शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

= १८२ =

卐 सत्यराम सा 卐 
*मति बुद्धि विवेक विचार बिन, माणस पशु समान ।*
*समझायां समझै नहीं, दादू परम गियान ॥* 
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क्या बुद्धिवादी होना उचित है ? समस्त जानकारी हमें बुद्धि के द्वारा ही प्राप्त होती है। बुद्धि ही ज्ञान को प्रकाशित करती है। हम बुद्धि का विकास किस ओर करते हैं, यह बात विचारणीय है। बुद्धि का विकास हम दो दिशा में कर सकते हैं ।
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प्रथम, हम बुद्धि को सही दिशा देकर ज्ञान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं । कहने का आशय यह कि हम बुद्धि को "वाह्य जगत" से मोड़कर अपने अंतर्मन की ओर अग्रसारित करा सकते हैं, जिससे वह अपनी आत्मा के आलोक को प्राप्त कर ले और यही मनुष्य जन्म प्राप्त करने का सच्चा व यथार्थ उद्देश्य है । सभी महापुरुष इसी दिशा में चलते हैं। उनके द्वारा वह उन्नति प्राप्त की गई है जिसके कारण उन्होंने समाज व संसार को सही रास्ता दिखलाया । बुद्धि भावना से जुड़कर आत्मिक उन्नति को प्राप्त कर पाती है। इसके विपरीत बुद्धि जब भावना का परित्याग करते हुए मात्र बुद्धिवादी बनकर आगे बढ़ती है, तब वह इंद्रियों के सुखों की पोषक होती है। वह इस ओर लग जाती है कि किस प्रकार से शरीर के सुख के लिए अधिक से अधिक योगदान किया जा सके। भाव का परित्याग कर दिया गया है। 
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बुद्धि की बाजीगरी चल रही है। लोग कैसे-कैसे, झूठ, फरेब, छल, कपट को ओढ़ते चले जा रहे हैं । हर तरफ बिखराव की स्थिति दिखाई पड़ती है, मगर वे क्यों नहीं समझ पाते कि भाव का परित्याग कर केवल बुद्धिवादी बनकर वैतरणी नहीं पार की जा सकती । बुद्धि को संसार में उतना ही प्रयुक्त करना चाहिए जिससे सही जीवन यापन हो सके। अब पुन: बाहर की दौड़ पर लगाम लगाकर अपने यथार्थ सुख की प्राप्ति की ओर बुद्धि को ले जाना होगा। तभी समाज को शांति व आनंद की राह पर लाया जा सकता है ।

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