शनिवार, 4 मई 2024

अँधेरे कमरे में बन्द पागल

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*दादू जब लग सुरति सिमटै नहीं,*
*मन निश्‍चल नहीं होहि ।*
*तब लग पीव परसै नहीं,*
*बड़ी विपति यहु मोहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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दिन के दो बजे के लगभग डाक्टर श्रीरामकृष्ण को देखने आये; साथ में अध्यापक नीलमणि भी हैं । श्रीरामकृष्ण के पास बहुत से भक्त बैठे हुए हैं । गिरीश, कालीपद, निरंजन, राखाल, खोखा (मणीन्द्र), लाटू, मास्टर, आदि बहुतसे भक्त हैं ।
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श्रीराम प्रसन्नतापूर्वक बैठे हुए हैं । डाक्टर से पहले बीमारी और दवा की बातें हो जाने पर श्रीरामकृष्ण ने कहा, 'तुम्हारे लिए ये पुस्तकें मँगवायी गयी हैं ।' डाक्टर को मास्टर ने दोनों पुस्तकें दे दीं । डाक्टर ने गाना सुनना चाहा । श्रीरामकृष्ण की आज्ञा पा मास्टर और एक भक्त रामप्रसाद का गाना गा रहे हैं –
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गाना - ऐ मेरे मन ! ईश्वर का स्वरूप जानने के लिए तुम यह कैसी चेष्टा कर रहे हो ! तुम तो अँधेरे कमरे में बन्द पागल की तरह भटक रहे हो...।
गाना - कौन जानता है कि काली कैसी है ? षड्दर्शनों को भी जिनके दर्शन नहीं हो पाते । ....
गाना - ऐ मन, तू खेती करना नहीं जानता । .....
गाना - आ मन, चल घूमने चलें । ...
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डाक्टर गिरीश से कह रहे हैं - 'तुम्हारा वह गाना बड़ा सुन्दर है - वीणावाला - बुद्धचरित का गाना ।' श्रीरामकृष्ण का इशारा पाकर गिरीश और काली दोनों मिलकर गाना सुना रहे हैं –
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गाना - मेरी यह बड़ी ही साध को वीणा है, बड़े यत्नपूर्वक इसके तारों का हार गूँथा गया है । ...
गाना - मैं शान्ति के लिए व्याकुल हूँ, पर वह मिलती कहाँ है ? न जाने कहाँ से आकर कहाँ बहा जा रहा हूँ ।...
गाना - ऐ निताई, मुझे पकड़ो ! मेरे प्राणो में आज न जाने यह क्या हो रहा है !...
गाना - आओ, आओ, ऐ जगाई माधाई, प्राण भरकर, आओ, हरि का नाम लो !...
गाना - यदि तुझे किशोरी राधा का प्रेम लेना है तो चला आ, प्रेम की ज्वार बही जा रही है ।...
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गाना सुनते सुनते दो-तीन भक्तों को भावावेश हो गया । गाना हो जाने पर श्रीरामकृष्ण के साथ डाक्टर फिर बातचीत करने लगे । कल डा. प्रताप मजूमदार ने श्रीरामकृष्ण को नक्स वोमिका(Nux Vomica) दी थी । डाक्टर सरकार को यह सुनकर क्षोभ हो रहा है ।
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डाक्टर - मैं मर तो गया नहीं था ! फिर नक्स वोमिका कैसे दी गयी !
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - तुम क्यों मरोगे ? तुम्हारी अविद्या की मृत्यु हो !
डाक्टर - मेरे किसी समय अविद्या नहीं थी !
डाक्टर ने अविद्या का अर्थ भ्रष्ट-स्त्री समझ लिया था ।
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श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - नहीं जी, संन्यासी की अविद्या-माँ मर जाती है, और विवेक-पुत्र हो जाता है । अविद्या-मां के मर जाने पर अशौच होता है, इसीलिए कहते हैं - संन्यासी को छूना नहीं चाहिए ।
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हरिवल्लभ आये हुए हैं । श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, ‘तुम्हें देखकर आनन्द होता है ।’ हरिवल्लभ बड़े विनयशील हैं । चटाई से अलग जमीन पर बैठे हुए श्रीरामकृष्ण को झल रहे हैं । हरिवल्लभ कटक के सब से बड़े वकील हैं ।
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पास ही अध्यापक नीलमणि बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण उनकी मान-रक्षा करते हुए कह रहे हैं, 'आज मेरा शुभ दिन है ।' कुछ देर बाद डाक्टर और उनके मित्र नीलमणि बिदा हो गये । हरिवल्लभ भी उठे । चलते समय उन्होंने कहा, 'मैं फिर आऊँगा ।'
(क्रमशः)

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