रविवार, 26 अप्रैल 2015

‪#‎daduji‬
॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =

अथ अध्याय ३ ~
५ आचार्य जैतरामजी महाराज ~
श्रीदादू द्वारे और मंदिर की मर्यादा ~
आरती का कार्य हो जाने के पश्‍चात् पहले तो गरीब गुहा व खेज़डाजी का दर्शन करें फिर अपने आसनों पर जाकर भजन करें । अष्टमी को मंदिर में जागरण करें । ११ को आचार्य जी की बारहदरी में जागरण और संतों के आश्रमों की परिक्रमा करें । १२ को इच्छानुसार जायें या ठहरें । हमेशा के लिये मंदिर व दादू द्वारे की सीमा में किसी भी प्रकार के नशे की वस्तुयें काम में नहीं लावें । कांदा, लहसुन आदि तामसी वस्तुयें दादू जी के भंडार में नहीं आनी चाहियें । इसका संकेत मंगलदासजी ने भी सुन्दरोदय ग्रंथ के तृतीय प्रकाश में किया है - 
 “कांदा लशुन न बरतिये, गुरुदादू भंडार । 
 मंगल गुरु अर्पण तजे, लहै न सिरजनहार ॥ ८३ ॥” 
दादू द्वारे की सीमा में छत्री लगाकर चलना, सवारी पर बैठकर चलना तथा अन्य कोई ऐसी ही विशेष बात आचार्य जी से भिन्न व्यक्ति को नहीं करना चाहिये । आचार्य जी की गद्दी, आसन, चौका पर पैर न रखें । इनको श्रद्धा की दृष्टि से देखें । आचार्यजी के वस्त्र आदि को अपने उपयोग में न लें । आचार्यजी की गद्दी के सामने नम्रतापूर्वक सभ्यता से बैठे ।
यह उक्त सभी प्रकार की मर्यादा समाज के सभी संतों ने मिलकर जैतराम जी महाराज से बन्धराई थी । सो चलती आ रहीहै । उक्त मर्यादा में चलने से ही समाज की निरंतर उन्नति होती रही थी । 

(क्रमशः)

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