श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ~ ७ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ~ ७ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 9 मार्च 2022

= ९५ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू मनसा वाचा कर्मना, हिरदै हरि का भाव ।*
*अलख पुरुष आगे खड़ा, ताके त्रिभुवन राव ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
###########
*॥ वात्सल्य भक्त के घर हरि बालक बन कर जाय ॥*
वात्सल्य जन गेह पर, स्वयं दौड़ हरि जाय ।
खिचड़ी कर्मा मातु की, आते थे हरि खाय ॥२४५॥
दृष्टांत कथा - कर्मा बाई वात्सल्य भाव की उपासक थी । छोटे बालक उठते ही कुछ खाने को माँगा करते हैं । माता बालक के जागने के पूर्व ही कुछ तैयार रखती है । इसी भाव से कर्मा बाई प्रभात ही खिचड़ी तैयार कर लेती थी । भगवान् जगदीश भी प्रभात ही उसके घर जा पंहुचते थे ।
.
एक दिन एक साधू ने उसे आचार पूर्वक भोग लगाने की शिक्षा दी । इससे उसे खिचड़ी बनाने में देर होने लगी और यह चिन्ता भी रहने लगी कि मेरा बालक दोपहर तक भूखा रहता है । एक दिन भगवान् कर्मा बाई की गोद में बैठे हुये खिचड़ी खा रहे थे कि पुरुषोत्तमपुरी में राज भोग की तैयारी हो गई ।
.
इसलिए बिना हाथ मुह धोये ही भगवान् मन्दिर में आ पहुंचे । हाथ और मुख में खिचड़ी लगी देख कर पुजारिओं ने प्रार्थना करके पूछा । उत्तर मिला - 'कर्मा बाई प्रभात ही खिचड़ी का भोग लगाती है और उसके प्रेम वश मैं भी जीमने जाता हूँ । एक साधु ने उसे आचार क्रिया की शिक्षा दी है, इससे उसे देर हो जाती है । तुम लोग उस साधु को कहो कि वह कर्मा बाई से कहे कि तू पहले की सामान ही भोग लगा ।' पुजारिओं ने वैसा ही किया ।
.
इससे कर्मा बाई भी बड़ी प्रसन्न हुई । आज तक भी जगदीशजी के प्रथम कर्मा बाई की खिचड़ी का ही भोग लगता है इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्तों के घर भगवान् बालक बन कर ही जाते हैं ।
॥ वात्सल्य भाव के भक्त सुन्दर २ वस्तुऐं भगवान् के लिये लेते हैं ॥

सोमवार, 7 मार्च 2022

= ९४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू भावैं भाव समाइ ले, भक्तैं भक्ति समान ।*
*प्रेमैं प्रेम समाइ ले, प्रीतैं प्रीति रस पान ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
###########
*॥ वात्सल्य भक्तों के पास हरि बालक के समान ही रहते हैं ॥*
वात्सल्य जन पास हरि, रहें बाल सम होय ।
कपि लख विट्ठलनाथ की, अंक गये झट रोय ॥२४४॥
दृष्टांत कथा - एक दिन एक कपि(वानर) को देखकर, भगवान् भयभीत होकर रोने का सा अभिनय करते हुये विट्ठलनाथजी की अंक(गोद) में जा छिपे । उस समय विट्ठलनाथजी को भगवान् के ऐश्वर्य का ज्ञान था । वे प्रेम से गोद में बैठा कर बोले - 'लंका पर चढ़ाई की तब काल के समान विकराल अनन्त वानर आपके सतत थे उनसे तो कभी नहीं डरे और आज इस छोटे से वानर से ही कैसे डर गये ।'
.
भगवान् बोले - 'यदि तुम्हारा मन मेरी ईश्वरता की और लगा है तो बाल चरित्र की उपासना क्यों करते हो ? और बाल चरित्र की उपासना करनी है तो ऐसा प्रश्न क्यों उठाते हो ? मैं तो भक्तों की भावना के अनुसार ही चरित्र कर्ता हूं । वास्तव में तो मैं माया से परे निर्गुण रुप हूँ, मुझ में कुछ भी नहीं बनता ।' इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्तों के पास भगवान् भी बालक के समान ही रहते हैं ।

= ९३ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू सूरतैं सुरति समाइ रहु, अरु बैनहुं सौं बैन ।*
*मन ही सौं मन लाइ रहु, अरु नैनहुँ सौं नैन ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
###########
*॥ वात्सल्य भक्त हरि को पुत्र सामान रखते हैं ॥*
वात्सल्य जन ईश को, रखते पुत्र सामान ।
सुत सम सेवा करत रहे, विट्टलनाथ सुजान ॥२४३॥
दृष्टांत कथा - बल्लभाचार्य के पुत्र गोसांई विट्ठलनाथजी की भगवान् में वात्सल्य भक्ति थी । वे दिन रात भगवन की बालक के समान सेवा करते रहते थे । लाड़ लड़ाना, खिलाना, प्रभात ही जगान, मुख धोना, बाल भोग लगाना, स्नान कराना, आभूषण और वस्त्र पहिनाना, श्रृंगार करना, अनेक प्रकार के खिलौने भगवान् के पास रखना, शय्या बिछाना, शयन कराना, और भी सब बाल चरित्रों के द्वारा ही आराधन में लगे रहते थे । ये सब एक समय ही नहीं, दिन में सात बार करते थे । इस प्रकार रात दिन सेवा में ही लगे रहते थे । इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्त भगवान् की पुत्र के समान सेवा करते हैं ।

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

= ९२ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*मीन मगन मांहीं रहैं, मुदित सरोवर मांहिं ।*
*सुख सागर क्रीड़ा करैं, पूरण परिमित नांहिं ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
###########
*॥ अपना प्रताप दिखा कर भी भगवान् वात्सल्य भक्त से बँध जाते हैं ॥*
वात्सल्य जन से बँधे, दिखला परम प्रताप ।
नन्दरानि के कर बँधे, उखल से हरि आप ॥२४२॥
दृष्टांत कथा - नन्द रानी यशोदा जब कृष्ण को उखल से बाँधने लगी तब बहुत-सी रस्सियें जोड़ने पर भी रस्सी दो अंगुल छोटी ही रहती गई । फिर यशोदा को जब लज्जित और परिश्रम से खिन्न देखा तब तुरन्त बँध गये । इससे सूचित होता है कि भगवान् अपना प्रताप दिखा करके भी वात्सल्य भक्तों से बँध जाते हैं ।

= ९१ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*निश्‍चल ते चालै नहीं, प्राणी ते परिमाण ।*
*साथी साथैं ते रहैं, जाणैं जाण सुजाण ॥*
*ते निर्गुण आगुण धरी, मांहैं कौतुकहार ।*
*देह अछत अलगो रहै, दादू सेव अपार ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
###########
*॥ वात्सल्य भक्त को भगवान् के नजर के लगने का भी भय रहे ॥*
नजर नहीं लग जाय कहीं, वात्सल्य रह भीत ।
कौसल्या ने स्याहि ही, बिन्दी दी सह प्रीत ॥२४१॥
दृष्टांत कथा - रामजी के राज तिलक के समय बहत-सा समाज जुटा था । इससे माता कौसल्या को चिन्ता हुई कि - 'कहीं रामजी के नजर नहीं लग जाय ।' जब राज तिलक के समय आरती करने आई तब राम को नजर से बचाने के लिये सर्व प्रथम उनके मुख पर एक स्याही की बिन्दी लगाईं, फिर आरती की । इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्तों को भगवान् के नजर लगने का भी भय होता है ।

बुधवार, 2 मार्च 2022

= ९० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू खालिक खेलै खेल कर, बूझै बिरला कोइ ।*
*लेकर सुखिया ना भया, देकर सुखिया होइ ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
###########
*सुत सम प्रभु में होत है, जो विशेष अनुरक्ति ।*
*भक्ति विशारद उसे ही, कहैं वात्सल्य भक्ति ॥२३९॥*
*॥ ईश्वरता देख कर भी वात्सल्य भक्त प्रभु को पुत्र ही जाने ॥*
ईश्वरता लख भी लखें, वात्सल्य जन पुत्र ।
कौसल्या अरु देवकी, नन्द रानि लख अत्र ॥२४०॥
दृष्टांत कथा -
१. एक समय माता कौसल्या रामजी को पालने में सुलाकर कुल देवता पूजने को गईं । पूजा के समय देवता के स्थान पर रामजी को देखा और आश्चर्य चकित होकर पालना को देखने गई तो वहां भी रामजी को सोते देखा । ऐसे ही दो-चार वार देख कर चिन्तित हुई । तब रामजी ने अपने स्वरूप तथा माया का दर्शन कराया । अनन्त ब्रह्माण्ड रूप ऐश्वर्य देखकर के भी वह रामजी को पुत्र ही मानती रही ।
२. देवकीजी के जन्म समय ही चतुर्भुज देखा था, यह प्रसिद्ध है । फिर भी श्री कृष्ण को पुत्र ही मानती रही । 
३. नन्दरानी यशोदा ने भी मुख में सब विश्व देखा था, फिर भी श्री कृष्ण को पुत्र ही मानती रही । इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्त ईश्वर की ईश्वरता देख करके भी ईश्वर को पुत्र ही मानते रहते हैं ।

= ८९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*पीड़ पुराणी ना पड़ै, जे अन्तर बेध्या होइ ।*
*दादू जीवण मरण लौं, पड़या पुकारै सोइ ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
###########
*॥ गुरु भक्तों को गुरु वियोग असह्य ॥*
गुरु भक्तन को, गुरुन का, असह्य होत वियोग ।
गुफा द्वार लख दादु को, विकल भये शिष लोग ॥२३८॥
दृष्टांत कथा - सन्तवर दादूजी का देहान्त होने पर देह को विमान पर बैठा कर भैराणे पर्वत पर ले गये । वहां विमान रखकर के देह के संस्कार के विषय में विचार कर रहे ते कि दादूजी के शिष्य टीलाजी ने दादूजी को पर्वत के मध्य की गुफा के द्वार पर खड़े देख करके कहा - 'स्वामीजी तो गुफा के द्वार पर खड़े हैं ।' विमान को देखा तो उसमें देह के स्थान पर पुष्प राशि पड़ी थी । यह देख कर गुरु भक्त वे शिष्य लोग अपने गुरु वियोग से प्रायः विकल से हो गये थे । इससे सूचित होता है कि गुरु भक्तों कों गुरु वियोग असह्य होता है ।

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

= ८८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू भुरकी राम है, शब्द कहैं गुरु ज्ञान ।*
*तिन शब्दों मन मोहिया, उनमन लागा ध्यान ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
###########
*॥ गुरु भक्त गुरु वचनों को गुरु सामान ही मानते हैं ॥*
सुगुरु भक्त गुरु वचन को, मानत गुरुहि समान ।
दादूपंथी सिख तथा, करते अति सन्मान ॥२३७॥
दृष्टांत कथा - दादूपंथी और सिख आदि बहुत से सम्प्रदाय अपने आचार्यों की बाणी को गुरु रूप मान कर पूजा करते हैं, यह अति प्रसिद्ध है । इससे सूचित होता है कि गुरु भक्त गुरु के बचनों को गुरु रूप ही मानते हैं ।

= ८७ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू तो पीव पाइये, कर मंझे विलाप ।*
*सुनि है कबहुँ चित्त धरि, परगट होवै आप ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
###########
*॥ गुरु भक्त गुरु के दर्शन करे बिना वैकुण्ठ भी न जाय ॥*
सुगुरु भक्त गुरु दर्श बिन, भगवत् धाम न जाय । 
दर्शन दरिया का किया, मनसाराम ने आय ॥२३६॥
दृष्टांत कथा - मारवाड़ के सांजू ग्राम के भक्त मनसाराम को लेजाने के लिये वैकुण्ठ से विमान आया । मनसाराम गुरु भक्त थे इसलिये उन्होंने कहा - 'रेण नगर में मेरे गुरु दरियावजी हैं, उनके दर्शन करा कर ले चलो तो चलूं ।' भगवत् दूतों ने स्वीकार किया और विमान रेण ग्राम पर आया । उस समय सत्संग हो रहा था । 
.
आकाश से ही दर्शन करके मनसाराम ने कहा - 'राम महाराज ।' फिर विमान चल पड़ा । सत्संगियों ने दरियावजी से पूछा - 'यह आकाश से राम महाराज किसने किया ।' दरियावजी ने सब कथा सुना दी । इससे ज्ञात होता है कि गुरु भक्त गुरु दर्शन करे बिना वैकुण्ठ भी नहीं जाना चाहता ।  

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

= ८६ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू औगुण गुण कर माने गुरु के,*
*सोई शिष्य सुजाण ।*
*सतगुरु औगुण क्यों करै, समझै सोई सयाण ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
###########
*॥ गुरु भक्त शिष्य पर गुरु कृपा ॥*
भक्त शिष्य पर सुगुरु की, कृपासु देखि जाय ।
विरजानंद ने प्रेम से लीना हृदय लगाय ॥२३४॥
दृष्टांत कथा - आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्दजी अपने गुरु विरजानन्दजी की सप्रेम सेवा करते थे । विरजानन्दजी सदा यमुना जल से स्नान किया करते थे । उनके लिये दयानन्दजी प्रति दिन प्रात: ही बारह घड़े यमुना जल के ले आते थे । फिर आश्रम में झाडू अदि सेवा भी करते थे । एक दिन झाडू देते समय कहीं पर थोड़ा-सा कूड़ा रह गया और उस पर विरजानन्दजी का पैर जा पड़ा ।
.
इस पर उन्होंने दयानंदजी को डंडे से पीटना आरम्भ किया । स्वामी दयानन्दजी पहले तो कुछ भी न बोले फिर बहुत पीटने पर बोले - 'गुरुदेव ! अब आप मुझे मत मारिये, आपके हाथ दुखने लग जांएँगे ।' यह कह कर गुरु के हाथ सहलाने लगे । शिष्य की ऐसी भक्ति देख कर गुरु प्रसन्न हो गये और स्वामी दयानन्दजी को गले लगा लिया । इससे सूचित होता है कि गुरु भक्त शिष्य पर ही गुरु कृपा होती है ।

= ८५ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*तन मन धन करूँ वारनैं, प्रदक्षिणा दीजे ।*
*शीश हमारा जीव ले, नौछावर कीजे ॥*
*भाव भक्ति कर प्रीति सौं, प्रेम रस पीजे ।*
*सेवा वंदन आरती, यहु लाहा लीजे ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
###########
*॥ गुरु भक्त गुरु सेवा में प्राण भी देते हैं ॥*
सुगुरु भक्त गुरु सेव में, निजी प्राण भी देय ।
पिता मरा सुत शीघ्र तर, आया गुरु शव लेय ॥२३५॥
दृष्टांत कथा - बादशाह ने गुरु तेगबहादुर के शव का अन्त्येष्ठी सत्कार करने से रोक दिया । चौराहे पर जहां वध किया था वहां ही वह पड़ा २ सड़ेगा । उसो जो उठायेगा उसे प्राणान्त दण्ड दिया जायगा । गुरु गोविन्दसिंह उस समय सोलह वर्ष के थे । पिता के शरीर का संस्कार जैसे भी हो करना है । यह निश्चय करके वे देहली जा रहे थे ।
.
मार्ग में एक निर्धन गाड़ी वाले सिख ने उनको कहा - 'आप देहली न जाँय । हम पिता पुत्र दोनों जाते हैं । गुरु गोविन्दसिंह को नगर से कई मील दूर छोड़ करके वे दोनों गुरु के शव के पास पहुँचे । शव में दुर्गन्ध आने से वहां के नियुक्त सैनिक दूर हट गये थे । पिता ने पुत्र से कहा - 'हम दोनों में से एक को प्राण त्यागने होंगे क्योंकि शव के स्थान पर दूसरा शव नहीं होने से सैनिकों की दृष्टि पड़ते ही वे सावधान होकर गुरु गोविक्द्सिंह की खोज में निकल पड़ेंगे । तुम सबल हो, गुरु के देह को ले जा सकते हो ।'
.
यह कहकर पिता ने अपनी छाती में कटार मार ली और गिर पड़ा । पिता के शव को गुरु के शव के स्थान पर रखकर, गुरु के शव को लेकर चल दिया । इससे सूचित होता है कि गुरु भक्त सेवा में प्राण तक भी दे देते हैं ।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

= ८४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*कहै लखै सो मानवी, सैन लखै सो साध ।*
*मन लखै सो देवता, दादू अगम अगाध ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
###########
*॥ गुरु भक्त ही गुरु के भाव को समझ सके ॥*
सुगुरु भक्त गुरु भाव को, समझ सके भल रीति ।
भेजी भक्ति रत्नावली, विष्णु पुरी सह रीति ॥२३१॥
श्री कृष्णचैतन्य महाप्रभु के शिष्य विष्णुपुरीजी काशी रहा करते थे । कुछ साधुओं ने महाप्रभु से कहा - 'विष्णुपुरी मुक्ति के लिये काशी में ठहर रहे हैं ।' महाप्रभु बोले - 'नहीं, उन्हें न मुक्ति से, न किसी देवता से और न काशी से ही कुछ प्रयोजन है । श्री कृष्ण चिन्तन को छोड़ कर उनकी चित्त वृति कहीं भी नहीं जाती । केवल सतसंग के लिये ही काशी में ठहरे हुये हैं । 
.
फिर भी जब लोगों ने नहीं माना तो महाप्रभु ने विष्णुपुरीजी को एक रत्नमाला भेजने के लिये लिखा । वे गुरु भक्त थे महा प्रभु के हृदय की बात जान गये और भागवत् रूप समुद्र से पांच सौ श्लोक रूप रत्न चुन कर के तथा 'भक्ति रत्नावलि' नाम रख करके भेज दिया । उसे जब देखा तो सबको निश्चय होगया कि वे अनन्य भक्त तथा गुरु निष्ठ हैं । इससे सूचित होता है कि गुरुभक्त ही गुरु के भाव को भलि भांति जान सकता है ।

= ८३ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*सतगुरु पसु मानस करै, मानस थैं सिध सोइ ।*
*दादू सिध थैं देवता, देव निरंजन होइ ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
###########
*॥ गुरु भक्ति बिना प्रभु ज्ञान नहीं होता ॥*
*ब्रम्ह रूप गुरु को समझ, करता जो अनुरक्ति ।*
*श्रेष्ठ संत जन कहत हैं, उसको ही गुरु भक्ति ॥२२९॥*
सुगुरु भक्ति बिन हो नहीं, साक्षात प्रभु ज्ञान ।
मिली सुई गुरु भक्त को, फिरे अन्य अनजान ॥२३०॥
दृष्टांत कथा - एक गुरु के कई शिष्य थे । उनमें एक की बुद्धि तो तीव्र न थी किन्तु गुरु भक्त था । दूसरे सब बुद्धिमान होने से उसकी हँसी किया करते थे । एक दिन परीक्षा के निमित गुरु ने अपने सब शिष्यों से क्रम-क्रम से कहा - 'इस घर में सूई रक्खी है ले आओ । एक-एक करके सभी शिष्य खोज आये किन्तु सूई नहीं मिली । 
.
अन्त में अल्प बुद्धि गुरु भक्त को आज्ञा दी । गुरु भक्ति के प्रताप से जहां सूई गडी थी उस स्थान का उसे ठीक ठीक ज्ञान हो गया और वह सूई निकाल लाया । इसी प्रकार गुरु भक्त को ही अन्त: स्थित परमात्मा का साक्षात होता है और जो गुरु भक्त नहीं होते उन्हें वास्तव ज्ञान तथा परमात्मा का साक्षात नहीं होता ।

शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

= ८२ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू हौं बलिहारी सुरति की, सबकी करै सँभाल ।*
*कीड़ी कुंजर पलक में, करता है प्रतिपाल ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
#############
*॥ भेष पर पक्षी भी श्रद्धा करते हैं ॥*
श्रद्धा करते भेष पर, पक्षी अद्भुत रीति ।
साधु भेष लख बँध गये, हंस सहज सह प्रीति ॥२२८॥
दृष्टांत कथा - एक राजा के कोढ़ होगया, बहुत इलाज करने पर भी जब अच्छा नहीं हुआ तब वैद्यों ने कहा - 'यदि हंस पक्षी लाये जांय तो अच्छे हो सकते हो । राजा ने हंसों को पकड़ने के लिये व्याधों को मान सरोवर पर भेजा । जब किसी भी प्रकार हंस व्याधों के हाथ नहीं आये तब व्याधों ने साधु भेष बनाया । हंसों ने साधु भेष पर विश्वास किया इससे पकडे गये और राजा के पास लाये गये ।
.
भगवान् ने यह सोच कर कि हंसों ने मेरे भक्तों के भेष का विश्वास किया है, इस किये उन्हें अवश्य छुडाना चाहिये, वैद्य का स्वरूप धारण किया और राजा के पास जाकर कहा - 'तुम इन पक्षियों को शीघ्र छोड़ दो, मेरी दवा से तुम अभी अच्छे हो जाओगे । दवा लगाते ही राजा अच्छा हो गया । हंसों को छोड दिया गया ।
.
फिर राजा ने वैद्य को धन राज्य आदि देना चाहा किन्तु वैद्य ने कुछ भी नहीं लेते हुये कहा - 'ये तो सब हमारे ही हैं, अब तुम भगवत् भक्ति और साधु सेवा में मन लगा कर मनुष्य जन्म को सफल करो ।' भगवत् के उपदेश से वह राजा भी भक्त बन गया तथा अपने देश में भी भक्ति का भारी प्रचार किया । इससे सूचित होता है कि भेष पर पक्षी भी विश्वास करते हैं और भगवान् भी भेष की लाज रखते हैं ।
(क्रमशः)

= ८१ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*साचे को साचा कहै, झूठे को झूठा ।*
*दादू दुविधा को नहीं, ज्यों था त्यों दीठा ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
#############
*॥ भेष भक्त की भेष में महान् प्रीती ॥*
भेष भक्त की भेष में, होती अति अनुरक्ति ।
मधुकरशाह ने गधे की, पूजा की सहभक्ति ॥२२७॥
दृष्टांत कथा - ओड़छे के राजा मधुकरशाह की साधू भेष में बड़ी प्रीति थी । वे सन्तों का चरणामृत लेते थे, पूजा परिक्रमा करते थे । राजा के भाई बन्धुवों को यह अच्छा नहीं लगता था । एक दिन उन्होंने एक गधे को बहुत-सी मालाएं पहना कर तथा तिलक लगा कर महल में भेज दिया । 
.
राजा ने उसके चरण धोये, पूजा परिक्रमा की और बोले - 'मैं धन्य हूं जो मेरे राज्य में गधे भी भक्त बन कर माला तिलक करने लगे हैं । जो माला तिलक नहीं धारण करते वे गधों से भी बुरे हैं यह देख सुन कर दुष्टों को बड़ी लज्जा आई । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त की भेष में बड़ी प्रीति होती है ।

गुरुवार, 20 जनवरी 2022

= ८० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*जाके हिरदै जैसी होइगी, सो तैसी ले जाइ ।*
*दादू तू निर्दोष रह, नाम निरंतर गाइ ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
#############
*॥ भेष भक्त भेष धारी को बड़ा भाई मानते हैं ॥*
भेष भक्त जन भेषी को, मानत हैं बड भ्रात ।
लाला चारज भक्त की, परम प्रगट यह बात ॥२२६॥
दृष्टांत कथा - लालाचार्य को अपने गुरु का उपदेश था कि भक्त भेष धारी को अपना बड़ा भाई जानना । वे गुरु के उपदेश के अनुसार ही बर्तते रहे । एक दिन माला तिलक धारी एक शव को नदी में बहते देख कर निकाल लाये और विमान बना कर बड़े उत्सव के साथ भगवत् कीर्तन करते हुये नदी पर लेजा कर दाह क्रिया की ।
.
फिर भंडारे के समय ब्राह्मणों को निमन्त्रण दिया । उन लोगों ने यह कह कर कि न जाने वह किस जाति का मुर्दा था अस्वीकार कर दिया । लालाचार्य अपने गुरु के पास गये, गुरुजी उन्हें लेकर स्वामी रामानुजजी के पास गये । उन्होंने कहा - 'लोग भगवत् प्रसाद की महिमा नहीं जानते । तुम चिन्ता मत करो भोजन की सामग्री बनाओ । वैकुण्ठ से भगवत् पार्षद आकर जीमेंगे ।'
.
भोजन के समय भगवत् पार्षद आये । ग्राम के ब्राह्मण यह सोच करके कि जब ये लोग जीम कर बाहर आयेंगे तब इन्हें लज्जित करेंगे, द्वार पर खड़े होगये । पार्षद उनका भाव जान गये और आकाश मार्ग से चले गये । जब ब्राह्मणों को ज्ञात हुआ तब वे लज्जित होकर भीतर गये और पार्षदों कि झूठी पत्तलें चाटने लगे । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भेष धारी को अपने से बड़ा समझता है और उसका अनादर करने वालों को अन्त में लज्जित होना पड़ता है ।

= ७९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू साध सबै कर देखना, असाध न दीसै कोइ ।*
*जिहिं के हिरदै हरि नहीं, तिहिं तन टोटा होइ ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
#############
*॥ भेष भक्त भेषधारी शव का भी चरणामृत लें ॥*
भेष धारि शव का सु लें, भेष भक्त पद पाथ ।
गिरिधर ग्वाल ने लिया, चरणामृत निज हाथ ॥२२५॥
दृष्टांत कथा - भक्त गिरिधर ग्वाल ने एक साधु के शव को देखा और उसके चरण धोकर चरणामृत लेने लगे । दूसरे ब्राह्मणों ने यह अयोग्य समझ कर उन्हें रोका । वे बोले - 'भगवत् भक्त की मृत्यु नहीं होती, जो तुम भक्त को मृतक कहते हो यह तो तुम्हारा अविश्वास है । भक्त तो भगवान में मिलकर अमर हो जाता है । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भेष धारी शव के पद(चरण) का पाथ(जल) भी लेते हैं ।

शनिवार, 15 जनवरी 2022

= ७८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*कोई नूर पिछाणैं रे,*
*कोई तेज कों जाणैं रे, कोई ज्योति बखाणैं रे ॥*
*कोई साहिब जैसा रे,*
*कोई सांई तैसा रे, कोई दादू ऐसा रे ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
#############
*॥ भेष भक्त को भेष से प्रसन्नता ॥*
भेष भक्त का भेष लख, मुख प्रसन्न हो जात ।
भाँड़ों का नाचादि लख, धन्य कहा हर्षात ॥२२४॥
दृष्टांत कथा - एक राजा की साधु भेष में बड़ी प्रीति थी । वह साधु सेवा बहुत करता था किन्तु भगवत् विमुख भांड आदिकों को कुछ भी नहीं देता था । कुछ भांड साधु भेष बना कर राजा के पास गये । राजा ने अपने भाव के अनुसार उनका सत्कार किया । स्वभाव वश भांडों ने वहां भी नाच गानादि आरम्भ कर दिया । यह देख कर राजा बोले - 'धन्य है भगवत् भक्तों को, जो अपने सेवकों को, ढोल बजा कर तथा नाच गाना करके भी कृतार्थ करते हैं ।
.
फिर विदाई के समय राजा ने एक मुहरों के थाल भाँड़ों के आगे रक्खा किन्तु राजा के विश्वास तथा सतसंग से भाँड़ों का मन भी बदल गया । वे उसे न लेकर स्वयं भगवत् भजन में लग गये । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भेष से प्रसन्न होते हैं और उनके संग से कपटी भी सच्चे भक्त बन जाते हैं ।

= ७७ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*परमार्थ को राखिये, कीजे पर उपकार ।*
*दादू सेवक सो भला, निरंजन निराकार ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
#############
*॥ भेष भक्त साधु भेष का अपमान नहीं करते ॥*
भेष भक्त शुभ भेष का, करते नहिं अपमान ।
भूप चतुर्भुज ने भले, किया भाट सन्मान ॥२२३॥
दृष्टांत कथा - करौली के राजा चतुर्भुज साधु भेष के बड़े भक्त थे । नगर के चारों ओर चार-चार कोस पर अपने सेवक छोड रक्खे थे । कोई भी साधु को देखते ही वे तुरन्त राजा को सूचना दे देते थे और राजा स्वयं सेवक के सामने जाकर उन्हें लाते तथा रानी के सहित अपने हाथों से चरण धोकर पूजा करते थे ।
.
उनकी भेष सेवा सुन कर एक दूसरे राजा ने अपने विद्वान से कहा - 'जब योग्य अयोग्य का विचार नहीं तब भक्ति की क्या विशेषता है' ? विद्वान ने कहा - 'वे अपने मन में समझ लेते होंगे ।' फिर उस राजा ने परीक्षा के लिये एक भाट को कहा - 'तू हरिदासजी बन कर करौली के राजा के पास जा ।' वह साधु भेष बना कर आया ।
.
राजा चतुर्भुज ने अन्य साधुओं की भांति उसकी भी पूजा की । भोजन आदि के बाद सत्संग होने लगा । भाट हूँ हां करता रहा । राजा समझ गये कि किसी ने परीक्षा के लिये भेजा है । फिर विदा करते समय राजा ने अन्य वस्तुओं के साथ एक डिबिया में एक फूटी कौडी धर के ऊपर से अति उत्तम जरी का वस्त्र लपेट कर मुहर छाप लगादी और उसके भेंट करदी ।
.
वह अपने राजा के पास आया और चतुर्भुज की भक्ति का वर्णन करके अन्य वस्तुओं के साथ वह डिबिया भी राजा के रख दी । डिबिया को खोल कर देखा किन्तु रहस्य नहीं समझ सके । तब अपने विद्वान से पूछा । उसने कहा - 'इसका भाव यह कि ऊपर का भेष तो ऊपर के उत्तम वस्त्र के सामान उत्तम है और भीतर फूटी कौडी के समान भाट है, भक्ति नहीं ।' यह समझ कर राजा लज्जित हुआ ।
.
फिर राजा ने उस विद्वान को चतुर्भुज के पास भेजा । चतुर्भुज ने उसका बड़ा सत्कार किया तथा सत्संग भी किया और जब वह जाने लगा तब अपना खजाना खोल कर कहा - 'जो इच्छा हो सो ले जाँय । पण्डित ने अन्य तो कुछ भी नहीं लिया । किन्तु राजा का प्यारा एक मैना पक्षी था उसे ही माँगा । राजा ने दे दिया ।
.
पण्डित अपने राजा के पास गये और मैना का पींजरा राजसभा में लगा दिया । राज सभा को हरि विमुख देख कर मैना ने कहा - 'कृष्ण-कृष्ण कहो, तुम्हारा उद्धार हो जायगा । यह संसार असार और आगम पायी है, बिना कृष्ण भक्ति इससे उद्धार नहीं हो सकता । यह मैना का उपदेश सुन कर राज-सभा चकित-सी होगई ।
.
मैना प्रति दिन सभा को उपदेश करने लगी । जब राज-सभा सहित राजा भक्त बन गये तब वह पुनः राजा चतुर्भुज के पास लौट आई । राजा चतुर्भुज भी बड़े प्रसन्न हुये । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त का अपमान नहीं करते और अभक्तों को भी भक्त बना देते हैं ।

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

= ७६ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू पंच आभूषण पीव कर, सोलह सब ही ठांव ।*
*सुन्दरी यहु श्रृंगार करि, ले ले पीव का नांव ॥*
==================
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
.
श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
#############
*॥ भेष भक्त भय से भेष नहीं त्यागता ॥*
भेष भक्त भय से कभी, तजत भेष निज नाँहि ।
दुगुण सजा भगवानदास, गये सभा के माँहि ॥२२२॥
दृष्टांत कथा - भक्त भगवानदासजी मथुरा में रहते थे । एक समय बादशाह ने परीक्षा के लिये डौंडी पिटवाई कि - 'जो माला तिलक धारण करेगा तो उसे प्राणान्त दण्ड मिलेगा ।' बहुतों ने माला तिलक त्याग दिये किन्तु भगवानदासजी नहीं डरे और अपने अनुगामियों के सहित अन्य दिनों से दुगने तिलक-माला धारण करके बादशाह की सभा में गये । बादशाह अपनी आज्ञा का भंग करने का कारण पूछा ।
.
भगवानदासजी ने निर्भयता से कहा - 'हमारे धर्म में माला तिलक सहित प्राण जाय तो उद्धार होता है । जब हमें अपनी मृत्यु ज्ञात हो गई, तब अच्छी प्रकार तिलक और माला धारण करके बिना परिश्रम ही क्यों न मुक्ति प्राप्त करें ।' भगवानदासजी का यह दृढ विश्वास देख करके बादशाह प्रसन्न हो गया । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भय से अपना भेष नहीं त्यागते ।