शनिवार, 20 अप्रैल 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ३३/३६*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ३३/३६*
.
कहै हूँ हरिजन हरि भगत, हरि की सेवा मांहि ।
कहि जगजीवन अगम हरि, तहां गम तेरी नांहि ॥३३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मैं प्रभु का बंदा हूँ भक्त हूँ व हरि की सेवा में लगा रहूँ । प्रभु मेरी पंहुच से दूर है । मैं वहां नहीं पहुंच पाता हूँ सामर्थ्य नहीं है ।
.
उत्तर दिसि तिरिया बसै, पुरिष सु पूरब मांही ।
जगजीवन मूये मिलैं, जीवन मेला नांहि ॥३४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि उत्तर में जहाँ गंगा सी नदी है व पूर्व में सूर्य प्रकाशित है । पर इनमें जीवित नहीं मृत्यु पश्चात ही एकाकार हुआ जाता है ।
.
कासमीर केसर बसै, पूरब चंदन बास ।
त्रिया पुरुष तूटि र मिलै, सु कहि जगजीवनदास ॥३५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि उत्तर का काश्मीर केसर से व  पूर्वांचल में चंदन से सुगंध है । इस प्रकार रंग रुपी पुरुष व सुगंध रुपी स्त्री दोनों मिलते हैं ।
.
ज्वार बाजरौ उड़द दल, मोठ मूंग ए धांन ।
कहि जगजीवन गेहूँ चना मंहि, आठ अन्न ए ग्यांन ॥३६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि ज्वार बाजरा उड़द मोठ मूंग ये एक क्रम व गेहूं चना ये दूसरे क्रम में अन्न व दलहन है ऐसा जाने ।
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें