मंगलवार, 7 मई 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४२४

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४२४)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
=============
*४२४. केवल विनती । गजताल*
*हाथ दे हो रामा,*
*तुम सब पूरण कामा, हौं तो उरझ रह्यो संसार ॥टेक॥*
*अंध कूप गृह में पर्‍यो, मेरी करहु सँभाल ।*
*तुम बिन दूजा को नहीं, मेरे दीनानाथ दयाल ॥१॥*
*मारग को सूझै नहीं, दह दिशि माया जाल ।*
*काल पाश कसि बाँधियो, मेरे कोई न छुड़ावनहार ॥२॥*
*राम बिना छूटै नहीं, कीजै बहुत उपाइ ।*
*कोटि किया सुलझै नहीं, अधिक अलूझत जाइ ॥३॥*
*दीन दुखी तुम देखताँ, भौ दुख भंजन राम ।*
*दादू कहै कर हाथ दे हो, तुम सब पूरण काम ॥४॥*
.
हे अशरण शरण भक्तवत्सल कल्पद्रुम राम ! मैं संसार सागर में पड़ा हुआ हूँ । दया करके अपने हाथ हाथ का सहारा प्रदान करें जिससे मैं इस भाव सागर से पार हो जाऊं । यह गृहस्थ ही के अंधा कूप हैं । मैं इसमें फंसा हुआ हूँ । मेरे को सहायता देकर बाहर निकालें ।
.
हे दीनों पर दया करने वाले दयालु परमात्मन् ! मेरा उद्धार करने के लिये जरा आप उद्योग कीजिये, क्योंकि आपके बिना दूसरा कोई इस संसार सागर से पार उतारने वाला नहीं दीखता । देखिये चारों दिशाओं में मायाजाल फैला हुआ हैं । और मैं कालपाश से बंधा हुआ हूँ और इस कालपाश से आपके बिना दुसरा कोई नहीं छुड़ा सकता ।
.
हजारों यत्न किये जाने पर भी यह कालपाश नष्ट नहीं हो सकता और यह जीवात्मा करोड़ों सकाम कर्मों से अपने को मायाजाल से मुक्त नहीं कर सकता प्रत्युत इन कर्मों से तो अधिक से अधिक माया जाल में फंसता हैं ।
.
हे काल और भय को नष्ट करने वाले संसार दुःख को हरण करने वाले राम ! आपका भक्त आपके पास में ही अधिक दुःखी हो रहा हैं यह उचित हैं क्या ? यह आप ही देखें । हे संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले राम ! मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ कि दया करके अपने हाथ का सहारा दीजिये जिससे मैं इस भवसागर को पार कर जाऊं ।
.
स्तोत्ररत्नावली में कहा है कि –
हे नाथ ! मेरी बुद्धि आप में किस प्रकार से लगी रहे इसी उद्देश्य से मैंने अपना सब कुछ त्याग दिया किन्तु तुम्हारी माया ने मेरे प्रति विपरीत ही कार्य किया अतः अब मैं क्या करूं मेरी बुद्धि कुछ काम नहीं करती अब आप ही दया करके मुझे कल्याण देने वाले अपने चरणकमलों की शरण दो ।
.
जो मोहरूपी अन्धकार से व्याप्त हैं । और विषयों की ज्वालाओं से संतप्त हैं । ऐसे अथाह संसाररूपी कूप में मैं पड़ा हुआ हूँ । हे मेरे मधुसूदन हे गोविन्द हे माधव मुझे अपने हाथ का सहारा दीजिये ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें