गुरुवार, 2 मई 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ५३/५६*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ५३/५६*
.
कहि जगजीवन सबद मंहि, ए सब रांमति रांम१ ।
कोई जन जांणैं जौहरी२, सब नांमनि मैं नांम ॥५३॥
(१. रामति राम=रमताराम, सर्वव्यापक) {२. जौहरी=पारखी(रत्नपरीक्षक)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सभी शब्दों का आधार राम शब्द है यह सब में विद्यमान है । इसे कोइ पारखी जौहरी संत ही जान पाता है सब नामो में श्रेष्ठ नाम राम नाम ही है ।
.
च्यार वरण३ मांहि भ्रम्या जग, निकट न चीन्है रांम ।
कहि जगजीवन प्रेम भगति बिन, लहै न निहचल ठांम ॥५४॥
(३. वरण=वर्ण=ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि चारों वर्णों में बंटकर संसार में यह भ्रम है कि यह हमारी जाति है वे जाति को तो जानते हैं किंतु प्रभु जो सबसे निकट हैं उन्हें नहीं जानते हैं । अतः जब तक जीव में प्रेम भक्ति नहीं होगी वह स्थिर या स्थायी स्थान जो कि प्रभु सान्निध्य है नहीं पा सकता है ।
.
तीस पचास र बीस गये, एक रह्या मन मांहि ।
कहि जगजीवन हरि भगत, सौ हरि भूलै नांहि ॥५५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि चाहे माह जिसकी संख्या तीस दिवस है व यौवन जो बीस वर्ष तक है व गृहस्थाश्रम जो पचास वर्ष है आर्थात शैशव यौवन व जीवन समय में यदि हरि स्मरण करते रहें तो फिर प्रभु कभी नहीं भूलते व फिर परमात्मा भी ऐसे जीव को सानिध्य देना नहीं भूलते हैं । यदि संख्यात्मक रूप में तीस पचास व बीस राशि नष्ट भी हो जाये और प्रभु मन में रहे तो फिर भक्तों को प्रभु भी भूलते नहीं याद ही रखते हैं शरण देते हैं ।
.
दुऊँ अक्शर आग्या लों, सो पहलैं करि बूझि ।
कहि जगजीवन रांम रटि, हरि भजि इस सौं झूझि४ ॥५६॥
{४. झूझ=युद्ध(मुकाबला)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव जब भी कर्म करे दो अक्षर के प्रभु नाम से आज्ञा लेकर करे । हर समय स्मरण करो दूसरे विचार दूर रखें, उन्हें युद्ध के शत्रु की भांति दूर करो तभी विजयी बनोगे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें