सोमवार, 29 अप्रैल 2024

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*दादू निबहै त्यौं चलै, धीरै धीरज मांहि ।*
*परसेगा पीव एक दिन, दादू थाके नांहि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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सूफियों ने परमात्मा को निन्यानबे नाम दिए, उनमें एक नाम है: सबूर, सब्र। अनंत प्रतीक्षा, अनंत धैर्य ! प्यारा नाम है ! बहुत नाम परमात्मा को दिए हैं लोगों ने अलग-अलग, मगर सूफियों ने सबको मात कर दिया। 
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उस नाम में सूचना दी है तुम्हें कि जब तुम भी सब्र हो जाओगे तभी से पा सकोगे ! उसे पाना है तो कुछ उस जैसे होना पड़ेगा। हम वही पा सकते हैं जिस जैसे हम हो जाए। हम अपने से बिलकुल भिन्न को नहीं पा सकेंगे। कुछ तारतम्य होना चाहिए–हम में और उसमें।
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उसका सब्र देखते हो ! उसका सबूर देखते हो ! रवींद्रनाथ की एक कविता है, जिसमें रवींद्रनाथ ने कहा है कि हे परमात्मा ! जब मैं सोचता हूं तेरे सब्र की बात तो मेरा सिर घूम जाता है ! और तेरा कितना धैर्य है, तू आदमी को बनाए चला जाता है ! और आदमी तेरे साथ दुरव्यवहार किए चला जाता है। और तू है कि आदमी की बनाए चला जाता है।
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तू आशा छोड़ता ही नहीं। तू सोचता है, अब की बार ठीक हो जाएगा, अब की बार ठीक हो जाएगा। तू पापी को भी प्राण दिए जाता है, पापी में भी श्वास लिए जाता है। तेरा धैर्य नहीं चुकता। हत्यारे से हत्यारा भी तेरी आंखों में जीने की योग्यता नहीं खोता, तू उसे भी जीवन दिए जाता है! तुझे आशा है, आज तक तो ठीक नहीं हुआ, कल तक हो जाएगा, परसों हो जाएगा।
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कब तक भटकेगा ! आज घर नहीं पाया, कल पाएगा, कल नहीं तो परसों आएगा। आएगा ही। जन्मों-जन्मों तक लोग भटकते रहते हैं, मगर तेरी अनुकंपा जरा भी कठोर नहीं होती। तेरी अनुकंपा वैसी ही सदा से है, वैसी ही उदार, वैसी ही बरसती रहती है। तू इसकी फिकर ही नहीं करता कि कौन पापी है, कौन पुण्यात्मा पी लेता है, तेरे बादल से और पापी नहीं पीता।
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यह उनका निर्णय है। मगर तेरी तरफ से कोई भेद नहीं होता। तेरी तरफ से अभेद है। तेरा सूरज निकला है और सब पर रोशनी बरसाता है। यह दूसरी बात है कि कोई आंख बंद रखे। यह उसकी मर्जी। मगर तेरी तरफ से भेंट में कभी फर्क नहीं पड़ती। तेरा कितना धीरज है। तू आदमी से थका नहीं। तू आदमी की हत्याएं, पाखंड, उपद्रव देखकर ऊब नहीं गया ? अभी तेरे मन में यह खयाल नहीं आता कि बस समाप्त करो ? तेरा आदमी पर अब भी भरोसा है ?
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रवींद्रनाथ ने कहा है कि जब भी कोई छोटा नया बच्चा पैदा होता है, तब फिर मुझे धन्यवाद देने की आकांक्षा होती है कि फिर उसने एक आशा की किरण, भेजी। हर नया बच्चा इस बात की खबर है कि परमात्मा अभी आदमी से चुका नहीं, अभी आदमी पर भरोसा है। अभी आदमी से आशा है।
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सूफी ठीक ही कहते हैं कि वह सब्र है, सबूर है। धीरज है। धैर्य है। तुम भी कुछ उस जैसे बनो। कब तक मत पूछो। मैं जानता हूं, हम थक जाते हैं, हम जल्दी थक जाते हैं। थोड़े बहुत दिन ध्यान किया, मन मगन होता है। अब कब तक करते रहें ? थोड़े बहुत दिन प्रार्थना की और मन होने लगता है कि यह क्या जिंदगी भर करते रहेंगे ?
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अभी तक कुछ नहीं हुआ, आगे भी क्या होगा ? हमारा मन बड़ा शंकाशील है। उसकी शंकाओं के कारण कभी-कभी हम ठीक दरवाजे पर पहुंचे हुए वापस लौट जाते हैं। कभी-कभी बस एक हाथ और गङ्ढा खोदना था कि कुएं का जल मिल जाता। मगर मन कहता है बस बहुत हो गई खुदाई। अभी तक जल नहीं मिला, अब क्या मिलेगा !
ओशो

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