गुरुवार, 2 मई 2024

*तीन भये सुत बांटत हैं वित*

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*दादू मैं दासी तिहिं दास की, जिहिं संगि खेलै पीव ।*
*बहुत भाँति कर वारणें, तापर दीजे जीव ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*तीन भये सुत बांटत हैं वित,*
*पूजन एकन धन्न धर्यो है ।*
*छाप रु श्याम धरी बँदनी इक,*
*रीति निहारि रु सोच पर्यो है ॥*
*एक किशोर लिये इक ने वसु,*
*दास किशोर तिलक्क कर्यो है ।*
*छाप दिई हरिदास सु रास,*
*कर्यो ललितादिक चित्त हर्यो है ॥३९८॥*
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व्यासजी के दो पुत्र और एक पुत्रवत प्रिय शिष्य ऐसे तीन पुत्र थे । उनके लिए आप ने अपनी संपत्ति का तीन हिस्सा बड़े विलक्षण ढंग से किया और कहा- "जिस को जो प्रिय लगे सो ही ले लें ।
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तब विलासदास ने किशोर प्रभुजी का पूजन, रामदास ने धन, किशोरदास ने श्यामवन्दनी(स्तुति) और छाप तिलक माथे चढा लिया ।
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स्वामी हरिदासजी से छाप धारण करके किशोरदासजी हरि कृपा से भजन में लगे । एक दिन किशोरदासजी स्वामी हरिदासजी और व्यासजी के साथ यमुना के तट गये और वहाँ अपना बनाया हुआ एक भजन रास का गाकर सुनाया ।
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उसी रात को श्रीव्यासजी ने दिव्य रहस्यमय उसी पद को श्रीललितजी को गाते सुना । श्रीव्यासजी और उनके पुत्र श्रीयुगलकिशोरदासजी ऐसे श्रेष्ठ भक्त हो गये हैं, जिनके पदों ने ललितादिक का भी चित्त हरा था अर्थात् ललितादिक ने भी गाये थे ॥
(क्रमशः)

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