बुधवार, 1 मई 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४२२

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४२२)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४२२. (फारसी) विरह विनती, वर्णभिन्नताल*
*अल्लह तेरा ज़िकर फिकर करते हैं,*
*आशिकां मुश्ताक तेरे, तर्स तर्स मरते हैं ॥टेक॥*
*खलक खेश दिगर नेस्त, बैठे दिन भरते हैं ।*
*दायम दरबार तेरे, गैर महल डरते हैं ॥१॥*
*तन शहीद मन शहीद, रात दिवस लड़ते हैं ।*
*ज्ञान तेरा ध्यान तेरा, इश्क आग जलते हैं ॥२॥*
*जान तेरा जिन्द तेरा, पाँवों सिर धरते हैं ।*
*दादू दीवान तेरा, जर खरीद घर के हैं ॥३॥*
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किसी समय भगवान् ने श्रीदादूजी से पूछा कि आप क्या करते हैं ? उस समय दादूजी ने कहा कि – हे ईश्वर ! मैं आपकी ही चर्चा और ध्यान करता रहता हूँ । आपका प्यारा भक्त हूँ । आपके दर्शनों के लिये सदा उत्कण्ठित रहता हुआ दुःखी होकर मर रहा हूँ ।
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यह सब कुछ जो है वह क्षणभंगुर है ऐसा विचार-विचार कर आप की आज्ञा को शिरोधार्य करके आपके दर्शनों की आशा से दिन पूरा करता हूँ और राजद्वार में कभी नहीं जाता, वहां जाने से डरता हूँ क्योंकि वहां के भोग आपके भजन में विघ्न करने वाले हैं ।
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मन और शरीर आपको समर्पण करके संसार की आसक्ति को नष्ट करने के लिये वैराग्य के राज्य में ही निवास करता हूँ । आपके प्रेमजन्य विरहाग्नि में जलता रहता हूँ । मेरा मन प्राण और जीवन यह सब आपका ही हैं । मैं आपके चरणकमलों में नमस्कार करता हूँ । हे प्रभो ! मैं तो आपका खरीदा हुआ दास हूँ । दया करके संसार से पार करो ।
(क्रमशः)

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