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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१४२)*
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*१४२. परिचय । राजमृगांक ताल*
*देहुरे मंझे देव पायो, वस्तु अगोचर लखायो ॥टेक॥*
*अति अनूप ज्योति-पति, सोई अन्तर आयो ।*
*पिंड ब्रह्माण्ड सम, तुल्य दिखायो ॥१॥*
*सदा प्रकाश निवास निरंतर, सब घट मांहि समायो ।*
*नैन निरख नेरो, हिरदै हेत लायो ॥२॥*
*पूरव भाग सुहाग सेज सुख, सो हरि लैन पठायो ।*
*देव को दादू पार न पावै, अहो पै उन्हीं चितायो ॥३॥*
*इति राग केदार समाप्त ॥६॥पद २६॥*
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भा० दी०-परब्रह्म परमात्मानमिष्टदेवमहं स्वान्तःकरणे ज्ञानदृशा लब्धवानस्मि । तज्ज्योतिरनुपमं स्वान्तःस्थञ्चास्ति । पिण्डे ब्रह्माण्डे च सर्वत्र व्याप्तमेव ज्ञानदृशा दृश्यते । यच्च ज्योति- र्नित्यं प्रकाशमानस्वरूपं निरन्तरं सर्वप्राणिसमूहे परिपूर्णतया निवसति । अतो ज्ञानदृशाऽतिसमीप-
स्थत्वादेव मम प्रीतिरपि तस्मिञ्जाता ।
भाग्यवशादेव तस्य दर्शनं विधाय स्वान्तःकरणे सौभाग्य- सुखमनुभवामि । एतदर्थमेव भगवदनुग्रहान्ममेदं जन्मजातम् । कांकरियासरोवरेऽहमदावादनगरे साक्षात्कृत्याऽपि तस्य पारावारं ज्ञातुं न समर्थोऽभूवम् ।
उक्तं श्वेताश्वरोप-
अनाद्यनन्तं कलिलस्य मध्ये विश्वस्य स्वष्टारमनेकरूपम् ।
विश्वस्यैकं परिवेष्टितारं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः ॥
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इन्द्रियों के अविषय परब्रह्म परमात्मा, जो मेरे इष्टदेव परम गुरु हैं, उनका मैंने अपने अन्तःकरण में ही ज्ञान-दर्शन किया है । वे मेरे अन्तःकरण में अनुपम ज्योति स्वरूप है । ज्ञान-दृष्टि से देखने पर वे पिण्ड और ब्रह्माण्ड में समान ही दिखते हैं, जो प्राणियों के सभी शरीरों में नित्य प्रकाश स्वरूप निरन्तर भास रहे हैं ।
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ज्ञान-दृष्टि से उनको हृदय में अति समीप ही देख कर मेरा प्रेम पैदा हो गया । मैं कोई पूर्व जन्म के भाग्योदय से ही उनके दर्शन करके हृदय-शय्या पर बैठ कर सौभाग्य-सुख का अनुभव कर रहा हूँ । उनकी कृपा से मेरा जन्म उनके दर्शनों के लिये ही हुआ है । अहमदाबाद नगर में कांकरिया तालाब पर उनके दर्शन करके भी मैं उनके आदि अन्त को नहीं जान सका ।
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श्वेताश्वतरोप.-
इस दुर्गम संसार के भीतर व्याप्त, आदि-अन्त से रहित, समस्त जगत् की रचना करने वाले, अनेक रूपधारी, जगत् को सब और से घेरे हुए, अद्वितीय, परम देव, परमेश्वर को जान कर मनुष्य समस्त कल्पनाओं से मुक्त हो जाता है ।
(क्रमशः)