शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

*श्री रज्जबवाणी, गुरुदेव का अंग(३) ~ १.२५*

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*सत गुरु किया फेरि कर, मन का औरै रूप ।*
*दादू पंचों पलटि कर, कैसे भये अनूप ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी गरीबदासजी के भेंट सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
गुरुदेव का अंग(३)
सीर१ सु सतगुरु में सब शिष्यों को,
नीति की बात कही निरताई२ ।
साझो दियो गुरु देव सु ज्ञान में,
भाव रु भक्ति की खानि बँटाई३ ॥
दृष्टि सो ज्ञान दियो दत४ दीरघ,
ज्योति में ज्योति लै५ ज्योति जगाई ।
हो६ रज्जब भेल्यो७ सुभाग में भाग तो,
छाजन८ भोजन की कहा भाई ॥१॥२५॥
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सदगुरु संबन्धी विचार प्रकट कर रहे हैं -
सदगुरु में सभी शिष्यों का सांझा१ है विचार२ करके यह नीति की बात कही है । गुरुदेव ने अपने ज्ञान का साझा दिया है ।
और सब भाव व भक्ति की खानि वितरण३ की है ।
अपनी ज्ञान दृष्टि के समान ही हमें महान ज्ञान४ का दान दिया है । ब्रह्म ज्योति में आत्म ज्योति को लय५ करके ब्रह्म ज्ञान रूप ज्योति जगाई है ।
हे६ भाई ! हमारा भाग्य तो गुरुदेव के सु भाग्य में मिल७ गया है अब वस्त्र८ भोजन की क्या बात है ? ये तो प्रारब्धानुसार आप ही मिलेगा ।
(क्रमशः)

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