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सोमवार, 20 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(२३. अंत समय की साखी ४/६) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (२३. अंत समय की साखी ४/६) =*
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*बैद हमारै रामजी ओषधि हू है राम ।* 
*सुन्दर यहै उपाइ अब सुमिरन आठौं जाम ॥४॥* 
(किसी ने रोगशमन हेतु ओषध के प्रयोग की बात कही तो उनने उत्तर दिया -) 
अब हमारे वैद्य एकान्ततः भगवान् ही है, उनका पवित्र नाम ‘राम’ ही हमारी एकमात्र ओषधि है । अब तो इसके शमन का एकमात्र उपाय हमारे पास यही रह गया है कि उसी भगवान् का पवित्र नाम हम निरन्तर जपते रहें ॥४॥ 
*सात बरस सौ मैं घटै इतने दिन की देह ।* 
*सुन्दर आतम अमर है देह षेह की षेह ॥५॥* 
(महाराज अपने शरीर की वास्तविक आयु सूचित कर रहे हैं -) 
मेरे इस शरीर की आयु एक सौ(१००) वर्ष पूर्ण होने में केवल सात(७) वर्ष कम है । महाराज कहते हैं –यह आत्मा तो अजर अमर है, केवल इस देह को धूल में मिल जाना है ॥५॥ 
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*सुन्दर संसै को नहीं बड़ो महोच्छव येह ।* 
*आतम परमातम मिले रहौ कि बिनसौ देह ॥६॥* 
आज मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है । मेरे लिये तो यह दिन एक महोत्सव के रूप में है कि यह आत्मा परमात्मा से मिलेगा । मुझे इसका कोई सन्ताप नहीं है कि मेरा यह देह अब जीवित रहे या विनष्ट हो जाय ॥६॥ 
॥ इति फुटकर काव्य संग्रह समाप्त ॥६॥ 
॥ इति श्रीस्वामी सुन्दरदास विरचित समस्त सुंदर ग्रंथावली सम्पूर्णम् ॥

रविवार, 19 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(२३. अंत समय की साखी १/३) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (२३. अंत समय की साखी १/३) =*
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*निरालम्ब निर्बासना इच्छाधारी येह ।* 
*संस्कार पवन हि फिरै शुष्कपर्ण ज्यौं देह ॥१॥* 
ब्रह्मलीन होने से कुछ समय पूर्व महाराज के श्रीमुख से ये साषियाँ प्रस्फुटित हुई थीं – 
यह आत्मा आलम्बन(आश्रय) रहित(स्वतन्त्र), वास रहित(कामादिक इच्छाओं से रहित) है, परन्तु संस्कारवश यह अपनी इच्छाओं के अधीन हो गया है तदनुसार यह सांसारिक कृत्यों में लीन है । अब यह यहाँ देहाश्रित होकर यहाँ उसी तरह लीन है मानो कोई सूखा पत्ता, वायु के झोंके से, इधर उधर उड़ता हो ॥१॥ 
*जीवन मुक्त सदेह तूं लिप्त न कबहूं होइ ।* 
*तौ कौं सोई जानि है तब समान जे कोइ ॥२॥* 
महात्मा अपने ही आत्ना को उपदेश कर रहे हैं – 
तूँ देहधारी होकर भी यथार्थतः सदा सर्वत्र अलिप्त ही रहता है । तुमको यथार्थतः वही जान सकेगा जो तुम्हारे ही तुल्य इस संसार से अलिप्त(असंग) हो ॥२॥ 
*मानि लिये अंतहकरण जे इन्द्रिनि के भोग ।* 
*सुन्दर न्यारौ आतमा लग्यौ देह कौं रोग ॥३॥* 
तुमने अन्तःकरण के सहारे से इन्द्रियों द्वारा भोगने योग्य विषयों को अपना भोग्य मान लिया है । वस्तुतः तुम तो इनसे पूर्णतया पृथक् हो । यह तो देह का रोग था जो तुमको लग गया है ॥३॥
(क्रमशः)

शनिवार, 18 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(२१. संस्कृत श्लोका: छंद भुजंगप्रयातं) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (२१. संस्कृत श्लोका:) =*
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*छंद भुजंगप्रयातं*
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*न वेदो न तन्त्रं न दीक्षा न मन्त्रं,* 
*न शिक्षा न शिष्यो न आयुर्न यन्त्रं ।* 
*न माता न तातो न बन्धुर्न गोत्रं,*
*नमस्ते नमस्ते नमस्ते विचित्रम् ॥*
उसे न वेद कह सकते हैं, न तन्त्रशास्त्र । न वह गुरु द्वारा प्रदत्त दीक्षा वचन है अतः मन्त्र भी नहीं है । न सद्गुरु प्रदत्त शिक्षा ही है और न वह शिष्य है । न वह आयु है न यन्त्र । न उसे माता कह सकते हैं न पिता । न बन्धुका समान गोत्र वाला ही कह सकते हैं । वह तो इन सबसे विचित्र(भिन्न) ही है । अतः उसे बार बार प्रणाम है ॥५॥ 
*छंद अनुष्ठुप्* 
*ब्र ई जी च त्रिधा प्रोक्तं चि मा अ वै त्रिधास्तथा ।*
*चि ब्र मा ई अजिज्ञातुं सत्सा स स ससाश्रिता ॥* 
ब्रह्म, ईश्वर एवं जीव – ये तीनों एक दूसरे से भिन्न हैं । चित् माया एवं अविद्या – ये तीनों भी पृथक पृथक हैं । परन्तु इन सभी(६) को जानने के लिये सत् शास्त्र एवं सज्जनों का संग अत्यावश्यक है । 
(क्रमशः)

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(२१. संस्कृत श्लोका: ३) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (२१. संस्कृत श्लोका:) =*
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*छंद अनुष्ठुप्* 
*अहं ब्रह्मेत्यहं ब्रह्मेत्यहं ब्रह्मेति निश्चयम् ।* 
*ज्ञाता ज्ञेयं भवेदेकं द्विधा भावविवर्जितम् ॥३॥* 
‘अहं ब्रह्म’ – ऐसा कहने पर, ‘मैं ब्रह्म ही हूँ’ या ‘मैं ही ब्रह्म हूँ’- यह समझना चाहिये । वस्तुतः ज्ञाता(जानने वाला) एवं ज्ञेय(जानने योग्य विषय) – दोनों एक ही हैं । भिन्न नहीं । दिव्य ज्ञान होने की दशा में वे एक हो ही जाते हैं । इनका द्विधा(द्वैत) भाव-द्वैत(‘ब्रह्म एवं माया’) ‘मैं और तूँ’, ‘ज्ञाता एवं ज्ञेय’ ऐसा भाव नष्ट हो जाता है ॥३॥ 
*अहं विख्यात चैतन्यं देहो नाहं जडात्मकम् ।* 
*जडाजडो न सम्बन्धो देहातीतं निरामयम् ॥४॥* 
मैं(आत्मा) प्रसिद्ध-चेतन(ब्रह्म) हूँ । जडात्मक स्थूल देह नहीं हूँ । निष्कर्ष यह है – देह में आत्मा का अध्यास अज्ञान है । जड के साथ चेतन का सम्बन्ध सत्य(यथार्थ) नहीं है । जो चेतन है वह जड़ नहीं है तथा जो जड़ है वह चेतन नहीं । क्योंकि समस्त जड़ पदार्थ ही चेतन नहीं है, वे मिथ्या भ्रम हैं । जो कुछ है वह चेतन है । उसी की सत्ता है, क्योंकि वह चेतन निरामय(निर्लेप, निरञ्जन) एवं मायातीत देह से भिन्न है ॥४॥
(क्रमशः)

गुरुवार, 16 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(२१. संस्कृत श्लोका: २) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (२१. संस्कृत श्लोका:) =*
*पृथ्वीवारिचतेजवायुगगनं शब्दादि तन्मात्रकम् ।* 
*बाह्याभ्यन्तरज्ञानकर्मकरणैर्नाना: हि यद्दृश्यते ॥* 
*तत्सर्वं श्रुतिवाक्यजालकथितं अन्ते च मायामृषा ।* 
*एकं ब्रह्म विराजते च सततं आनन्दसच्चिन्मयम् ॥२॥* 
पृथ्वी, वायु, जल, तेज एवं आकाश – इन पाँच तत्त्वों एवं गन्ध ......आकाश आदि पाँच तन्मात्राओं से तथा पाँच कर्मेन्द्रियों के सहकार से दृश्यमान विचित्र संसार में जो कुछ भी दिखायी देता है वह सब श्रुतिवचनों के प्रमाण से मायारचित ही समझना चाहिए । केवल एक ब्रह्म ही ऐसा है जो स्थायी है तथा सत्, चित्त् एवं आनन्दमय है ॥२॥
(क्रमशः)

बुधवार, 15 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(२१. संस्कृत श्लोका: १) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (२१. संस्कृत श्लोका:) =*
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*छंद शार्दुलबिक्रीडितं* 
*माधुर्योत्तर-सुन्दरां मम गिरां गोविन्दसम्बन्धिनीम् ।* 
*यो नित्यं श्रवणं करोति सततं स मनवो मोदते ॥* 
*न्यूनाधिक्य विलोक्य पण्डितजनो दोषं च दूरी कुरु ।* 
*मे चापल्यसुबालबुद्धि कथितं जानाति नारायणः ॥१॥* 
जो श्रद्धालुभक्त मेरी मधुररसमयी भगवद्गुगानुवाद्युक्त वाणी(वचन) का श्रवण एवं मनन करेगा वह सदा सुखी रहेगा । इस कविता में जो भी न्यूनता या अतिशयोक्ति हो गयी हो विद्वज्जन उसका परिमार्जन कर लें । मेरी इस बच्चों वाली तोतली बोली में की गयी स्तुति की यथार्थता भगवान् तो जान ही लेंगे ॥१॥
(क्रमशः)

मंगलवार, 14 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(२०. काया कुंडलिया) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥

स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (२०. काया कुंडलिया) =*
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*काया गढ़ को राव थौ अहंकार बलबंड ।* 
*सो लै अपनै बसि कियौ आतम बुद्धि प्रचंड ॥* 
*आतम बुद्धि प्रचण्ड खंड नव फेरि दुहाई ।* 
*मन इन्द्रिय गुण रैत आपने निकट बुलाई ॥* 
*सब सौं ऐसैं कह्यौ बसौ तुम हमरी छाया ।* 
*सुन्दर यौं गढ़ लियौ बिषम होतौ गढ काया ॥३१॥* 
इस काया(शरीर) का महाबली राजा अभिमान है । इसी प्रचण्ड(महावीर) ने हमारी आत्मा को भी नियन्त्रण में ले रखा है । उस पर नियन्त्रण कर नौ इन्द्रियों पर भी यह अपना शासन करने को सन्नद्ध है । इस प्रकार, इस महाबली ने इन नौ इन्द्रियों को भी अपना बना लिया है । उन सब के लिये इसने कठोर निषेधाज्ञा दे दी है कि ये सब भी इसके नियन्त्रण में ही रहें । इस रीति से, इस सुदृढ़ कायागढ को भी अपने नियन्त्रण में कर लिया है ॥३१॥
(क्रमशः)

रविवार, 12 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =


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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =*
*प्रष्णोत्तर* 
*पूछत शिष्य प्रसंग पूछि शंका मति आनै ।* 
*तुम कहियत हौ कौन मूढ़ तूं मोहि न जानै ॥* 
*किहिं बिधि जानौं तुमहिं देह के कृत मांत देषै ।* 
*तो प्रभु देषौं कहा ज्ञान करि आशय पेषै ॥* 
*गुरु कहौ ज्ञान ज्यौं मैं सुनौं सुनि करि निश्चय आंनि है ।* 
*अब मैं प्रभु उर निश्चय कियौ तो सुन्दर कौ जाँनि ही ॥३०॥* 
किसी प्रसंग में गुरु से आश्वासन पाकर शिष्य के जिज्ञासा करने पर गुरुदेव ने बताया कि मूर्ख ! तुम अपने विषय में पूछ रहे हो कि तुम कौन हो ? और तुम मुझे भी नहीं पहचानते ? ठीक ही हैं; तुम कैसे पहचान पाओगे ? तुम्हारी बुद्धि पर देहाध्यास का आवरण पड़ा हुआ है तब तुम उस प्रभु की यथार्थता कैसे पहचान सकते हो ? श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – मैं उसके विषय में तुम्हें जो कुछ बताता हूँ उसे ध्यानपूर्वक अपने मन में बैठा लो । तब तुम उस प्रभु की यथार्थता जान सकोगे ॥३०॥
(क्रमशः)

शनिवार, 11 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =*
*आतम ब्रह्म अखंड निरन्तर है अनादि कौ ।* 
*जन्म मरन कौ सोच करै नर बृथा बादि कौ ॥* 
*स्वप्नै गयौ प्रदेश बहुरि आयौ घर मांहीं ।* 
*जब जाग्यौ घर मांहीं गयौ आयौ कहुं नांहीं ॥* 
*यहु भ्रमही को भ्रम ऊपनौ भ्रम सब स्वप्न समान है ।* 
*कहि सुन्दर ताकौ भ्रम गयौ जाकै निश्चय ज्ञान है ॥२९॥* 
तुम्हारा वह ब्रह्मय आत्मा अखण्ड एवं अनादि है । अतः तूँ अपने जन्म-मरण की चिन्ता व्यर्थ ही कर रहा है । तूं स्वप्न में परदेश गया था, पुन: घर लौट आया । जब तुम्हारी निद्रा खुली तो तुमने स्वयं को घर में ही पाया । यह तो तूम्हारा ‘भ्रम को भ्रम’ था । तथा सभी भ्रम मिथ्या स्वप्न के तुल्य होते हैं । अतः श्रीसुन्दरदासजी महाराज का मानना है कि जिसका भ्रम निवृत हो गया वह ज्ञानी हो गया । यह निश्चित है ॥२९॥
(क्रमशः)

शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =*
*देष्यौ अति जिज्ञास शुद्ध हृदये लय लीना ।* 
*सद्गुरु भये प्रसन्न ज्ञान वासौं कहि दीना ॥* 
*जन्म मरन नहिं तोहि बहुरि सुख दुःख न दोऊ ।* 
*काल कर्म नहिं तोहि द्वन्द्व परसै नहिं कोऊ ॥* 
*अब तत्वमसीति बिचारि शिष सामवेद भाषै स्वयं ।* 
*कहि सुन्दर संशय दूरि करि तूं है ब्रह्म निरामयं ॥२८॥* 
जब सद्गुरु ने जिज्ञासु को शुद्ध हृदय समझ लिया तो उन ने उसको ज्ञानोपदेश किया । ये बोले – तुमको जन्म मरण नहीं होता, न सुख दुःख ही होता है । न तुमको सामयिक दुःख द्वन्द्व ही सताते हैं । हे शिष्य ! अब तुम ‘तत्त्वमसि’ की साधना करो । जिसका कि सामवेद में विधान है । इससे तुम्हारे सभी सामयिक संशय दूर हो जायेंगे । तूँ तो निर्दोष ब्रह्म है ॥२८॥
(क्रमशः)

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =*
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*प्रथम होइ जिज्ञासा ग्रहै दृढ़ करि वैरागा ।* 
*बाहरि भीतरि सकल करै मन बच क्रम त्यागा ॥* 
*सद्गुरु सरनै जाइ कहै प्रभु मेरै चिन्ता ।* 
*जन्म मरण बहु काल भ्रमत नहिं आवै अन्ता ॥* 
*क्यूं छूंटौं आवागमन तें मेरै यह चिन्ता भई ।* 
*अब आयौ हौं तुम्ह सरन तुम सद्गुरु करुणामई ॥२७॥* 
जब जिज्ञासु को ब्रह्म ज्ञान विषयक प्रबल जिज्ञासा हो तो उसको सर्वप्रथम संसार से वैराग्य धारण करना चाहिये । सभी वाह्य एवं आभ्यन्तर कर्मों का मन कर्म एवं वचन से त्याग कर देना चाहिये । तदन्तर, सद्गुरु की सरण ग्रहण कर उनसे पूछना चाहिये – “भगवन् ! मुझको इस संसार में जन्मते मरते बहुत समय हो गया है । अब इस जन्म-मरण से मुझे कब मुक्ति मिलेगी ! – मुझको यही चिन्ता सता रही है ! अतः हे करुणामय सद्गुरु ! मैं आपकी शरण में आया हूँ ॥२७॥
(क्रमशः)

बुधवार, 8 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१८. अथ दीर्घाक्षरी) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*मनहर* 
*“झूठे हाथी झूठे घोरा झूठे आगे झूठा दौरा,* 
*झूठा बंध्या झूठा छोरा झूठा राजारानी है ।* 
*झूठी काया झूठी माया झूठा झूठै धंधा लाया,* 
*झूठा मूवा झूठा जाया झूठी याकी बानी है ॥* 
*झूठा सोवै झूठा जागै झूठा झूझै झूठा भाजै,* 
*झूठा पीछै झूठा लागै झूठै झूठी मानी है,* 
*झूठा लीया झूठा दीया झूठै षाया झूठा पीया,* 
*झूठा सौदा झूठै कीया ऐसा झूठा प्राणी है ॥२६॥* 
यह तुम्हारे द्वारा एकत्र की हुई भौतिक सम्पत्ति, जैसे हाथी, घोड़ा, सब झूठे(मिथ्या) हैं । इसी प्रकार, ये सब दृश्यमान स्त्री पुत्र राजा रानी भी सब मिथ्या ही हैं । तुम्हारा यह शरीर भौतिक सम्पत्ति, व्यापार, जन्म मरण आदि सब कुछ मिथ्या है । 
इसी प्रकार, तुम्हारा यह सोना, जागना, दिन भर की दौड़धूप, इधर उधर भागना दौड़ना, लौकिक कार्यों में व्यस्त रहना, मरना, जीना सब कुछ मिथ्या है । इस प्रकार मनुष्यों का समस्त सांसारिक कृत्य हमें तो मिथ्या ही प्रतीत होता है ॥२६॥ 
इस छन्द में सभी अक्षर गुरु हैं ।
(क्रमशः)

मंगलवार, 7 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१७. अथ प्रतिलोम अनुलोम) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१७. अथ प्रतिलोम अनुलोम) =*
*काठ माहिं का देत कहा प्रीतम कौं कीजै ।* 
*पाव चढ़त सो कहा कहा धनुष हि संधीजै ॥* 
*कापर ह्वे असवार बचन का प्रत्यक्ष कहावै ।* 
*पान करै सो कहा कहा सुनि अति सुख पावै ॥* 
*अब कहा दृढ़ावै जैनमत का बिरहनि उर लगि बकी ।* 
*कहि सुन्दर प्रति अनुलोम “यह रस कथा दयालकी” ॥२५॥* 
१.काष्ठ में क्या दिया जाता है ? 
२.प्रियतम के लिए क्या किया जाता है ? 
३.घोड़े पर किस पर पैर रख कर चढ़ा जाता है ? 
४.धनुष् का संधान किससे होता है ? 
५.सवारी किस पर की जाती है ? 
६.कौन वचन ‘प्रत्यक्ष’ कहा जाता है ? 
७.पान किसका किया जाता है ? 
८.किसके श्रवण से अतिशय सुख मिलता है ? 
९.जैनमत का अभ्यास दृढ़ता से क्यों किया जाता है ? 
१०.विरहिणी छाती से लगाकर क्या बोलती है ? 
महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – संसार के सभी वाक्य प्रतिलोम हैं ? इनका उत्तर दयाल जी महाराज की वाणी अनुलोम है ॥२५॥
(क्रमशः)

सोमवार, 6 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१६. अर्थ सिंघावलोकनी) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१६. अर्थ सिंघावलोकनी) =*
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*संज्ञा कौंन अखंड कौंन हरि सेवा लावै ।* 
*कंठ बिराजै कौंन कौंन नर संग कहावै ॥* 
*गुनहगार का षाइ कहा चाहै सब कोई ।* 
*कपि कै गल मैं कहा कहा दुंहुवनि मिलि होई ॥* 
*अब सुन्दर पथिक कहा कहै मुक्त क्षेत्र का नाम है ।* 
*कहि हर रिपु हजरति थान कौ “सदा मारसी काम” है ॥२४॥* 
१.अखण्ड संज्ञा किसे कहते हैं ? 
२.भगवदाराधना में कौन लगाता है ? 
३.कण्ठ में कौन बैठा है ? 
४.मनुष्य का संग क्या कहा जाता है ? 
५.अपराधी क्या भोगता है ? 
६.सभी लोग क्या चाहते हैं ? 
७.कपि के कण्ठ में क्या है ? 
८.दो के मिलने से क्या होता है ? 
९.महात्मा पूछते हैं – यात्री क्या करते हैं ? 
१०.मुक्त क्षेत्र का क्या नाम है ? 
११.महादेव के शत्रु का क्या स्थान है ॥२४॥
(क्रमशः)

रविवार, 5 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१५. निगड बंध-२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१५. निगड बंध) =*
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(२) 
*प्रथम बर्ण महिं अर्थ तीनि नीकी बिधि जानहुं ।* 
*द्वितीय बर्ण मिलि अर्थ तीन सोऊ पहिचानाहुं ॥* 
*त्रितीय बर्ण मिलि अर्थ तीनि ता मध्य कहिज्जे ।* 
*चतुर्वर्ण मिलि अर्थ तीनि तिनि कौं सु लहीज्जै ॥* 
*पुनि त्यौं पंचम षष्टम सप्तमं 
अष्टम नवम सुनहुं पछू ।* 
*कहि सुन्दर याकौ अर्थ यह 
“करन देत काहू कछू” ॥२३॥* 
इस शब्द के प्रथम वर्ण के तीन अर्थ हैं, उनको भली भाँति जान लो । द्वितीय वर्ण के भी तीन अर्थ हैं, उनको भी भली भाँति समझ लो । उसके मध्य में पठित तृतीय वर्ण के भी तीन अर्थ हैं, उनको भी हृदय में बैठा लो । तथा चतुर्थ के मिलने से भी तीन अर्थ निकलते हैं, उनको भी समझ लो । फिर उसी शब्द के पाँचवें, छठे, सातवें, आठवें एवं नवें वर्ण का अर्थ भी समझ लेना चाहिये । 
महाराज *श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं – इन सबका सम्मिलित अर्थ होता है – *किसी को कुछ करने दो ।* इस निगडबन्ध के अन्तिम चरण के अन्तिम अंश “क-र-न-दे-त-का-हू-क-छू” में “क-छू” की योजना का कोई विशेष अर्थ नहीं निकल रहा है । प्रारम्भ के सात अक्षरों तक ही अर्थ निकलता है । प्रथम वर्ण महिं अर्थ तीनि=क के तीन अर्थ-जल, अग्नि और सुख ।” “कर” के तीन अर्थ – हाथ, किरण, और हाथी की सूंड । “करन” के तीन अर्थ – राजा करण, इन्द्रिय और देह । “करन दे” के तीन अर्थ करने दे, कर(टैक्स) न दे और “करन दे” कान दे, अर्थात् गुरु-उपदेश को सुन । 
“करन देत” के तीन अर्थ –करण(महादानी करण) देता है । सूर्य या चन्द्रमा “कर”(किरणें) देता है और “करन देत” पतिव्रता स्त्री अपना हाथ पर पुरुष को नहीं देती । “करन देत का” के तीन या अर्थ – क्या करने देता है ? महादानी करण क्या देता है ? और “करन”(कान) देता है क्या ? अर्थात् क्या गुरु वचन या शास्त्र को ध्यान से सुनता है । “करन देत काहू” इस ही प्रकार तीन अर्थ हो सकते हैं । “करन देत काहू” इस ही प्रकार तीन अर्थ हो सकते हैं । “करन देत काहू कछू” इसके भी “कछु” का प्रयोग करने से तीन अर्थ हो सकते हैं । छह सात अक्षरों(क-र-न-दे-त-का-हू) तक अर्थ यथार्थ चलते हैं ।
(क्रमशः)

शनिवार, 4 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१५. निगड बंध-१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१५. निगड बंध) =*
(१) 
*अधर लगै जिनि कहत बर्ण कहि कौंन आदि कौ ।* 
*सब ही तें उतकृष्ट कहा कहिये अनादि कौ ॥* 
*कौन बात सो आहि सकल संसार हि भावै ।* 
*घटि बढ़ि फेरि न होइ नाम सो कहा कहावै ॥* 
*कहि संत मिलें उपजै कहा दृढ़ करि गहिये कौन कहि ।* 
*अब मनसा बाचा कर्मना “सुन्दर भजि परमानन्दहि” ॥२२॥* 
जिस *परमानन्द* शब्द के प्रथम अक्षर के उच्चारण में ओष्ठ का सहयोग अत्यावश्यक होता है, वह सबसे उत्तम है, क्योंकि वह अनादि है । इस अनादि सुख में कौन विशिष्ट गुण विशिष्ट है कि यह सब को उत्तम लगता है ? इस शब्द में न कुछ बढता है न घटता है, फिर भी सबको प्रिय क्यों है ? सन्त पूछते हैं – यह कहाँ उत्पन्न होता है ? इसको दृढ़ता से कौन पकड़ता है ? कि महात्मा को कहना पड़ा कि परमानन्द का आस्वादन करो ॥२२॥
(क्रमशः)

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१४. निमात छंद) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१४. निमात छंद) =*
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*मनहर* 
*जप तप करत धरत ब्रत जत सत,* 
*मन बच क्रम भ्रम कषट सहत तन ।* 
*बलकल बसन अशन फल पत्र जल,* 
*कसत रसन रस तजत बसत वन ॥* 
*जरत मरत नर गरत परत सर,* 
*कहत लहत हय गय दल बल धन ।* 
*पचत पचत भव भय न टरत शठ,* 
*घट घट प्रगट रहत न लखत जन ॥२१॥* 
(इस छंद के सब अक्षर अकारान्त हैं ।) 
नाम जप एवं तपश्चर्या करने से, यज्ञ एवं दान करने से, तीर्थयात्रा, व्रत यम एवं नियम के पालन से भक्त को अभिमान हो जाता है अर्थात् ज्ञान के बिना ईश्वर प्राप्ति नहीं है ॥२१॥
(क्रमशः)

गुरुवार, 2 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१३. बहिर्लापिका. २०) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१३. बहिर्लापिका. २०) =*
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*उत्तम जन्म सु कौंन कौंन बपु चित्रत कहिये ।* 
*ब्रह्मा षोज्यौ कवन कौंन पय ऊपरि लहिये ॥* 
*धनुष संधियत कौंन कौंन अक्षय तरु प्रागा ।* 
*दृग उन्मीलत कौंन कौंन पशु निपट अभागा ।* 
*अब दान कवन कर दीजिये कौंन नाम शिव रसन घर ।* 
*कहि सुन्दर याकौ अर्थ यह “नमोनाथ सब सुखकर” ॥२०॥* 
(‘बहिर्लापिका’ उसे कहते हैं जहाँ अभिधेय अर्थ छन्द के बाहर से लिया गया हो ।) 
उत्तम जन्म किसका कहा जाय ? मनुष्य का; क्योंकि मनुष्य जन्म में आ कर प्राणी भगवान् की प्राप्ति का उपाय कर सकता है । 
किसी प्राणी का शरीर चित्रित होता है ? मयूर का । 
ब्रह्मा ने किसकी खोज की थी ? सावित्री की । 
दूध के ऊपर क्या होती है ? मलाई । 
धनुष से किस साधन द्वारा लक्ष्य किया जाता है ? बाण से । 
प्रयाग क्षेत्र में कौन वृक्ष अक्षय है ? वट वृक्ष । 
निद्रारहित नेत्र किसके हैं ? देवता के । (देवता को निद्रा नहीं आती) । 
पूर्णतः मन्दभाग्य पशु कौन है ? गधा । 
दान किससे देते हैं ? हाथ से । 
मंगलकारी शब्द क्या है ? शिव(सुख) । सबका सामूहिक उत्तर है – नमो नाथ सब सुख कर(भगवान् को प्रणाम करना सर्वथा सुखदायी होता है ॥२०॥
(क्रमशः)

बुधवार, 1 जनवरी 2020

= सुन्दर पदावली(१२. अन्तर्लापिका. १९) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१२. अन्तर्लापिका. १९) =*
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*कापालिक मत कौंन कौंन त्रेता युग कर्मा ।* 
*रवि सुत कहिये कौंन कौंन जैननि कै धर्मा ॥* 
*त्यक्त सयंज्ञा कौंन कौंन संतति मुख सोहै ।* 
*बचन प्रमाण सु कौंन कौंन कतहूं नहिं मोहै ॥* 
*कहि सुन्दर अंकुश कौंन सिरि आन पकरि काले कहौ ।* 
*‘योग यज्ञ यम नेम तजि नाम सत्य दृढ़ करि गहौ’ ॥१९॥* 
इस पद में प्रश्न एवं उत्तर साथ साथ वर्णित हैं । जैसे – 
१. कापालिक मत किसका है ? योगियों का । (ये योगी शैव मत के मानने वाले होते हैं ।) जो निरन्तर मनुष्य का कपाल(खोपड़ी) हाथ में रखते हैं । ये देवी को बलि भी चढ़ाते हैं ।) 
२. त्रेता युग में मनुष्यों का साधना कर्म क्या था ? यज्ञ । 
३. रवि(सूर्य) का पुत्र कौन है ? यमराज(मृत्यु) । 
४. जैन मतानुयायी साधुओं का आराधनीय धर्म क्या है ? नेमनाथ(प्रथम जैन गुरु) द्वारा उपदिष्ट धर्म । 
५. ‘त्याग’ शब्द का मूल धातु क्या है, जिससे यह शब्द निष्पन्न होता है ? ‘त्यज्’ धातु । 
६. सन्तों के मुख से निकलने वाला कौन शब्द शोभादायक होता है ? भगवान् का नाम । 
७. कौन बचन प्रामाणिक होता है ? सन्तों के मुख से नि:सृत ‘राम’ का नाम । 
८. कौन कहीं भी मुग्ध(भ्रान्त) नहीं होता ? सत्यवचन से कोई भ्रान्त नहीं होता । 
९. अंकुश पकड़कर कहाँ मारा जाता है ? हाथी की कनपट्टी{कान के बगल(समीप) में या शिर पर ।} ये ऊपर लिखे योग आदि शब्द किसी अन्य के लक्ष्य से किसी अन्य के लिये कहे गये हैं ॥१९॥
(क्रमशः)

मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

= सुन्दर पदावली(१२. अन्तर्लापिका. १८) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१२. अन्तर्लापिका. १८) =*
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*देह मध्य कहि कौंन कौंन या अर्थ हि पावै ।* 
*इन्द्रिय नाथ सु कौंन कौंन सब काहू भावै ॥* 
*पायें उपजत कौंन कौंन के शत्रु न जनमैं ॥* 
*उभय मिलन कहि कौंन दुष्ट कै कहा न तनमैं ॥* 
*अब सुन्दर कौ पावन जगत कौन रहे पुनि ब्यापि करि ।* 
*“प्रान जान मन मान सुख साधू संग हित नाम हरि” ॥१८॥* 
देह(शरीर) में क्या रहता है ? प्राण । 
उस पर निग्रह कौन करता है ? योगी(ज्ञानी) । 
इन्द्रियों का स्वामी कौन है ? मन । 
सभी प्राणियों को क्या प्रिय लगता है ? सम्मान(आदर) । 
क्या प्राप्त होने पर क्या उत्पन्न होता है ? सम्मान प्राप्त होने पर मन में सुख उत्पन्न होता है । 
किसका कोई शत्रु नहीं होता ? साधु महात्माओं का । 
दोनों का संग कब होता है ? दोनों के मिलने पर । 
दुष्ट के मन में क्या नहीं होता ? दूसरों का हित करने की इच्छा । 
महात्मा पूछते हैं – इस जगत् को पवित्र कौन करता है ? भगवान्(हरि) का नाम । 
कौन इस जगत् में सर्वत्र व्यापक है ? भगवान्(हरि) ही सर्वत्र व्याप्त हैं । 
इस प्रकार, महात्मा के कहें हुए “प्राण, जान, मन, मान, सुख, साधु, संग, हित, नाम एवं हरि”- इन सभी शब्दों का अर्थ आ गया ॥१८॥
(क्रमशः)