बुधवार, 1 मई 2024

गयौ गरब सौं हारि

 
🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷🙏 *#बखनांवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
.
*केते मर मांटी भये, बहुत बड़े बलवन्त ।*
*दादू केते ह्वै गये, दाना देव अनन्त ॥*
=============
जिहि कै बिह दाणौं दलै, कूवै मींच उसारि ।
इसौ असुर जोधा बड़ौ, गयौ गरब सौं हारि ॥३॥
जिसके यहाँ ब्रह्मा अनाज पीसता था । जिसने मृत्यु के अधिष्ठाता यमराज को कूवै = रसातल में पहुँचा दिया था । ऐसे बलवान योद्धा निशाचर रावण को भी गरब = गर्व = घमंड ने बर्बाद कर दिया ॥३॥
.
बैसंदर धोवै लूगड़ा, सूरिज करै रसोइ ।
बषनां ताकी चिता मैं, अजहूँ धूवाँ होइ ॥४॥
अग्नि जिसकी स्त्रियों की साड़ियों को धोता था । सूर्य जिसके यहाँ रसोई बनाता था । बषनांजी कहते हैं, गर्व के कारण वह इतना अधिक निंदित हुआ कि उसका पुतला आज भी जलाया जाता है जिसमें से गर्व रूपी धुवाँ निकलता है ॥४॥
.
परबत आण्यौं हाथ परि, समद कर्यौ इक घूँट ।
बषनां इतनौँ बल कियौ, पणि अंति समैं घटि छूट ॥५॥
दानव और देवताओं द्वारा सुमेरु जैसे विशालकाय पर्वत को हाथों में उठाकर लाया गया । समुद्र के संपूर्ण जल को अगस्त ऋषि एक चलु के समान पी गये । बषनांजी कहते हैं, जिनमें इतना भारी बल था, वे भी अन्त में शरीर को त्यागकर निज कर्मानुसार परलोक को चले गये ॥५॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें