मंगलवार, 7 मई 2024

कंपै काल पताल सब

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*सबको बैठे पंथ सिर, रहे बटाऊ होइ ।*
*जे आये ते जाहिंगे, इस मारग सब कोइ ॥*
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कंपै काल पताल सब, जम भय सेस डराइ ।
सिंघासणि बैठ्यौ गर्बतौ, बषनां गयौ बिलाइ ॥९॥
जिस यमराज के भय से काल और नीचे के सातों पातालादि लोकों सहित पृथिवी को अपने सिर पर धारण करने वाले शेष भी डरते रहते हैं । वही यमराज गर्व सहित जब सिंहासन पर बैठा तो गर्व के कारण वह भी नाश को प्राप्त हो गया ॥९॥
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लंका छाड़ि बिलंक परि, बषनां डाक्यौ जाइ ।
एक दाढ भू थांभताँ, गरबै गया बिलाइ ॥१०॥
जो लंका को छोड़ करके विलंका(स्वर्ग) पर उछलकर पहुँच गया । जो अपनी एक दाढ़ पर ही सारी भूमि को रोक लेने की ताकत रखता था, वह भी अति गर्व के कारण नाश को प्राप्त हो गया । लंका का अधिपति रावण स्वर्ग में संकल्पानुसार तत्काल आ चला जाता था ॥१०॥
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सीता राम बिवोग नित, मिलि न कियौ बिसराम ।
सीता लंक उद्यान मैं, बषनां बन मैं राम ॥११॥
सीता और राम का नित-नित ही वियोग होता रहा । उन्होंने एक साथ रहकर कभी भी सुख के साथ विश्राम नहीं कीया । सीता तो लंका के एक बगीचे में निवास करती रही और राम वन वन घूमते रहे ॥११॥
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कुंभकरण महिरावणा, जरासिंधु सिसपाल ।
बषनां ये पणि गर्व स्यौं, बिणस गया तत्काल ॥१२॥
कुंभकर्ण, अहिरावण, जरासंध और शिशुपाल अति गर्व के कारण तत्काल ही नष्ट हो गये ॥१२॥
(क्रमशः)

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