🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*पाणी माहैं राखिये, कनक कलंक न जाहि ।*
*दादू गुरु के ज्ञान सों, ताइ अगनि में बाहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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नरेन्द्र जब गा रहे थे, “महायोग में सब एकाकार हो गये", - तो श्रीरामकृष्ण ने कहा, "यह ब्रह्मज्ञान से होता है । तू जो कह रहा था, - सभी विद्या हैं ।"
नरेन्द्र जब गाने लगे, "हे मन ! आनन्द में मस्त होकर दोनों हाथ उठाकर ‘हरि हरि’ बोल" - तो श्रीरामकृष्ण ने नरेन्द्र से कहा "इसे दो बार कहा ।”
गीत समाप्त होने पर भक्तों के साथ वार्तालाप हो रहा है ।
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गिरीश - देवेन्द्रबाबू नहीं आये हैं । वे अभिमान करके कहते हैं, ‘हमारे अन्दर तो कुछ सार नहीं है, हम आकर क्या करेंगे !"
श्रीरामकृष्ण (विस्मित होकर) - कहाँ, पहले तो वे वैसी बातें नहीं करते थे ?
श्रीरामकृष्ण जलपान कर रहे हैं, नरेन्द्र को भी कुछ खाने को दिया ।
यतीन देव (श्रीरामकृष्ण के प्रति) - आप ‘नरेन्द्र खाओ' 'नरेन्द्र खाओ' कह रहे हैं, और हम लोग क्या कहीं से बहकर आये हैं ।
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यतीन को श्रीरामकृष्ण बहुत चाहते हैं । वे दक्षिणेश्वर में जाकर बीच-बीच में दर्शन करते हैं । कभीकभी रात भी वहीं बिताते हैं । वह शोभाबाजार के राजाओं के घर का (राधाकान्त देव के घर का) लड़का है ।
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श्रीरामकृष्ण (नरेन्द्र के प्रति हँसते हुए) - देख, यतीन तेरी ही बात कर रहा है ।
श्रीरामकृष्ण ने हँसते हँसते यतीन की ठुड्डी पकड़कर प्यार करते हुए कहा, "वहाँ जाना, जाकर खाना ।” अर्थात् 'दक्षिणेश्वर में जाना ।' श्रीरामकृष्ण फिर ‘विवाहविभ्राट’ नाटक का अभिनय देखेंगे । बाक्स में जाकर बैठे । नौकरानी की बात सुनकर हँसने लगे ।
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थोड़ी देर सुनकर उनका मन दूसरी ओर गया । मास्टर के साथ धीरे-धीरे बात कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण (मास्टर के प्रति) - अच्छा, गिरीश जो कह रहा है (अर्थात् अवतार) क्या वह सत्य है ?
मास्टर - जी, ठीक बात है । नहीं तो सभी के मन में क्यों लग रही है ?
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श्रीरामकृष्ण - देखो, अब एक स्थिति आ रही है, पहले की स्थिति उलट गयी है । अब धातु की चीजें छू नहीं सकता हूँ ।
मास्टर विस्मित होकर सुन रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - यह जो नवीन स्थिति है, इसका एक बहुत ही गूढ़ अर्थ है ।
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श्रीरामकृष्ण धातु छू नहीं सक रहे हैं । सम्भव है, अवतार माया के ऐश्वर्य का कुछ भी भोग नहीं करते, क्या इसीलिए श्रीरामकृष्ण ये सब बातें कह रहे हैं ?
श्रीरामकृष्ण (मास्टर के प्रति) - अच्छा, मेरी स्थिति कुछ बदल रही है, देखते हो ?
मास्टर - जी, कहाँ ?
श्रीरामकृष्ण - कर्म में ?
मास्टर - अब कर्म बढ़ रहा है - अनेक लोग जान रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - देख रहे हो ! पहले जो कुछ कहता था, अब सफल हो रहा है ।
श्रीरामकृष्ण थोड़ी देर चुप रहकर एकाएक कह रहे हैं - "अच्छा, पल्टू का अच्छा ध्यान क्यों नहीं होता ?"
अब श्रीरामकृष्ण के दक्षिणेश्वर जाने की व्यवस्था हो रही है ।
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श्रीरामकृष्ण ने किसी भक्त के पास गिरीश के सम्बन्ध में कहा था, "पीसे हुए लहसुन की कटोरी को हजार बार धोओ, पर लहसुन की गन्ध क्या सम्पूर्ण रूप से जाती है ?" गिरीश ने भी इसीलिए मन ही मन प्रेम-कोप किया है । जाते समय गिरीश श्रीरामकृष्ण से कुछ कह रहे हैं ।
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गिरीश (श्रीरामकृष्ण के प्रति) - लहसुन की गन्ध क्या जायेगी ?
श्रीरामकृष्ण – जायेगी ।
गिरीश - तो आप कह रहे हैं – जायेगी ?
श्रीरामकृष्ण - खूब आग जलाकर लहसुन की कटोरी को उसमें तपा लेने पर फिर गन्ध नहीं रह जाती; बर्तन मानो नया बन जाता है ।
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‘‘जो कहता है 'मेरा नहीं होगा', उसका नहीं होता । मुक्त-अभिमानी मुक्त ही हो जाता है और बद्ध-अभिमानी बद्ध ही रह जाता है । जो जोर से कहता है 'मैं मुक्त हूँ', वह मुक्त ही हो जाता है । पर जो दिनरात कहता है, 'मैं बद्ध हूँ' वह बद्ध ही हो जाता है ।"
(क्रमशः)