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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - ३/४ =*
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*भ*व जल राषे बूडते, *जे* आये उन पास ।*
*नि*र्भै कीये पलक मैं, *रं*च न जम की त्रास ॥३॥*
अपने भवसागर में डूबते हुए अनेक प्राणियों का उद्धार किया था । जो उनकी शरण में आये । उन प्राणियों को एक क्षण में संसार भय से मुक्त कर दिया था । उन शरणागतों को अपनी मृत्यु का कुछ भी भय तथा दुःख न रह गया था ॥३॥
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*ज*न्म मरण तिनि के मिटे, न*जरि परे जे कोई ॥*
*ना*टक मैं नाचै नहीं, थ*कित भये थिर होई ॥४॥*
उन शरणागत प्राणियों के जन्म-मरण आदि सभी सांसारिक भय नष्ट हो गये; क्योंकि उन प्राणियों पर उन दयालु सन्तों की दयादृष्टि हो गयी । वे भक्त इस सांसारिक नाटक में व्यर्थ के आवागमन से दूर होकर भगवद्भजन में ही दिनरात लयलीन हो गये ॥४॥
(क्रमशः)