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*दादू मनसा वाचा कर्मना, हिरदै हरि का भाव ।*
*अलख पुरुष आगे खड़ा, ताके त्रिभुवन राव ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
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*॥ वात्सल्य भक्त के घर हरि बालक बन कर जाय ॥*
वात्सल्य जन गेह पर, स्वयं दौड़ हरि जाय ।
खिचड़ी कर्मा मातु की, आते थे हरि खाय ॥२४५॥
दृष्टांत कथा - कर्मा बाई वात्सल्य भाव की उपासक थी । छोटे बालक उठते ही कुछ खाने को माँगा करते हैं । माता बालक के जागने के पूर्व ही कुछ तैयार रखती है । इसी भाव से कर्मा बाई प्रभात ही खिचड़ी तैयार कर लेती थी । भगवान् जगदीश भी प्रभात ही उसके घर जा पंहुचते थे ।
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एक दिन एक साधू ने उसे आचार पूर्वक भोग लगाने की शिक्षा दी । इससे उसे खिचड़ी बनाने में देर होने लगी और यह चिन्ता भी रहने लगी कि मेरा बालक दोपहर तक भूखा रहता है । एक दिन भगवान् कर्मा बाई की गोद में बैठे हुये खिचड़ी खा रहे थे कि पुरुषोत्तमपुरी में राज भोग की तैयारी हो गई ।
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इसलिए बिना हाथ मुह धोये ही भगवान् मन्दिर में आ पहुंचे । हाथ और मुख में खिचड़ी लगी देख कर पुजारिओं ने प्रार्थना करके पूछा । उत्तर मिला - 'कर्मा बाई प्रभात ही खिचड़ी का भोग लगाती है और उसके प्रेम वश मैं भी जीमने जाता हूँ । एक साधु ने उसे आचार क्रिया की शिक्षा दी है, इससे उसे देर हो जाती है । तुम लोग उस साधु को कहो कि वह कर्मा बाई से कहे कि तू पहले की सामान ही भोग लगा ।' पुजारिओं ने वैसा ही किया ।
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इससे कर्मा बाई भी बड़ी प्रसन्न हुई । आज तक भी जगदीशजी के प्रथम कर्मा बाई की खिचड़ी का ही भोग लगता है इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्तों के घर भगवान् बालक बन कर ही जाते हैं ।
॥ वात्सल्य भाव के भक्त सुन्दर २ वस्तुऐं भगवान् के लिये लेते हैं ॥