मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

*कोप कर्यो पति पोषत चीनी*

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*जहँ तहँ विषय विकार तैं, तुम ही राखणहार ।*
*तन मन तुम को सौंपिया, साचा सिरजनहार ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*साधुन साथ प्रसाद करें जन,*
*घालत है सु तिया सु प्रवीनी ।*
*पै बरताय थरै निज डारत,*
*कोप कर्यो पति पोषत चीनी ॥*
*दूर करी तब रोय मरी दिन,*
*तीनहु भूख सही तन खीनी ।*
*कैत सबै भरि दंड अबै सब,*
*भूषण देर करी सु अधीनी ॥३९४॥*
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एक दिन संतों के साथ भक्त व्यासदासजी प्रसाद पा रहे थे । सुन्दर ढंग से परसने वाली सु प्रवीण व्यासदासजी की धर्म पत्नी परसने का कार्य करती थी । आज दूध परसते समय मलाई व्यासदासजी के पात्र में पड़ गई । यह देखकर व्यासजी के मन में संशय हो गया कि पति जानकर मेरा विशेष रूप से पोषण करना चाहती है ।
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इससे उस पर बड़ा क्रोध किया और उसको सेवा से दूर कर दिया । इससे वह रोती हुई तीन दिन तक भूखों मरती रही । तीन दिन की भूख सहन करने से उसका शरीर क्षीण हो गया । यह देखकर सब संतों ने कहा- "मलाई दूध के साथ पड़ गई थी आप उन पर कृपा करें ।"
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व्यासजी ने कहा- "मेरे ही पात्र में क्यों पड़ी, किसी अन्य संत के पात्र में पड़ जाती तो कोई ऐसी बात नहीं थी !" फिर भी सब संतों के आग्रह से व्यासजी ने कहा- "उसके ऊपर यह दंड है कि वह अपने सब भूषण बेच कर संतों को खिला दे तो फिर सेवा का अधिकार उसका मिल सकता है ।"
"सब निज भूषण बेच के, नारी अति हर्षाय ।
संत समाज बुलाय के, सादर दियो जिमाय" ।
पश्चात् पूर्ववत ही उनको सेवा का अधिकार प्राप्त हो गया था ।
(क्रमशः)

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