सोमवार, 22 अप्रैल 2024

God is God

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*ज्यों दर्पण में मुख देखिये, पानी में प्रतिबिम्ब ।*
*ऐसे आत्मराम है, दादू सब ही संग ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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हरिवल्लभ उठे । श्रीरामकृष्ण उनकी खातिर करने के लिए उठकर खड़े हो गये । कह रहे हैं, "बलराम बहुत दुःख करता है । मैंने सोचा, एक दिन जाऊँ, जाकर तुम लोगों से मिलूँ । परन्तु भय भी होता है कि तुम लोग कहीं यह न कहो कि इसे कौन यहाँ लाया !"
हरिवल्लभ - इस तरह की बातें कहीं किसने ? आप कुछ सोचियेगा नहीं ।
हरिवल्लभ चले गये ।
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श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - उसमें भक्ति है; नहीं तो जबरदस्ती पैरों की धूलि क्यों लेता ?
"वह बात जो तुमसे मैंने कही थी कि भाव में मैंने डाक्टर को देखा था तथा एक आदमी और था - यह वही है ! इसीलिए देखो आया !"
मास्टर - जी, सचमुच वह भक्त है ।
श्रीरामकृष्ण - कितना सरल है !
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श्रीरामकृष्ण की बीमारी का हाल लेकर मास्टर डाक्टर सरकार के पास शाँकारिटोला आये हुए हैं । डाक्टर आज फिर श्रीरामकृष्ण को देखने जायेंगे । डाक्टर श्रीरामकृष्ण और महिमाचरण आदि की बातें कह रहे हैं ।
डाक्टर - महिमाचरण वह पुस्तक तो नहीं लाये जिसे उन्होंने दिखाने के लिए कहा था । उन्होंने कहा, ‘भूल गया ।’ हो सकता है । मैं भी प्रायः इसी तरह भूल जाता हूँ ।
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मास्टर - उनका अध्ययन बहुत अच्छा है ।
डाक्टर - तो फिर उनकी ऐसी दशा क्यों है ?
श्रीरामकृष्ण के सम्बन्ध में डाक्टर कह रहे हैं - "केवल भक्ति लेकर क्या होगा, अगर ज्ञान न रहा ?"
मास्टर - श्रीरामकृष्ण तो कहते हैं, ज्ञान के बाद भक्ति है; परन्तु उनके ज्ञान और भक्ति से आप लोगों के ज्ञान और भक्ति में बड़ा अन्तर है ।
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"वे जब कहते हैं, ज्ञान के बाद भक्ति है तो उसका अर्थ यह है कि पहले तत्त्वज्ञान होता है और बाद में भक्ति; पहले ब्रह्मज्ञान और बाद में भक्ति; पहले भगवान का ज्ञान, फिर उनके प्रति प्रेम । आप लोगों के ज्ञान का अर्थ है, इन्द्रियजन्य ज्ञान । श्रीरामकृष्ण जिस ज्ञान की चर्चा करते हैं, उसकी परख हमारे मापदण्ड द्वारा नहीं हो सकती । परन्तु आपका ज्ञान तो इन्द्रियजन्य है, उसकी परख हो सकती है ।"
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डाक्टर कुछ देर चुप रहे, फिर अवतार के सम्बन्ध में बातचीत करने लगे ।
डाक्टर - अवतार क्या है ? और पैरों की धूलि लेना, वह क्या है ?
मास्टर – क्यों ? आपही तो कहते हैं कि अपनी साइन्स की प्रयोगशाला में अन्वेषण करते समय ईश्वर की सृष्टि के बारे में सोचने से आपको भावावस्था हो जाती है, और फिर आदमी को देखने से भी आपमें उसी भाव का उद्रेक होता है । अगर यह ठीक है तो ईश्वर को फिर हम सिर क्यों न झुकावें ? मनुष्य के हृदय में ईश्वर है ।
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"हिन्दू धर्म के अनुसार सर्वभूतों में ईश्वर का वास है । यह विषय आपको अच्छी तरह मालूम नहीं है । सर्वभूतों में जब ईश्वर हैं तो मनुष्य को प्रणाम करने में क्या बुराई है ? "श्रीरामकृष्णदेव कहते हैं किसी-किसी वस्तु में उनका प्रकाश अधिक है । सूर्य का प्रकाश पानी में, आईने में अधिक है । पानी सब जगह है, परन्तु नदी और सरोवर में अधिक है ।
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नमस्कार ईश्वर को ही किया जाता है, मनुष्य को नहीं । God is God, not, man is God. (ईश्वर ही ईश्वर हैं, मनुष्य ईश्वर नहीं ।) "ईश्वर को कोई साधारण विचार द्वारा समझ ही नहीं सकता । सब विश्वास पर अवलम्बित है । ये ही सब बातें श्रीरामकृष्ण कहते हैं ।"
आज डाक्टर ने मास्टर को अपनी लिखी पुस्तक 'मनोविज्ञान - शारीरिक' (Physiological Basis of Psychology) की एक प्रति उपहार-स्वरूप दी ।
(क्रमशः)

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