मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

*= संभरायदेवी का आना =*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*~ एकादश विन्दु ~*
.
*= संभरायदेवी का आना =* 
एक दिन साँभर सर की कुटीर में दादूजी ध्यानस्थ थे, उसी समय संभरायदेवी सिंह पर बैठ कर दादूजी के पास आई और दादूजी को देखकर एक प्रकाश उसने फैलाया - "भा प्रकाश धर अम्बर छाया ।" 
.
तब दादूजी तो हरि के भरोसे पर ही स्थित रहे । फिर हरि ने देवी कृत प्रकाश से अत्यधिक प्रकाश वहाँ प्रकट कर दिया । फिर तो देवी को दादूजी तथा सब विश्व ही चिद्रूय भासने लगा । उसे देखकर दादूजी बोले - "आदि नूर अंत नूर ।" 
.
इस पद रूप स्तुति को सुनकर देवी प्रसन्न हुई और नाना मेवा रूप भेंट चढ़ाई और नमस्कार करके कहा - 
"नमि कहि नाथ शरण मैं तेरी, तुम तो रामपूत मैं चेरी ।" 
आप तो रामजी के पुत्र हैं और मैं रामजी की दासी हूँ । इत्यादिक स्तुति करके क्षमायाचना की । 
.
तब दादूजी बोले - 
"तब प्रभु कहा मात उपकारा, विश्वरूप हरि देखा सारा ।" 
फिर देवी ने कहा - मैं तो विश्वरूप हरि का एक अवयव हूँ । इत्यादि वचनों द्वारा अपनी लघुता दिखाकर तथा प्रणाम करके देवी चली गई । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें