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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ ११७/११९*
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रांम नांम भरि रांम हरि, नांद जगाया तास ।
हरिजन सकल समान हरि, सु कहि जगजीवनदास ॥११७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम नाम से भरपूर प्रभु ने राम स्वर का निनांद किया । और प्रभु ने जितने भी जीव भक्ति में रहे सबको अपना स्वरूप दिया ।
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पांच तत्त प्रवांण करि, आप दिखाये रांम ।
कहि जगजीवन साजि१ वपु, परगट कीन्हां नांम ॥११८॥
(१. साजि-व्यवस्थित रचना कर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पांच तत्व को परवान कर उनमे ही प्रभु ने(देह) बनाकर अपना स्वरूप प्रकट कर उसे अपने नाम से सिरजा है ।
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धरणि नीर पावक रच्या, पवन रच्या आकास ।
रांम सकल अविगत अकल, सु कहि जगजीवनदास ॥११९ ॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु ने धरती, जल, अग्नि, वायु, और आकाश की रचना कर जिसमें अविगत प्रभु बिना कला के ही सब रच दिया ।
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इति सम्रथाई कौ अंग संपूर्ण ॥२४॥
(क्रमशः)