्र यज्ञ नाम से पुकारा जाने लगा है ।
क्षुधा त्रस्त सुर आदि को, करत तृप्त भगवान ।
यज्ञ रूप होकर किया, कर सुयज्ञ अनुष्ठान ॥४८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १८७ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू परचा माँगें लोग सब, कहैं हमकौं कुछ दिखलाइ ।*
*समरथ मेरा सांइयाँ, ज्यों समझैं त्यों समझाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *दया*
###############
नरेना के दादूपंथ के आचार्य सन्त जैतरामजी के पास आकर एक चारण प्राय: याचना करता था किन्तु लेता कुछ नहीं था, कह देता था कि कभी आवश्यकता पर ले लूंगा । जैतसाहबजी याचक को कभी निराश नहीं करते थे । उनका यह प्रण ही था। एक दिन वे सरोवर पर स्नान कर रहे थे, उनके पास कुछ नहीं था । उसी समय उपरोक्त चारण ने आकर कहा - मझे इसी क्षण अन्न चाहिये । महाराज ने जल की अंजली भरी, वही बेझड़(जौ चना) रूप हो गई । उनका प्रण रह गया चारण चरणों में जा गिरा । कारण उसको उनसे लेना न था, केवल उनके प्रण की परीक्षा करनी थी ।
संतन की प्रण हरि रखे, सर्व देश सब काल ।
दिया जैत ने तुरन्त ही, सरसे अन्न निकाल ॥१००॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

= १८६ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*एका एकी राम सों, कै साधु का संग ।*
*दादू अनत न जाइये, और काल का अंग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ चेतावनी का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* 
###############
भक्त के संग से सिंह भी भक्त -
#################
गढ मण्डल के राजा पीपाजी अपनी पत्नी सीताजी के सहित द्वारिकाजी के दर्शन करके लौट रहे थे ।मार्ग में उन्हें सिंह मिल गया । यह प्राय: मनुष्यों की हिंसा करता था । पीपाजी की ओर भी लपका । पीपाजी ने गले से तुलसी की माला निकाल कर सिंह के गले में डाल दी और श्री कृष्ण मंत्र का उपदेश कर दिया । 
भक्त सर्व हितकारणी दृष्टि काम कर गई । सिंह ने अपने अगले पैर जोड़ कर पीपाजी का उपदेश स्वीकार कर लिया। मांस का त्याग करके जप करने लगा और अन्त में भजन करते-करते दीक्षा के सातवे दिन प्राण त्याग करके दूसरे जन्म में जूना गढ का परम भक्त नरसी मेहता हुआ ।
भक्त संग से सिंह भी, हो जाता है भक्त ।
पीपा के उपदेश से, सिंह ईश अनुरक्त॥४८०॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १८५ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पूरक पूरा पास है, नाहीं दूर, गँवार ।*
*सब जानत हैं, बावरे ! देबे को हुसियार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
=====================
.
प्रार्थना से अभाव की पूर्ति -
###############
मूलर साहब(एक संत) के अनाथालय था, जिसमें बहुत से अनाथ लड़के थे एक दिन रसोईयों ने आकर कहा - "आज भोजन का कुछ भी समान नहीं है । हम लोग क्या बनावें ।" मूलर - "तुम अपना काम करो ।" रसोईयों ने भोजन बनाने के प्रथम के सब काम कर लिये । 
उधर मूलर साहिब ने भगवान से प्रार्थना की - "भगवान ! ये बच्चे आपके ही हैं" आपने ही इन्हे आज तक भोजन दिया है, आज भी आप ही देंगे, दूसरे की क्या शक्ति है ।" रसोईयों ने फिर आकर कहा - साहिब ! समय बहुत कम रह गया है, कुछ प्रबंध कीजिये ।" मूलर-हमने अपना काम कर दिया है, अब शेष जिनका है वे करेंगे । तुम अपना काम करो ।" 
पंक्ति का समय हो गया है साहिब ने कहा - घंटी लगा दो ।" घंटी लगाते ही द्वार पर से आवाज आई- माल के छकड़े खाली कराओ ।" एक मनुष्य ने मूलर के पास जाकर कहा - "अमुक साहिब के यहां आज एक पार्टी थी किन्तु कुछ विध्न हो जाने से वह नहीं हो सकी ।उसके लिये बना हुआ भोजन आपके यहां के बच्चों के लिये भेजा है ।" समय पर पंक्ति लग गई और सब आनंद से जीम लिये । 
इससे सूचित होता है कि प्रार्थना से अभाव की पूर्ति भी शीध्र ही हो जाती है ।
पूरा होत अभाव झट, विनय करत मन लाय ।
मूलर के भोजन गया, जीमे सब सुखपाय ॥१५५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

= १८४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*बाकी कौन बिगारै, जाकी आप सुधारै ।*
*कहै दादू सो कबहूँ न हारै, जे जन सांई संभारै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ शूरातन का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *तप*
############################
देवताओं से अश्विनीकुमारों को वैद्य कहकर देव समाज से बाहर कर दिया था । इन्द्र की आज्ञा से उनका सोमपान बंद था । राजा शर्याती के यज्ञ में च्यवनजी ने अश्विनी कुमारों को सोमपान कराया था । इससे कुपित होकर इन्द्र ने च्यवनजी को मारने के लिये बज्र उठाया । च्यवन ने तपोबल से बज्र सहित इन्द्र की भुजा को रोक दिया । इन्द्र कुछ भी नहीं कर सके । तब से पुन: अश्विनी कुमारों को सोमरस मिलने लगा । इस कथा से सूचित होता है कि तपोबल से देवता भी हार मानते हैं ।
तप से सुर भी हारते, यह न भृशा है बात ।
च्यवन अश्विनीसुतन को, सोम दिया विख्यात॥२३९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १८३ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*आत्मराम विचार कर, घट घट देव दयाल ।*
*दादू सब संतोंषिये, सब जीवों प्रतिपाल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *उदारता*
############################
एक बड़े धनी और उदार ईश्वर - प्रेमी मनुष्य विचरते हुए एक खजूर के बाग में जा पहुँचे। उसी समय बाग के रखवाले के लिये दो रोटियां आई ।
इतने में ही वहां एक कुत्ता भी आ गया । रखवाले ने एक रोटी कुत्ते को दे दी । वह तुरन्त खा गया, तब दूसरी भी दे दी ।
यह देखकर धनी ने पूछा - तुम्हारे लिये कितनी रोटियां आती है ?
रखवाला - दो । धनी फिर तुमने दोनों कुत्ते को क्यों डाल दी ?
रखवाला - यहां तो कोई कुत्ता था नहीं । यह दूर से आया था अत: मैने यह सोचकर कि वह भूखा नहीं रहे।
यह सुन कर धनी उदार का उदारता का गर्व गल गया । उसने बाग और रखवाले दोनों को खरीद कर के बाग, बाग के रखवाले को देकर उसे दासता से मुक्त कर दिया ।
भूखा रहकर भी सु दे, पर को अन्न उदार ।
रखवाले ने श्वान को, रोटी दी कर प्यार ॥१७३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

= १८२ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*झूठा साचा कर लिया, काँचा कंचन सार ।*
*मैला निर्मल कर लिया, दादू ज्ञान विचार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *सरलता*
############################
एक संत अपनी धुन में चले जा रहे थे । उन्हें देखकर एक मनुष्य ने उनको सुनाते हुए दूसरे लोगों से कहा - देखो मोडा कैसी मस्ती में जा रहा है ? यह सुनकर संत ने खड़े होकर प्रसनन्ता के साथ कहा - तुम बड़े बुद्धिमान हो, कारण तुमने हमारा नाम यथार्थ रखा है हमने मोह में डाह लगाई है इसलिये हमारा मोडा नाम सार्थक है । संत के इस सरल वचन को सुनकर सब प्रसन्न हुए ।
सरल मनुज विपरीत को, करता है अनुकूल ।
मोडा सुनकर संत ने, कहा वचन हिय फूल ॥१६१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

= १८१ =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*सांसैं सांस संभालतां, इक दिन मिलि है आइ ।*
*सुमिरण पैंडा सहज का, सतगुरु दिया बताइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
=====================
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *अभ्यास*
############################
एक दिन राजकुमार गुरु की आज्ञा से वन में शिकार खेलने गये थे, साथ में एक कुत्ता भी था । कुत्ते ने भीलराज हिरण्यधनु के पुत्र और द्रोणाचार्य के एक शिष्य को बाण-विद्या का अभ्यास करते देखकर भूँकना आरम्भ कर दिया । 
एकलव्य ने उसके भुँकने को अपने अभ्यास में विध्न जानकर सात बाण मार करके कुत्ते का मुख भर दिया, किन्तु कुत्ते के किंचित भी चोट नहीं आई । उसकी यह फुर्ती और हस्तलाधव, शब्द-वेध देखकर पाण्डवों ने प्रशंसा भी की । बिना अभ्यास ऐसा होना कठिन है । 
इससे सूचित होता है कि अभ्यास से कठिन से कठिन काम भी सुगम हो जाता है ।
कठिन कार्य भी सुगम हो, कीन्ह भल अभ्यास ।
एकलव्य के शरन से, कुत्ते को नहिं त्रास ॥३०२॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###