मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

*आप सुनी झट ल्यावत धीरा*

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*दादू भोजन दीजे देह को, लिया मन विश्राम ।*
*साधु के मुख मेलिये, पाया आतमराम ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भक्तन इष्ट सुन्यो इक म्हंत हु,*
*आवत पारिख को जन भीरा ।*
*भूख जनावत व्यास सुनावत,*
*आप सुनी झट ल्यावत धीरा ॥*
*मानत नांहिं धरी मन शंकहु,*
*पात उठे मनु होवत पीरा ।*
*पातर लेवत सीथ दियो मन,*
*और भजो१ पग ले दृग नीरा ॥३९७॥*
नाभाजी ने अपने ९२ छप्पये में कहा है- "भक्त इष्ट अति व्यास के ।" यह सुनकर एक महन्तजी व्यासजी की परीक्षा लेने को लाहौर से वृन्दावन आये । उनके साथ संतों की भीड़ थी अर्थात् साथ में बहुत संत थे ।
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व्यासजी को सुनाकर महन्त ने अपनी भूख को बताते हुये कहा- "मैं भूख से अत्यधिक पीड़ित हो रहा हूँ ।" व्यासजी ने कहा- "भोग का थाल मन्दिर में जा चुका है, थोड़ा धैर्य रखिये पंगति होने वाली ही है ।"
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यह सुनकर महन्त को इनके भक्त इष्ट हैं, इसमें शंका हो गई । नाभाजी के वचन को प्रमाण रूप नहीं माना और फिर 'भूख भूख' बोल उठे । व्यासजी तो संतों में वस्तुतः हरि का भाव रखते ही थे । आपने अति शीघ्र कहा- "हाँ भोग आता है ।" यह कहकर उसी क्षण भोग मँगा ही दिया ।
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महन्त दो चार ग्रास पाकर मानो पेट में पीड़ा होती हो ऐसा अभिनय करके प्रसाद पाते ही उठ गये, नहीं पाया ।
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व्यासजी ने उसको भगवत प्रसाद मानकर अपने पाने के लिये पत्तल समेट कर रख लिया और बोले- "आपने बड़ी कृपा की जो मेरे लिये सीथ(जूंठा) प्रसाद कर लिया किन्तु आपने प्रसाद पूर्ण रूप से "नहीं पाया है, सो और भोग आता है, कृपा करके आप अवश्य सेवन१ कीजिये ।" आपका यह निष्कपट दृढ़ भाव संतों में देखकर महन्तजी के नेत्रों में अश्रु भर आये । महन्तजी व्यासजी के चरण पकड़ कर कहने लगे कि "मैं परीक्षा लेने आया था, वास्तव में आप भगवद्भक्तों को अति इष्टदेव ही मानते थे ।
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नाभाजी ने यथार्थ ही लिखा है- 
"महन्त कहा तब सहित हुलासा । 
सत्य व्यास तुम भक्तनदासा ॥" 
(क्रमशः)

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