सोमवार, 29 अप्रैल 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४२१

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४२१)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४२१. (फारसी) ईमान साबित ।*
*(राग काफी) राज मृगांक ताल*
*अल्लह आशिकाँ ईमान,*
*बहिश्त दोजख दीन दुनियां, चे कारे रहमान ॥टेक॥*
*मीर मीरी पीर पीरी, फरिश्तः फरमान ।*
*आब आतिश अर्श कुर्सी, दीदनी दीवान ॥१॥*
*हरदो आलम खलक खाना, मोमिना इसलाम ।*
*हजा हाजी क़ज़ा क़ाज़ी, खान तूँ सुलतान ॥२॥*
*इल्म आलम मुल्क मालुम, हाजते हैरान ।*
*अजब यारां खबरदारां, सूरते सुबहान ॥३॥*
*अव्वल आखिर एक तूँ ही, जिन्द है कुरबान ।*
*आशिकां दीदार दादू, नूर का नीशान ॥४॥*
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ईश्वर के भक्तों का ईश्वर के सिवा और कोई धर्म नहीं होता । किन्तु ईश्वर ही उनके लिये धर्म है । स्वर्ग नरक सांसारिक धर्म-कर्म सम्प्रदाय आदि से उनको कुछ प्रयोजन नहीं होता है । सम्राटों के साम्राज्य से पीर पैगम्बरों के चमत्कार से तथा देवदूतों की आज्ञापालन से भी उनको कोई प्रयोजन नहीं रहता ।
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वायु जल पृथ्वी तेज आदि के विशिष्ट विज्ञान से भी उनको कोई लाभ नहीं है । क्योंकि उनका विशिष्ट विज्ञान संसार से तो पार लगाने वाला है नहीं । फिर उस विज्ञान से तो उनको क्या लाभ हैं । इस लोक और परलोक के तो भक्तशासक होते हैं ।
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अर्थात् भक्तों की आज्ञा का पलान करने वाले मोमिन एवं न्याय करने वाले काजियों के ईश्वरभक्त किंकर नहीं होते जो उनकी आज्ञा का या उनके धर्मों का पालन करें । सांसारिक ज्ञान से तथा जिनका फल केवल परिश्रम मात्र हैं उन कर्मों से भगवान् के भक्त दूर ही रहते हैं ।
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क्योंकि भक्त कल्पद्रुम भगवान् उनकी सारी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं । इसलिये भक्त सदा भजन में सावधान होकर लगे रहते हैं । हे आदि और अन्त से रहित प्रभो ! हमारा जीवन तो आप ही के लिये है । अतः हम हमारा जीवन आपको समर्पित कर रहे हैं, और हमारे जीवन का लक्ष्य भी आपका दर्शन करना ही हैं । अतः आप हमें दर्शन देने की कृपा करें ।
(क्रमशः)

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