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*दादू साध सिखावैं आत्मा, सेवा दिढ कर लेहु ।*
*पारब्रह्म सौं विनती, दया कर दर्शन देहु ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- माता पिता का भक्त
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कुरूक्षेत्र निवासी कुण्डल नामक ब्राह्मण का पुत्र सुकर्मा माता पिता की भक्ति से महान शक्तिमान हुआ था ।
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महर्षि कश्यप के कुल में उत्पन्न पिप्पल ने दशारण्य में महान तप किया, उससे प्रसन्न हो ब्रह्मादि देवताओं ने दर्शन देकर वर मांगने को कहा - "पिपल ने मांगा मुझे सब विद्या आ जाये", सुरों ने तथास्तु कह दिया ।
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पिप्पल विद्याधर बन गया अब उसे अभिमान हुआ कि मेरे समान कोई भी नहीं है । तब एक सारस पक्षी ने कहा तू कुण्डल के पुत्र सुकर्मा के समान नहीं हो सकता । यह सुनकर पिप्पल सुकर्मा के पास गया ।
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सुकर्मा माता-पिता की सेवा में लगा था । पिप्पल को आया देखकर उसका सत्कार करते हुये बोला, आईये ! तुम्हें सारस रूपधारी ब्रह्माजी ने मेरे पास भेजा है ।" पिप्पल ने कहा - "मैंने सुना है भूतल पर जो कुछ है सो तुम्हारे वश में है । मैं देवताओं के दर्शन करना चाहता हूँ ।"
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सुकर्मा ने उसी क्षण देवताओं को बुलवा लिया । देवगण बोले - "हमें क्यों बुलवाया है ? सुकर्मा - "पिप्पल को दर्शन कराने ।" देवगण - "हमारा आना व्यर्थ नहीं होता, वर मांगो ।" सुकर्मा - "माता पिता में मेरी अचल भक्ति हो, वर देवें ।" देवगण तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गये । सुकर्मा ने पिप्पल से कहा - "तुम भी माता-पिता की भक्ति करो।"
मात पिता की भक्ति से, आती शक्ति महान ।
गये सुकर्मा गेह सुर, करते ही आहवान ॥३०॥