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*राम जपै रुचि साधु को, साधु जपै रुचि राम ।*
*दादू दोनों एक टग, यहु आरम्भ यहु काम ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *अर्चना भक्ति*
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सदनजी कसाई के पास एक शालग्रामजी की मूर्ति थी । वे उससे मांस तोला करते थे । एक वैष्णव ने यह अनुचित समझ कर मूर्ति सदन से ले ली और घर जाकर विधि से पूजा करी । किन्तु रात्रि में स्वप्न में भगवान ने उसे कहा - "मुझे शीध्र सदना के घर पहुंचा दे ।" वैष्णव डर गया और दूसरे दिन पुन: सदना को दे आया । इससे सुचित होता है कि बिना प्रेम की पूजा से भगवान् कभी भी प्रसन्न नहीं होते ।
बिना प्रेम पूजा किये, प्रसन्न हों हरि नाँहिं ।
वैष्णव को स्वप्ना दिया, भेज सदन घर माँहिं ॥१४२॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^