गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग २९/३२*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग २९/३२*
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इन मंहि जांनै जान सौं, नौंमी१० दसमी११ भेद ।
कहि जगजीवन बरत१२ हरि, अलख इग्यारस१३ बेद ॥२९॥
(१०. नौंमी=अक्षय नवमी तिथि ) (११. दसमी=विजयदशमी तिथि)
(१२-१३. बरत....इग्यारस=एकादसी व्रत)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि इसमें विद्वजन ही नवमी अर्थात त्याग की पूर्णता, अक्षयता व दशमी इन्द्रिय निग्रह व इन आशाओं पर विजय को वे ही जानते हैं जो ग्यारस रुपी मोक्ष के इच्छुक हैं ।
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कहि जगजीवन द्वादसी, दिनकर किरनि१४ प्रकास ।
गोरख गति लांघै सकल, मधि घर रांम निवास ॥३०॥
(१४. दिनकर=किरनि=सूर्य की किरणें)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि द्वादशी में ज्ञान किरण आती है व ज्ञानोदय होता है । उस अवधि में गोरक्ष नाथ जैसे उच्च कोटि के संत सब पार करके प्रभु के सनिध्य में उनके घर को प्राप्त होते हैं ।
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जठर अगनि षट अक्खरा१५, इनमैं उभै बिचारि ।
कहि जगजीवन रांम रमि, तन मन लीजै तारि ॥३१॥
(१५. षट अक्खरा=षडक्षर मन्त्र)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि क्षुधा आर्त या जठर अग्नि में छ: अक्षर हैं। जिसे शांत करने के लिये जीव भागता दौड़ता है यदि वह दो अक्षर के राम पर भरोसा कर ले तो तन मन दोनों भव से पार हो जायें ।
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बार न छांणै१ वार मधि, रांम न सुमरै जोग२ ।
कहि जगजीवन नांउं तजि, भूलि रहै भ्रम भोग ॥३२॥
(१. छांणैं=खोजै) {२. जोग=योग(विशेष अवसर)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु स्मरण न प्रकट है न गुप्त है न किसी विशेष दिन वार के लिये तय है । स्मरण का कोइ मुहूर्त नहीं है । जो इस प्रकार स्मरण में बहाने करते हैं । वे बहाने कर भोग विलास में लालायित रहते हैं ।
(क्रमशः)

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