मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ४९/५२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग ४९/५२*
.
इहाँ नहीं सौ इहाँ है, इहाँ सो उस घर नांहि ।
कहि जगजीवन रांम रटि, हरिजन देखै मांहि ॥४९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो प्रभु मन में नहीं भासते वे वास्तव में हमारे मन में हैं । और वे ही ब्रह्म हैं । जो स्मरण करता है वह अवश्य अपने अंतर में ही प्रभु के दर्शन पाता है ।
.
कहि जगजीवन रांमजी, तत तता ते तात ।
तत्तु तेज त्रिभुवन धणी, तम तम तहां थात ॥५०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि तत्व रूप प्रभु ही ब्रह्मरूपी पिता हैं व उस तत्व के तेजोमय स्वरूप से ही अज्ञान रुपी अन्धकार संसार से अस्तित्व विहीन होता है ।
.
उड़गण८ नो लाख बिराजै, दधिसुत९ कीन्ह प्रकास ।
गगन मगन हरि मांहि सब, सु कहि जगजीवनदास ॥५१॥
{८. उडगन-उडुगन=नक्षत्रसमूह(तारामण्डल)} 
(९. दधिसुत=चन्द्रमा) 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि तारामणडल या जुगनु जिनकी संख्या नोलाख अनुमानित है आकाश में स्थित है । उनसे भी बढकर चन्द्र प्रकाश है । पर गगन सबके लिये समान है । सब उसमें मस्त है यह ही स्थिति जीव की वह संसार में मस्त है और सारा संसार प्रभु में आधारित है ।
.
कहि जगजीवन बैष्नौं, बेद बाण बसि राखि ।
हरि भज हरि मंहि मिलि रहै, अम्रित सुधारस चाखि ॥५२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वैष्णव जन भी यह आशा रुपी शर मन में रखते हैं । जीव हरि स्मरण कर हरि में ही समाये तो वह अमृतानंद चख पाता है ।
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें