शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

*उतपति संसै परसन कौ अंग*

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*एक सबद सब कुछ किया, ऐसो समरथ सोइ ।*
*आगै पीछै वौ करै, जे बलहीना होइ ॥*
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*उतपति संसै परसन कौ अंग ॥*
इकलस इकरस साहिब कहिये, को गुण ब्यापै नाहीं ।
तिस साहिब कै कहौ स्वामीजी, माया थी किस ठाँई ॥४॥
वह परमात्मा एकलस = अकेला = अद्वितीय और एकरस = सदा सर्वदा तीनों कालों में एक जैसा रहने वाला है । उसको सत-रज-तम नामक तीनों गुणों में से न तो कोई पृथक-पृथक ही और न समेकित रूप में ही व्यापते हैं = आच्छादित करते हैं । ऐसे परमात्मा के किस स्थान में = किस अंग में यह माया विद्यमान थी जिससे संसार उत्पन्न हुआ और जो लोगों को विमोहित करती है ॥४॥
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*उत्तर ॥ आदि सबद बिस्तार कौ अंग*
बषनां तिल बैसंदरा, पेट बडौ परिमाण ।
येक सब्द सौं सब हुवा, माय मांड मंडाण ॥५॥
बषनांजी कहते हैं, तिल के बराबर की अग्नि का भी पेट बहुत बड़ा होता है । अर्थात् अग्नि का छोटा सा कण ही किसी भी परिमाण के पदार्थ को जलाने में पूर्ण समर्थ होता है ।
इसी प्रकार एक शब्द ॐ जो सर्वाधिक छोटा और अकेला है, से ही माया, माँड = शरीर और मंडाण = संसार का निर्माण हुआ है । कहने का आशय यह है कि परब्रहम-परमात्मा-स्वरूप शब्द ही संसार का अभिन्ननिमित्तोपादान कारण है ।
दादूजी ने कहा है~ 
“एक सबद सब कुछ किया, ऐसो समरथ सोइ ।
आगै पीछै वौ करै, जे बलहीना होइ” ॥२१/१०॥
बेद कतेब साध सब बूझ्या, करि करि जूवा जूवा ।
बषनां नैं दादू यौं कहिया, साहिब तैं सब हूवा ॥६॥
बषनांजी कहते हैं, मैंने अलग-अलग करके वेदज्ञाता पंडितों से, कतेब = कुरानज्ञाताओं से तथा साध = स्वात्मसाक्षात्कारी ब्रह्मनिष्ठ महात्माओं से ऊपर कहा गया प्रश्न पूछा । गुरुमहाराज दादूजी ने उत्तर बताते हुए समझाया कि यह सब कुछ एक परमात्मा से ही उत्पन्न हुए हैं ॥६॥
इति आदि सबद निरनैं कौ अंग संपूर्ण ॥अंग ९८॥साषी १७६॥
(क्रमशः)

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