शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

= परिचय का अंग =(४/२८७-८९)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐

**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= परिचय का अँग ४ =**

दादू सहजैं सहज समाइ ले, ज्ञानैं बँध्या ज्ञान ।
सूत्रैं सूत्र समाइ ले, ध्यानैं बँध्या ध्यान ॥२८७॥
निर्विकल्प समाधि रूप सहजावस्था द्वारा वृत्ति सहज - स्वरूप ब्रह्म में विलीन करे । शास्त्र - विचार रूप परोक्ष ज्ञान द्वारा अपरोक्ष ज्ञान में स्थित होवे । गुरु ज्ञान द्वारा व्यष्टि सूत्रात्मा तैजस को सम सूत्रात्मा हिरण्यगर्भ में विलीन करे । प्रतीक ध्यान द्वारा अहँ - ग्रह ध्यान में स्थित होवे ।

दादू दृष्टैं दृष्टि समाइ ले, सुरतैं सुरति समाइ ।
समझैं समझ समाइ ले, लै सौं लै ले लाइ ॥२८८॥
अपनी भेद दृष्टि को सात्विक विचार दृष्टियों द्वारा समदृष्टि में विलीन करे ।
मायिक पदार्थाकार अपनी वृत्ति को सात्विक वृत्तियों के अभ्यास द्वारा ब्रह्माकार - वृत्ति में लीन करे । अपनी अयथार्थ समझ को सँतों की समझ - द्वारा ईश्वर के वेद, गीतादिक ज्ञान रूप में लीन करे । विषयों में लीनता रूप वृत्ति को सन्तों की वैराग्य वृत्ति के द्वारा विषयों से हटा कर प्रभु में लीन करे ।

दादू भावैं भाव समाइ ले, भक्तैं भक्ति समान ।
प्रेमैं प्रेम समाइ ले, प्रीतैं प्रीति रस पान ॥२८९॥
अपने साधारण भाव को वैराग्यादिक श्रेष्ठ भावों द्वारा परब्रह्म सच्चिदानन्दादि भाव में, अपनी देहादिक भक्ति को नवधादि सगुण भक्तियों द्वारा निर्गुण भक्ति में, अपने लौकिक प्रेम को प्रभु - प्रेमियों के प्रेम का अनुकरण करके प्रभु प्रेम में, और अपनी प्रेमा भक्ति के प्रवाहों को परा - भक्ति में लीन करके अद्वैतानन्द - रस का पान करे ।
(क्रमशः)

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