मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

= ६१ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू यहु मन तीनों लोक में, अरस परस सब होइ ।
देही की रक्षा करैं, हम जनि भींटै कोइ ॥ 
दादू देह जतन कर राखिये, मन राख्या नहीं जाइ ।
उत्तम मध्यम वासना, भला बुरा सब खाइ ॥ 
दादू हाडों मुख भर्या, चाम रह्या लिपटाय ।
मांहैं जिभ्या मांस की, ताही सेती खाइ ॥ 
दादू नौवों द्वारे नरक के, निशदिन बहै बलाइ ।
शुचि कहाँ लौं कीजिये, राम सुमरि गुण गाइ ॥ 
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साभार ~ Ragini Kumari

मन मैला और तन को धोवे, फूल तो चाहे, कांटे बोवे
करे दिखावा भक्ति का क्यूं 
उजली ओढ़े चदरिया . . . . . 
भीतर से मन साफ़ किया ना, 
बाहर मांजे गगरिया,
परमेश्वर नित द्वार पे आये,तू भोला रहा सोये . . . . 
मन मैला और तन को धोवे, फूल तो चाहे, कांटे बोये

कभी ना मन मंदिर में तूने,
प्रेम की जोत जलाई 
सुख पाने तू दर - दर भटका,
जनम हुआ दुखदाई,
अब भी नाम सुमिरले हरि का, जनम वृथा क्यूँ खोये, 
मन मैला और तन को धोवे, फूल तो चाहे, कांटे बोये

साँसों का अनमोल खजाना,
दिन- दिन लूटता जाय 
मोती लेने आया तट पे, 
सीप से मन बहलाये,
साँचा सुख तो वो ही पाये, शरण प्रभु की जो होए 
मन मैला और तन को धोवे, फूल तो चाहे, कांटे बोये

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