मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ३७/४०*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ३७/४०*
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कहि जगजीवन रांमजी, बिरह बेग उर छेद ।
रुग जुग स्यांम समान हरि, अरथ अथरवन बेद ॥३७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि विरह का वेग ह्रदय को भेदता है । जिसमें एक क्षण भी युग समान व्यतीत होता है, और फिर जीव अथर्वेद के मंत्र, जादू आदि ढूंढता है ।
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कहि जगजीवन रांमजी, नौ ग्रह३ बारह रासि४ ।
सप्त वार५ मांहि सोधि ले, परगट है पीव पासि ॥३८॥
(३. नौ ग्रह=१.रवि, २.सोम, ३.मंगल, ४.बुध, ५.बृहस्पति, ६.शुक्र, ७.शनि, ८.राहु एवं ९.केतु) (४. बारह राशि=१.मेष, २.वृष, ३.मिथुन, ४.कर्क, ५.सिंह, ६.कन्या, ७.तुला, ८.वृश्चिक, ९.धनु, १०.मकर, ११.कुम्भ, १२.मीन) (५. सात बार=१.रविवार, २.सोमवार, ३.मंगलवार, ४.बुधवार, ५.गुरूवार, ६.शुक्रवार, ७.शनिवार)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु नौ ग्रह बारह राशि सात वार सब में अच्छे से ढूंढ लो परमात्मा तो पास ही प्रकट रुप में है बस खोज लीजिये ।
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कहि जगजीवन रांमजी, आदित६ आनंद होइ ।
सोम ससी७ अम्रित झरै, मंगल बुध घर जोइ ॥३९॥
{६. आदित=आदित्य(सूर्य)} (७. सोम ससी=चन्द्रमा)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आनंद का सूर्य उदित है । चन्द्र से अमृत झरता है । मंगल बुध ग्रह स्थिति बनाते हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, बिरहसपति प्रीतम पास ।
सुकर सनीचर सप्त बार हरि, सुमिरण सासैं सास ॥४०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि बृहस्पति गुरु परमात्मा से मिलाता है । इस प्रकार शुक्र शनि सातों ही वार दिवस में प्रभु का स्मरण करते रहो । हर सांस में हो स्मरण तेरा । यूं बीत जाये ये जीवन मेरा ।
(क्रमशः)

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