बुधवार, 17 अप्रैल 2024

*श्री रज्जबवाणी गरीबदासजी के भेंट सवैया ~ २४*

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*आगम निगम तहँ गम करै, तत्त्वैं तत्त्व मिलान ।*
*आसन गुरु के आइबो, मुक्तैं महल समान ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद. २४७)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी गरीबदासजी के भेंट सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
श्री स्वामी गरीबदासजी के भेंट सवैये ३
मनहर -
गरीब के गर्व नांहिं दीन रूप दास मांहिं,
आये न विमुख जांहिं आनन्द को रूप है ।
दादूजी के पाट१ परि बैठाये जु आप हरि,
उपज्यो सु वीर घर भक्ति भूमि भूप है ॥
यौवन में राख्यो जत पूजवान२ पूरि मति,
राम रंग प्राण रत्त निर्मलो निकूप३ है ।
आतम को रक्ष पाल पठयो४ जु दीन दयाल,
पंथ के तिलक भाल रज्जब अनूप है ॥३॥२४॥
गरीबदासजी में गर्व नहीं है, दीनता रूप तथा दास भाव ही इनके भीतर हैं । इनके पास आये हुवे विमुख नहीं जाते, उनकी इच्छा पूर्ण ही होती है, यह आनन्द रूप हैं ।
दादूजी की गद्दी२ पर स्वयं हरि ने ही इन्हें बैठाया है यह दादूजी के पंथ रूप घर में साधक शूर उत्पन्न हुये हैं और भक्ति रूप भूमी के तो वे राजा ही हैं ।
यौवनावस्था में भी यति रहे हैं, पूर्ण बुद्धि और पूज्य२ हैं, राम के प्रेम रूप रंग में इनके प्राण अनुरक्त हैं । निर्मलता के तो ये निरे३ कूप ही हैं ।
आत्मा के रक्षक हैं, इन्हें दीन दयालु प्रभु ने ही भेजा४ है । यह पंथ रूप भाल के तिलक हैं और उपमा रहित हैं ।
### इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित श्री स्वामी गरीबदासजी के भेंट के सवैये समाप्त ###
(क्रमशः)

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