सोमवार, 29 अप्रैल 2024

*कालीपूजा के दिन भक्तों के संग में*

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*दादू बेली आत्मा, सहज फूल फल होइ ।*
*सहज सहज सतगुरु कहै, बूझै बिरला कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ बेली का अंग)*
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*परिच्छेद १३१~कालीपूजा तथा श्रीरामकृष्ण*
*(१)कालीपूजा के दिन भक्तों के संग में*
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श्रीरामकृष्ण श्यामपुकुरवाले मकान के ऊपर दक्षिण के कमरे में खड़े हुए हैं । दिन के ९ बजे का समय होगा । आप शुद्ध वस्त्र पहने ललाट में चन्दन की बिन्दी लगाये हुए हैं । मास्टर आपकी आज्ञा पाकर सिद्धेश्वरी काली का प्रसाद ले आये हैं ।
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प्रसाद को हाथ में ले, बड़े भक्ति-भाव से श्रीरामकृष्ण खड़े हुए उसका कुछ अंश ग्रहण कर रहे हैं और कुछ मस्तक पर धारण कर रहे हैं । प्रसाद ग्रहण करते समय आपने पादुकाओं को पैरों से उतार दिया । मास्टर से कह रहे हैं- "बहुत अच्छा प्रसाद है ।" आज शुक्रवार है, आश्विन की अमावस्या, ६ नवम्बर १८८५ । आज कालीपूजा का दिन है ।
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श्रीरामकृष्ण ने मास्टर को आदेश दिया था ठनठनिया की सिद्धेश्वरी काली मूर्ति की पुष्प, नारियल, शक्कर और सन्देश चढ़ाकर पूजा करने के लिए । मास्टर स्नान करके नंगे पैर सबेरे पूजा समाप्त करके नंगे पैर ही श्रीरामकृष्ण के लिए प्रसाद लेकर आये हैं ।
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श्रीरामकृष्ण ने मास्टर को रामप्रसाद और कमलाकान्त की संगीत-पुस्तकें खरीद लाने के लिए कहा था । वे डाक्टर सरकार को ये पुस्तकें देना चाहते थे ।
मास्टर कह रहे है - "ये पुस्तकें भी लाया हूँ - रामप्रसाद और कमलाकान्त के गाने की पुस्तकें ।" श्रीरामकृष्ण ने कहा, “डाक्टर के भीतर इन गीतों का भाव संचारित कर देना होगा ।"
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गाना - ऐ मेरे मन ! ईश्वर का स्वरूप जानने के लिए तुम यह कैसी चेष्टा कर रहे हो ? तुम तो अँधेरे कमरे में बन्द पागल की तरह भटक रहे हो ...।
गाना - कौन कह सकता है कि काली कैसी है ? षड्दर्शनों को भी जिसके दर्शन नहीं हो पाते .....?
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गाना - ऐ मन ! तू खेती करना नहीं जानता । यह मनुष्यजन्म परती जमीन की तरह पड़ा रह गया ! अगर तू खेती करता तो इसमें सोना फल सकता था !......
गाना - आ मन, चल, टहलने चलें । काली-कल्पतरु के नीचे तुझे चारों फल पड़े मिल जायेंगे ।.....
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मास्टर ने कहा, 'जी हाँ ।' श्रीरामकृष्ण मास्टर के साथ कमरे में टहल रहे हैं - पैरों में चट्टी जूता है । इस तरह की कठिन बीमारी, परन्तु फिर भी श्रीरामकृष्ण सदा ही प्रसन्न रहते हैं ।
श्रीरामकृष्ण - और वह गाना भी अच्छा है । 'यह संसार धोखे की टट्टी है ।'
मास्टर - जी हाँ ।
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श्रीरामकृष्ण एकाएक चौंक पड़े। पादुकाओं को निकालकर वे स्थिर भाव से खड़े हो गये और गम्भीर समाधि में मग्न हो गये । आज जगन्माता की पूजा का दिन है, शायद इसीलिए बारम्बार उन्हें रोमांच हो रहा है और समाधि में मग्न हो रहे हैं । बड़ी देर बाद एक लम्बी साँस छोड़ मानो बड़े कष्ट से उन्होंने अपना भाव संवरण किया ।
(क्रमशः)

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