बुधवार, 24 अप्रैल 2024

= शब्दस्कन्ध ~ पद #४१९ =

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४१९)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४१९. रंगताल*
*मोहन माधव कब मिलै, सकल शिरोमणि राइ ।*
*तन मन व्याकुल होत है, दरस दिखाओ आइ ॥टेक॥*
*नैन रहे  पथ  जोवताँ, रोवत रैनि बिहाइ ।*
*बाल सनेही कब मिलै, मोपै रह्या न जाइ ॥१॥*
*छिन-छिन अंग अनल दहै, हरिजी कब मिलि हैं आइ ।*
*अंतरजामी जान कर, मेरे तन की तप्त बुझाइ ॥२॥*
*तुम दाता सुख देत हो, हाँ हो सुन दीनदयाल ।*
*चाहैं नैन उतावले, हाँ हो कब देखूं  लाल ॥३॥*
*चरन कमल कब देख हौं, हाँ हो सन्मुख सिरजनहार ।*
*सांई संग सदा रहौं, हाँ हो तब भाग हमार ॥४॥*
*जीवनि मेरी जब मिलै, हाँ हो तब ही सुख होइ ।*
*तन मन में तूँ ही बसै, हाँ हो कब देखूं सोइ ॥५॥*
*तन मन की तूँ ही लखै, हाँ हो सुन चतुर सुजान ।*
*तुम देखे बिन क्यों रहौं, हाँ हो मोहि लागे बान ॥६॥*
*बिन देखे दुख पाइये, हाँ हो इब विलम्ब न लाइ ।*
*दादू दरशन कारणैं, हाँ हो सुख दीजे आइ ॥७॥*

हे सर्वशिरोमणि विश्व सम्राट् मनोमोहन माधव ! आप मुझे कब मिलेंगे । क्योंकि आपके बिना मेरा मन और शरीर व्याकुल हो रहा हैं । सो आप यहाँ पधारकर दर्शन दीजिये । आपके आने का रास्ता देखते-देखते मेरे नेत्र भी थक गये हैं । नेत्रों में अश्रुधारा बहाते-बहाते रात पूरी होती हैं । 
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हे राम ! आप बालकपन से ही मेरे साथी हैं । अतः कहिये कि कब दर्शन दे रहे हैं । आपके बिना मेरा जीवन सुखी नहीं है । साथ में यह विरहाग्नि तो मेरे हरेक अंग को प्रतिक्षण जला रही हैं । आपका मेरे हृदय में मिलन कब होगा । आप अन्तर्यामी हैं अतः मेरी सारी स्थिति को जानकर शरीर में उत्पन्न विरहाग्नि को दर्शन देकर शान्त करें । 
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आप तो भक्तों को सुख देने वाले हैं अतः मेरी भी विनय सुनें मेरे नेत्र तो आपके दर्शनों के लिये जल्दी कर रहे हैं । हे प्यारे प्रभो ! आप ही कहिये कि मैं कब आपके दर्शन पाऊंगा ।
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हे सृष्टि की रचना करने वाले प्रभो ! मैं आपने सन्मुख आपके दर्शन कब पाऊंगा । आपके चरणकमलों का दर्शन कब होगा । मैं तो अपने भाग्य को तब ही सफल मानूंगा कि जब मैं सर्वदा आपके साथ निवास करूंगा । मेरे जीवन के आधार प्राणनाथ ! जब भगवान् मुझे प्राप्त होंगे तब ही मैं सुखी होऊंगा । 
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शास्त्रों में तो सुनते हैं कि – वह परमात्मा सर्वशरीरों में व्यापकरूप से रहता हैं । लेकिन उस सर्वव्यापक का मुझे दर्शन कब होगा यह मैं नहीं जानता । आप मेरे मन और शरीर की सारी स्थिति जान रहे हैं । तो मैं इस स्थिति मैं सदा कैसे जीवित रहूंगा । विरहवाणों से मैं पीड़ित हूँ, आपको देखे बिना बड़ा दुःखी हूँ । अब दर्शन देने में विलम्ब न करें किन्तु दर्शन देकर मुझे सुखी बनावे ।
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भक्तिरसायन में कहा है कि -  
आपका प्रादुर्भाव सब प्राणियों को सुख देने के लिये हुआ । अतः आप ब्रज से मत जाइये । यदि आप कहें कि तुम्हारे में मान आ गया तो मा(लक्ष्मी) तो हमारे साथ सदा ही रहती हैं और इस लोक में यह भी प्रसिद्ध हैं कि हम आपकी हैं और आप हमारे प्राणप्रिय हैं, तो फिर दर्शन न देने में कोई सद्हेतु नहीं दीखता तो फिर दर्शन देने में विलम्ब क्यों कर रहे हैं ।
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हमारे मानरुपी अपराध को देखकर यदि आपका मन हमारे को त्यागने का कर रहा है तो भी ठीक नहीं हैं । क्योंकि अपराध तो थोड़ा और दण्ड बहुत ज्यादा है । फिर हम नेत्रों ने तो आपका कोई अपराध किया ही नहीं तो फिर अन्य के अपराध का दण्ड इन निर्दोष नेत्रों को देकर अधर्म क्यों कर रहे हैं । अतः दर्शन देवो ।
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इस निर्जन वन में हम कामदेव से पीड़ित हैं और आपके चरण कमलों से अन्य हमारी कोई गति नहीं है । अतः हे दयालो ! दर्शन न देकर यह नया अपराध क्यों कर रहे हैं । अतः करुणा करके थोड़ा सा दर्शन दे दीजिये ।  
(क्रमशः)

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