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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

= सुन्दर पदावली(फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - ३/४) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - ३/४ =* 
*भ*व जल राषे बूडते, *जे* आये उन पास ।* 
*नि*र्भै कीये पलक मैं, *रं*च न जम की त्रास ॥३॥* 
अपने भवसागर में डूबते हुए अनेक प्राणियों का उद्धार किया था । जो उनकी शरण में आये । उन प्राणियों को एक क्षण में संसार भय से मुक्त कर दिया था । उन शरणागतों को अपनी मृत्यु का कुछ भी भय तथा दुःख न रह गया था ॥३॥ 
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*ज*न्म मरण तिनि के मिटे, न*जरि परे जे कोई ॥* 
*ना*टक मैं नाचै नहीं, थ*कित भये थिर होई ॥४॥* 
उन शरणागत प्राणियों के जन्म-मरण आदि सभी सांसारिक भय नष्ट हो गये; क्योंकि उन प्राणियों पर उन दयालु सन्तों की दयादृष्टि हो गयी । वे भक्त इस सांसारिक नाटक में व्यर्थ के आवागमन से दूर होकर भगवद्भजन में ही दिनरात लयलीन हो गये ॥४॥
(क्रमशः)

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ७/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*ज्यौं समुद्र मैं फेन बुदबुदा,*
*लहरि अनेक उठंत ।* 
*तरवर तत्व रहैं एक रस,*
*झरि झरि पत्र परन्त ॥३॥* 
*ज्यौं का त्यौं ही षेल पसारा,*
*बीत्यौ काल अनन्त ।* 
*सुन्दर ब्रह्म बिलास अषंडित,*
*जानत हैं सब संत ॥४॥* 
जैसे समुद्र में फेनं एवं बुदबुदें तथा तरंग उठते रहते हैं । उसी प्रकार वृक्षों में एक ही तत्त्व के विद्यमान रहते हुए भी उनके पत्ते झरते रहते हैं ॥३॥ 
यद्यपि बहुत समय बीत चुका है तो भी यह सृष्टि का खेल चलता जा रहा है । महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – परन्तु, इसके विपरीत, ब्रह्म का विलास एक ही अखण्डित धारा में हो रहा है –ऐसा सभी सन्त मानते हैं ॥४॥ 
(क्रमशः)

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ७/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*देषौ, घट घट आतम राम निरन्तर,*
*षेलत सरस बसंत ।* 
*ऐसौ, ष्याली ष्याल कियौ है,*
*कब हुं न आवत अंत ॥(टेक)* 
*चारि षानि बिस्तार जगत यह,*
*चौरासी लष जंत ।* 
*षेचर भूचर अरु जल चारी,*
*बहु बिधि सृष्टि रचन्त ॥१॥* 
*धरती गगन पवन अरु पानी,*
*अग्नि सदा बरतंत ।* 
*चन्द सूर तारागन सबही,*
*देव यक्ष अगनन्त ॥२॥* 
प्रत्येक शरीर में वसंतोसव : 
देखो ! यह हमारा आत्माराम प्रत्येक शरीर में रसमय वसन्त का ऐसा खेल खेल रहा है कि जिसका अन्त ही नहीं दिखायी देता ॥टेक॥ 
इस चारों दिशाओं में विस्तृत जगत् में चौरासी लाख(८४०००००) जीव जन्तु हैं । इस विविध सृष्टि में आकाशचारी, पृथ्वीवासी, जलशायी आदि प्राणी हैं ॥१॥ 
ये प्राणी पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि(तेज) में सदा रहते हैं । चन्द्रमा, सूर्य, सभी तारागण तथा अगणित देव एवं यक्ष हैं ॥२॥
(क्रमशः)

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ६/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*तहां शब्द अनाहद अति रसाल,*
*धुनि दुन्दभि ढोल मृदंग ताल ।* 
*सुष उपजै श्रवननि सुनत नाद,*
*मन मगन होइ छूटै बिषाद ॥३॥* 
*हम तुमहिं पकरि आंजि हैं नैंन,*
*सब हो हो हो हो कहै बैंन ।* 
*तुम छूट्यौ चाहत फगुवा देइ,*
*यह सुन्दर नारि कछू न लेइ ॥४॥* 
वहाँ निरन्तर मधुर अनाहत नाद सुनायी देता रहे । वहाँ दुन्दुभि एवं ढोल की मधुर ध्वनि तथा मृदंग की ताल सुनायी देती रहे । जिसके सुनने से कानों को सुख मिले, हमारा मन उसी में उन्मत्त हो जाय तो सभी दु:खों की निवृत्ति हो सकती है ॥३॥ 
हम तुम्हें पकड़ कर तुम्हारी आँखों में आँजन डालेंगी, उसे देख कर लोग मुक्त हास्य हँसेंगे । तुम हमें केवल इस उत्सव की भेंट देकर हमसे मुक्त होने की इच्छा करते हो; परन्तु सुन्दर नारियाँ ऐसा नहीं होने देंगी ॥४॥
(क्रमशः)

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ६/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*तुम षेलहु फाग पियारे कन्त ।* 
*अब आयौ है फागुन ॠतु बसंत ॥(टेक)* 
*घसि प्रेम प्रीति केसरि सुरङ्ग,*
*यह ज्ञान गुलाल लगावै अङ्ग ।*
*भरि सुमति पिचरकी अपनै हाथ,*
*हम भरिहैं तुमहिं त्रिलोकनाथ ॥१॥* 
*तुम हमहिं भरहु करि अधिक प्यार,*
*हम तुमहिं भरहिं प्रभु बार बार ।* 
*निसबासर षेल अषंड होइ,*
*यह अद‍भुत षेल लषै न कोइ ॥२॥* 
*वसन्तोत्सव विधि -* 
हे प्रिय पतिदेव ! अब इस वसन्तोत्सव के शुभ अवसर पर आप हमारे साथ फाल्गुन मास के इस वसन्तोत्सव क्रीडा में सम्मिलित होइये ॥टेक॥ 
हे त्रिलोकीनाथ ! प्रेम प्रीति की अच्छी रंग वाली केसर घिसकर गुलाल के साथ हमारे शरीर पर मलिये । हम भी अपने हाथ से सुमति की पिचकारी भरकर तुम्हारी ओर फेंकेगे ॥१॥ 
यह पिचकारी का खेल ऐसा होगा कि आप और हम परस्पर एक दूसरे को बार-बार मारें । यह खेल निरन्तर चलता रहे; तथा इस अद्भुत खेल को कोई देखने भी न पावे ॥२॥
(क्रमशः)

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ५/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*यहु कहुं पाती कहुं भई देव,*
*पुनि कहुं युक्ति करि करै सेव ।* 
*यहु कहुं मालनि कहुं भई फूल,*
*यहु कहूं सूक्ष्म कहूं ह्वै है स्थूल ॥३॥* 
*यहु तीन लोक मैं रही पूरि,*
*भागी कहां कोई जाइ दूरि ।* 
*जौ प्रगटै सुन्दर ज्ञान अङ्ग,*
*तौ माया मृग जल रजु भुजंग ॥४॥* 
कहीं यह पूजा के साधन(फूल पत्ती) बन जाती है तो कहीं स्वयं पूज्य(देवता) बन जाती है । कहीं युक्तिपूर्वक सेवा करती दिखायी देती है । कहीं मालिन बन जाती है तो कहीं स्वयं देव बन बैठती है । इस प्रकार, यह कहीं सूक्ष्म या स्थूल रूप धारण करती रहती है ॥३॥ 
यह तीनों लोकों में समायी हुई है । यह भाग कर कहीं दूर नहीं जायेगी । महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – किसी को ज्ञान होने पर ही यह माया अपने वास्तविक रूप मृगजल(मृगमरीचिका) रज्जू एवं सर्प के रूप में दिखायी देती है ॥४॥
(क्रमशः)

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ५/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*तात्कालिक चिन्तन* 
*हम देषि बसंत कियौ बिचार ।* 
*यह माया षेलै अति अपार ॥(टेक)* 
*यहु छिन छिन मांहिं अनंक रङ्ग,*
*पुनि कहुं बिछुरै कहुं करै संग ।* 
*यहु गुन धरि बैठी कपट भाइ,*
*यहु आपुहि जनमैं आपु षाइ ॥१॥* 
*यहु कहुं कामिनि कहुं भई कान्त,*
*यहु कहुं मारै कहूं दयावंत ।* 
*यहु कहुं जागै कहुं रही सोइ,*
*यहु कहूं हंसै कहुं उठै रोइ ॥२॥* 
हमने वह बसन्त का समय देख कर यह चिन्तन किया कि इस माया के खेल का पार नहीं पाया जा सकता ॥टेक॥ 
यह तो क्षण क्षण में अपना रंग बदलती है, कहीं बिछुट जाती है, कहीं पुनः साथ पकड़ लेती है । यह अनेक कपट के गुणों से परिपूर्ण है । यह स्वयं उत्पन्न करती है, स्वयं ही उसको खा जाती है ॥१॥ 
यह कहीं पत्नी बनी बैठी है, कहीं पति, कहीं हिंसक बनी है तो कहीं दयालु । कहीं यह जाग्रत् है तो कहीं सुप्त । कहीं हँसती है, कहीं उठ कर रोने लगती है ॥२॥
(क्रमशः)

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ४/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*जब षेलि माल्हि कैं चले न्हांन,*
*पुनि सोक सरोवर कियौ सनान ।* 
*संसै को तिलक दियौ लिलाट,*
*गये आप आपकौं बारह बाट ॥३॥* 
*इहै जांनि तुरत हम छूटे भागि,*
*यह सब जग देष्यौ जरत आगि ।* 
*अपने सिर की फिरि डारी पोट,*
*जन सुन्दर पकरी हरि की वोट ॥४॥* 
तब उस खेल के बाद वे सब स्नान हेतु आगे बढ़े, और शोक रूप सरोवर में स्नान किया । ललाट(मस्तक) पर संशय का तिलक लगाया, तब सभी अपने अपने कार्य में संलग्न हो गये ॥३॥ 
यह सब देख कर, हम तत्काल वहाँ से दूर हो गये(भाग चले); क्योंकि वहाँ समस्त प्रदेश ही जल उठा था । श्रीसुन्दरदासजी ने अपने सिर का सांसारिक भार दूर फेंककर भगवान् का सहारा पकड़ा ॥४॥
(क्रमशः)

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ४/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*एसौ फागुन षेलै संत कोइ,*
*जामैं उतपति प्रलै जीव होई ॥(टेक)* 
*इनि मोह गुलाल लगायौ अङ्ग,*
*पुनि लोभ अरगजा लियौ संग ।* 
*केसरि कुमति करी बनाइ,*
*अरु माया कौ मद पियौ अघाई ॥१॥* 
*तहां मंदल मदन बजावै भेरि,*
*आसा अरु तृष्णा गांवैं टेरि ।* 
*हाथनि में लीने क्रोध बंस,*
*इनि करि करि क्रीड़ा हत्यौ हंस ॥२॥* 
ऐसी वासन्तिक उत्सव की क्रीड़ा कोई सन्त ही खेल सकता है जिसमें जन्म, उत्पत्ति एवं प्रलय – तीनों सम्मिलित हैं ॥टेक॥ 
इस क्रीड़ा में – मोह ने समस्त शरीर पर गुलाल लगाया । फिर लोभ ने अगर साथ में ली और कुमति को केसर का रूप दिया । तथा माया का मद्य तृप्तिपूर्वक पीया ॥१॥ वहाँ कामदेव ने मन्द मन्द मधुर स्वर में मृदंग बजाया, आशा एवं तृष्णा ने उसके साथ में संगत की । क्रोध ने हाथ में बांस लिया, तब इन सबने मिलकर खेल खेल में प्राण का हनन कर दिया ॥२॥
(क्रमशः)

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ३/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*ताहि सींचत है प्रभु बार बार,*
*पुनि पल पल मांहिं करै संभार ।* 
*प्रभु सब ही द्रुम कौ मर्म जांन,*
*तामैं कोइक वाकै मनहिं मांन ॥३॥* 
*जो फलै न फूलै बाग मांहिं,*
*ऐसौ सत गुरु चन्दन और नांहिं ।* 
*ताकी रञ्चक लागी आइ बास,*
*तिन पलटि लियौ सुन्दर पलास ॥४॥* 
इस उद्यान को हमारे ये प्रभु बार बार सींचते रहते हैं । प्रत्येक क्षण, इसकी रक्षा का भी ध्यान रखते हैं । वे इसके प्रत्येक वृक्ष की वास्तविकता मानते हुए कुछ को अधिक महत्त्व देते हैं ॥३॥ 
जो अन्य किसी उद्यान में फलता फूलता नहीं है ऐसा चन्दन वृक्ष भी हमारे गुरु ने इस बाग में लगा रखा है । उसकी जो कोई प्राणी थोड़ी भी गंध ले लेता है, महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – उस की काया में आश्चर्यमय परिवर्तन हो जाता है ॥४॥ 
(क्रमशः)

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ३/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*ऐसौ बाग कियौ हरि अलष राइ ।* 
*कछु अद‍भुत रचना कही न जाइ ॥(टेक)* 
*यह पंच तत्व कौ सघन बाग,*
*मूल बिना तरु सरस लाग ।* 
*बहु बिधि बिरवा रहे फूलि,*
*जो देषै सो जाइ भूलि ॥१॥* 
*यह बारा मास फलै सुफाल,*
*तहां पंषी बोलैं डाल डाल ।* 
*जब यह आवै ॠतु बसंत,*
*ये तब सुष पांवैं सकल जंत ॥२॥* 
संसार रूप उद्यान का वर्णन : 
उस अलख प्रभु ने ऐसा आश्चर्यमय उद्यान(बाग) लगाया है कि उसकी अद्भुतता का वर्णन नहीं हो सकता ॥टेक॥ 
यह पञ्च तत्त्व से निर्मित ऐसा सघन बगीचा है कि जिसमें बिना मूल(जड़) के वृक्ष भी ऐसे ही भरे हैं कि उनकी शोभा का वर्णन नहीं हो सकता । उन्हें जो देखता है उसे संसार की सभी वस्तुएँ विस्मृत हो जाती हैं ॥१॥ 
यह उद्यान बारह माह फला फुला रहता है । इस उद्यान में प्रत्येक शाखा पर विविध पक्षी कलरव करते रहते हैं । जब इस पर वसन्त ऋतू का प्रभाव पड़ता है तो सभी प्राणी सुख मानते हैं ॥२॥
(क्रमशः)

रविवार, 14 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - २/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*जीवत मृतक किये मारि,*
*रोम रोम ऊठे पुकारि ।* 
*प्रेम मगन रस गलित गात,*
*मोहि बिसरि गई सब और बात ॥३॥* 
*गति मति पलटी पलट्यौ अंग,*
*पंच पचीसनि एक संग ।* 
*उलटि समाने सून्य मांहिं,*
*अब सुन्दर कहुं अनत नांहिं ॥४॥* 
यह बाण ऐसा आघात करता है जो लगने वाले को ‘जीवित मृतक’ बना देता है । उसका रोम रोम पीड़ा से पुकार उठता है । मेरे शरीर के सभी अवयव प्रेमरस में मग्न हो गये हैं कि आगे पीछे की सब बातें भूल बैठा हूँ ॥३॥ 
अब मेरे शरीर की समस्त गति(चेष्टाएँ) एवं मति(चिन्तन की क्षमता) और शरीर के सभी अवयव भी पलट गये हैं; पाँच एवं पचीस तत्त्व एकत्र हो गये हैं । महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – अब ये कहीं अन्यत्र न जाकर सभी शून्य में समाहित हो गये हैं ॥४॥
(क्रमशः)

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - २/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*मेरे हिरदै लागौ शब्द बान,*
*ताकि मारे सतगुरु सुजान ॥(टेक)* 
*यह दशौं दिशा मन करतौ दौड,*
*बेधत ही रहि गयौ ठौड ।* 
*चलि न सकै कहुं पैंड एक,*
*देषौ मांहिं कलेजै भयौ छेक ॥१॥* 
*ऊपरि घाव न दीसै कोइ,*
*भीतरि नष शिष लीयौ पोइ ।* 
*कोइ न जानै मेरी पीर,*
*सो जानै जाकै लग्यौ तीर ॥२॥* 
मेरे हृदय में वह शब्दबाण(ज्ञानभक्ति का उपदेश) लग गया है जो मेरे ज्ञानी सद्गुरु ने उचित लक्ष्य बनाकर मारा है ॥टेक॥ 
मेरा यह मन चारों ओर(दशों दिशाओं में) दौड़ता रहता है । अतः उसके लगते ही(यह मेरा मन) चंचलता त्याग कर स्थिर हो गया है । इसे देखो । यह बाण मेरे कलेजे(हृदय) में छेद कर वहाँ रुक गया है ॥१॥ 
यद्यपि उसके लगने से प्रत्यक्ष में कोई आघात नहीं दिखायी दे रहा है, परन्तु उसने अन्त: प्रविष्ट होकर नख से शिखा तक सब कुछ छिन्न-भिन्न कर दिया है । इससे हो रही पीड़ा को कोई देख नहीं पा रहा है । इसे तो वही जान सकता है जिसको ऐसा शब्द बाण लगा हो ॥२॥
(क्रमशः)

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - १/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*अंमृत कौ तहां आवै ग्रास,*
*चेला चांटी रहै पास ॥* 
*सब काहू सौं बांटि षाइ,*
*तहां बिछुरि जमात कहूं न जाइ ॥३॥* 
*यह भोजन पावै बार बार,*
*भरि भरि पेट करै अहार ।* 
*भागी भूष अघाइ प्रान,*
*ऐसी सुन्दर नगरी सुष निधान ॥४॥* 
जहाँ अमृतमय भोजन मिले, भगवद्भजन के रसिकों से मेल हो सके कि वह भजनरस सबमें परस्पर विभक्त करवाया जा सके । कोई भूखा रहने से, विवश होकर, साथ न छोड़ दे ॥३॥ 
उसे बारम्बार भोजन मिल सके ताकि उसका पेट सदा भोजन से भरा रहे । कभी भूख की तडफन न हो, प्राण सन्तृप्त रहें । ऐसी सुन्दर नगरी में आवास स्थान मिलने से सर्वविध सुविधा होगी ॥४॥
(क्रमशः)

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - १/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*इनि योगी लीनी गुरु की सोष ।* 
*नाम निरञ्जन मांगै भीष ॥(टेक)* 
*कंथा पहरी पंचरङ्ग,*
*ज्ञान बिभूति लगाई अङ्ग ।* 
*मुद्रा गुरु कौ शब्द कान,*
*ऐसौ भेष कियौ अवधू सुजान ॥१॥* 
*सींगी सुरति बजाई पूरि,*
*बस्ती देषी बहुत दूरि ।* 
*जहां शब्द सुनै नगरी मंझारि,*
*तहां आसन करि बैठौ बिचारि ॥२॥* 
*यथार्थ योगियों की वेशभूषा का वर्णन :* 
इन योगियों ने अपने गुरु से यह शिक्षा ली है कि ये निरन्जन नाम की भिक्षा मांग रहे हैं ॥टेक॥ 
इन ने पाँच रंगों(तत्त्वों) वाली कथा(लम्बा कुर्ता) पहनी है, ज्ञान की विभूति(भस्म) अपने समस्त शरीर पर लगा रखी है । कानों में गुरुपदेश की मुद्रा(कुण्डल) पहन रखी है । इन सुबुद्ध अवधूतों ने अपने शरीर पर ऐसा वेष धारण किया है ॥१॥ 
इनने सुरति रूपी सींगी बजायी है, क्योंकि इनको अभी योगियों के वास अभी बहुत दूर दिखायी दे रहे हैं । ये अपने बैठने के लिए ऐसा स्थान खोज रहे हैं जहाँ सुखपूर्वक बैठा जा सके ॥२॥
(क्रमशः)

बुधवार, 10 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - ९) =


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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*तूंहीं राम हूं हीं राम*
*बस्तु बिचारें भ्रम द्वै नाम ॥(टेक)* 
*तूं ही हूं ही जब लग दोइ,*
*तब लग तूं ही हूं ही होइ ॥१॥* 
*तूं ही हूं ही सोहं दास,*
*तूं ही हूं ही बचन बिलास ॥२॥* 
*तूं ही हूं ही जबलग कहै,*
*तब लग तूं ही हूं ही रहै ॥३॥* 
*तूं ही हूं ही जब मिट जाइ,*
*सुन्दर ज्यौं कौ त्यौं ठहराइ ॥४॥* 
तूँ भी राम स्वरूप है, मैं भी राम स्वरूप हूँ । अतः यथार्थत: विचार करने पर, ये दो नाम भ्रमात्मक ही ज्ञात होते हैं ॥टेक॥ 
जब तक हम में ‘तूं’ या ‘मैं’ का भ्रम है तभी तक ये ‘तू’ और ‘मैं’ भिन्न प्रतीत होते हैं ॥१॥ 
वस्तुतः जब तक हम ‘तूं’ या ‘मैं’ को. दो मानते रहेंगे तभी तक लोक में यह व्यवहार वचन विलास के रूप में बना रहेगा ॥२॥ 
अतः जब तक हम लोग परस्पर ‘तूं’ और ‘मैं’ का व्यवहार करते रहेंगे तब तक यह ‘तूं’ ‘मैं’ का ही व्यवहार बना रहेगा ॥३॥ 
परन्तु जिस दिन हम गुरुपदेश के प्रभाव से इस ‘तूं’ ‘मैं’ को मिटा देंगे(भूल जायेंगे), महाराज सुन्दरदासजी का कथन है कि तब हम लोग यथार्थस्थिति(एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म) में पहुँच जायेंगे ॥४॥१४३॥
(क्रमशः)

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - ८) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*ऐसी भक्ति सुनहु सुषदाई ।* 
*तीन अवस्था मैं दिन बीतै,*
*सो सुष कह्यौ न जाई ॥(टेक)* 
*जाग्रत कथा कीरतन सुमिरन,*
*स्वप्नै ध्यान लै ल्यावै ।* 
*सुषुपति प्रेम मगन अंतिरगति,*
*सकल प्रपंच भुलावै ॥१॥* 
*सोई भक्ति भक्त पुनि सोई*
*सो भगवंत अनूपं ।* 
*सो गुरु जिन उपदेश बतायौ,*
*सुन्दर तुरिय स्वरूपं ॥२॥* 
यह प्रभु की भक्ति हम को कितना सुख देती है – इस विषय में विस्तार से सुनो – मेरे इस(जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति – इन) तीन अवस्थाओं में जो सुखमय दिन बीते हैं, उनकी तुलना मैं किस से करूँ ॥टेक॥ 
जाग्रत् अवस्था में मैंने प्रभु के जो कथा, कीर्तन सुने स्वप्न में उनके ही ध्यान में मेरी लय लगी रही । सुषुप्ति – अवस्था में, मैं उसी प्रभु के चरणों में अपना चित्त लगाये रहा तथा जगत् के अन्य सभी प्रपञ्चों का त्याग कर दिया ॥१॥ साधना की इस निरन्तरता में मेरी ऐसी स्थिति बन गयी कि मेरी अनुपम भक्ति ही भगवत्स्वरूप बन गयी । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – गुरु ने, मुझको जो उपदेश किया था, उसके फलस्वरूप, मैं चतुर्थ अवस्था में पहुँच कर मैं स्वरूपावस्था में स्थित हो गया ॥२॥
(क्रमशः)

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - ७) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*एक निरञ्जन नाम भजहु रे ।* 
*और सकल जंजाल तजहु रे ॥(टेक)* 
*योग यज्ञ तीरथ ब्रत दाना,* 
*लौंन बिना ज्यौं बिंजन नाना ॥१॥* 
*जप तप संजम साधन ऐसैं,* 
*सकल सिंगार नाक बिन जैसैं ॥२॥* 
*हेमतुला बैठै कहा होई,* 
*नाम बराबरि धर्म न कोई ॥३॥* 
*सुन्दर नाम सकल सिरताजा,* 
*नाम सकल साधन कौ राजा ॥४॥* 
अरे भाई ! तुम एकमात्र उस निराकार प्रभु का भजन करो । संसार का यह अवशिष्ट भ्रमजाल सर्वथा त्याग दो ॥टेक॥ 
(राम भजन के बिना) संसार में योग, यज्ञ, तीर्थ, व्रत आदि अन्य सब विधि विधान वैसे ही नीरस(स्वाद रहित) प्रतीत होते हैं, जैसे स्वादिष्ट भोजन, नमक के बिना, नीरस लगता है ॥१॥ 
इस साधना में जप, तप, संयम आदि भी ऐसे लगते हैं जैसे किसी नासिकाविहीन पुरुष का कोई भी श्रृंगार शोभा नहीं देता ॥२॥ 
सुवर्ण तुला पर अपने शरीर को रखने का भी तुम्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि नामस्मरण के तुल्य अन्य कोई धर्म नहीं है ॥३॥ 
महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – प्रभु का नाम स्मरण ही समस्त भक्ति साधनों में श्रेष्ठ है ॥४॥
(क्रमशः)

रविवार, 7 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - ६/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*कहत दश अवतार जग मैं औतरे आई ।* 
*काल तेऊ झपटि लीने बस नहीं काई ॥२॥*
*कौरवा पांडवा रावन कुम्भकरनाई ।* 
*गरद वैसै भये जोधा षवरि नां पाई ॥३॥* 
*घट धरें कोइ थिर न दीसै रङ्क अरु राई ।* 
*दास सुन्दर जानि ऐसी राम ल्यौ लाई ॥४॥* 
सुनते हैं, इस जगत् में दश अवतार समय समय पर हुए । उनको भी मृत्यु ने ग्रास बना लिया और किसी का वश नहीं चला ॥२॥
कौरव, पाण्डव, रावण, कुम्भकर्ण आदि योद्धा भी समय आने पर धूल में मिल गये । किसी को आज उनकी कोई खोज खबर(सूचना) भी नहीं है ॥३॥ 
हम को कोई भी देहधारी, भले ही वह राजा हो या रंक, यहाँ स्थिर नहीं दिखायी दिया । महाराज सुन्दरदासजी कहते हैं – यह बात समझ कर तुम राम से लय लगाओ ॥४॥
(क्रमशः)

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - ६/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*यहु तन ना रहै भाई ।* 
*दिना दहुं चहुं मांहिं सबको चल्यौ जग जाई ॥(टेक)* 
*बिष्णु ब्रह्मा शेष शंकर सो न थिर थाई ।* 
*देव दानव इन्द्र केते गये बिनसाई ॥१॥* 
अरे भाई ! हमारा यह शरीर सर्वथा नाशवान् है । हम सभी का यह शरीर एक दिन इस संसार को छोड़कर चला जायगा ॥टेक॥ 
बड़े बड़े ब्रह्मा, विष्णु या शंकर अवतरित हुए, वे भी स्थिर नहीं रह पाये । कितने ही देव, दानव, इन्द्र आये और नष्ट हो गये ॥१॥
(क्रमशः)