सोमवार, 20 अप्रैल 2015

*= निर्गुण सगुण विवाद उचित नहीं =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~एकादश विन्दु ~*
*= निर्गुण सगुण विवाद उचित नहीं =* 
एक समय साँभर नगर के आस पास के किसी ग्राम के दो साधकों में विवाद चल रहा था । उनमें एक निर्गुण ब्रह्म में निष्ठा वाला और दूसरा सगुण ईश्वर में निष्ठा रखने वाला था । वे दोनों अपने - अपने पक्ष की सत्यता सिद्ध करने के विवाद में पड़े हुये थे किंतु निर्णय नहीं कर सके थे । एक दिन किसी सज्जन ने उन दोनों को कहा - आपके विवाद का निर्णय इस विषय के मर्मज्ञ संत से ही हो सकता है । 
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आज कल साँभर में एक गुजराती संत दादूजी आये हुये हैं, उनकी ख्याति अब दूर - दूर तक के प्रान्तों में भी हो गई है । वे परमार्थ विषय के पूरे अनुभवी संत हैं । तुम दोनों उनके पास जाओ । मुझे आशा है, वे तुम्हारे को भली भांति समझा देंगे । फिर वे दोनों साधक साँभर गये और दादूजी का आश्रम पूछकर दादूजी के आस पहुंचे । प्रणामादि करके हाथ जोड़ कर बैठ गये । 
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दादूजी ने उनसे पूछा - कैसे आये हो ? तब दोनों ने हाथ जोड़कर कहा - भगवन् ! हम दोनों में एक विवाद चल रहा है, उसका आपसे निर्णय कराने आये हैं । दादूजी ने कहा - क्या विवाद है ? तब उनमें से एक बोला - भगवन् ! मैं तो कहता हूं परमात्मा निर्गुण निराकार है और ये सज्जन कहते हैं - परमात्मा सगुण साकार है । अपने - अपने पक्ष को सिद्ध करने के लिये हम अपनी - अपनी तर्क देते हैं । किंतु मेरी तर्कों को ये अपनी तर्कों से काट देते हैं और इनकी तर्कों को मैं अपनी तर्कों से काट देता हूँ । इस प्रकार विवाद विवाद चलते बहुत समय हो गया किंतु कुछ भी निर्णय नहीं हो सका । अतः अब हम दोनों आपके पास आये हैं और आशा करते हैं कि आप हम दोनों को यथार्थ तत्व समझाने की कृपा अवश्य करेंगे । 
(क्रमशः)

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