गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

*श्रीरामकृष्ण तथा ईशु*

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*दादू सिरजनहार के, केते नाम अनन्त ।*
*चित आवै सो लीजिये, यों साधु सुमरैं संत ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)श्रीरामकृष्ण तथा ईशु*
श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ बैठे हुए हैं । दिन के ग्यारह बजे का समय होगा । मिश्र नाम के एक ईसाई भक्त के साथ बातचीत हो रही है । मिश्र की आयु पैंतीस वर्ष की होगी । इनका जन्म ईसाई वंश में हुआ है । बाहर से तो वे साहबी वेश-भूषा धारण किये हुए हैं, परन्तु भीतर गेरुआ वस्त्र पहने हैं ।
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इस समय इन्होंने संसार का त्याग कर दिया है । इनका जन्म-स्थान पश्चिम है । इनके एक भाई के विवाह के दिन इनके दूसरे दो भाइयों की मृत्यु हो गयी थी, तब से मिश्र ने संसार का त्याग कर दिया है । ये Quaker(क्वेकर) सम्प्रदाय के हैं ।
मिश्र - 'वही राम घट-घट में लेटा ।'
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श्रीरामकृष्ण छोटे नरेन्द्र से धीरे-धीरे कह रहे हैं, परन्तु इस ढंग से कि मिश्र भी सुनें – “राम एक ही हैं, परन्तु उनके नाम हजारों हैं ।
“ईसाई जिन्हें गाड(God) कहते हैं, हिन्दू उन्हें ही राम, कृष्ण और ईश्वर कहकर पुकारते हैं । तालाब में बहुत से घाट हैं । हिन्दू एक घाट में पानी पीते हैं, कहते हैं ‘जल’; ईसाई दूसरे घाट में पानी पीते हैं, कहते हैं 'वाटर' (Water); मुसलमान तीसरे घाट में पानी पीते हैं, कहते हैं 'पानी' ।
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“इसी प्रकार जो ईसाइयों का 'गाड'(God) है, वही मुसलमानों का 'अल्ला' है ।”
मिश्र - ईशु मेरी का लड़का नहीं है, ईशु साक्षात् ईश्वर हैं ।
(भक्तों से) "ये (श्रीरामकृष्ण) अभी तो ऐसे दिखते हैं, पर ये साक्षात् ईश्वर हैं । आप लोगों ने इन्हें पहचाना नहीं । मैं पहले ही इनके दर्शन ध्यान में कर चुका हूँ - अब इस समय इन्हें साक्षात् देख रहा हूँ । मैंने देखा था, एक बगीचा है, ये ऊँचे आसन पर बैठे हुए हैं; जमीन पर एक व्यक्ति और बैठे हुए हैं, - वे उतने पहुँचे हुए नहीं थे ।
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“इस देश में ईश्वर के चार द्वारपाल हैं । बम्बई प्रान्त में तुकाराम, काश्मीर में रॉबर्ट माइकेल(Robert Michael), यहाँ ये, और पूर्व बंगाल में एक और हैं ।"
श्रीरामकृष्ण - क्या तुम्हें कुछ दर्शन होता है ?
मिश्र – जी, जब मैं घर पर था, तब ज्योति-दर्शन होता था । इसके बाद ईशु को मैंने देखा । उस रूप की बात अब क्या कहूँ - उस सौन्दर्य के सामने स्त्री का सौन्दर्य खाक है !
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कुछ देर बाद भक्तों के साथ बातचीत करते हुए मिश्र ने कोट और पतलून खोलकर भीतर गेरुए की कौपीन दिखलायी ।
श्रीरामकृष्ण बरामदे से आकर कह रहे हैं - "इसे (मिश्र को) देखा, वीर की तरह खड़ा है ।"
यह कहते हुए श्रीरामकृष्ण समाधिमान हो रहे हैं । पश्चिम की ओर मुँह करके खड़े हुए वे समाधिमग्न हो गये ।
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कुछ प्रकृतिस्थ होने पर मिश्र पर दृष्टि लगाकर हँस रहे हैं । अब भी खड़े हैं । भावावेश में मिश्र से हाथ मिलाते हुए हँस रहे हैं । हाथ पकड़कर कह रहे हैं, 'तुम जो चाहते हो, वह प्राप्त हो जायगा ।'
श्रीरामकृष्ण ईशु के भाव में हैं ।
मिश्र - (हाथ जोड़कर) - उस दिन से मैंने अपना मन, अपने प्राण, अपना शरीर, सब कुछ आपको समर्पित कर दिया है ।
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श्रीरामकृष्ण भावावस्था में अब भी हँस रहे हैं । वे बैठे । मिश्र भक्तों से अपने सांसारिक जीवन का वर्णन कर रहे हैं । उन्होंने बताया कि किस प्रकार विवाह के समय शामियाना के नीचे गिर जाने से उनके दो भाइयों की मृत्यु हो गयी ।
श्रीरामकृष्ण ने भक्तों से मिश्र की खातिर करने को कहा ।
(क्रमशः)

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